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दैनिक जागरण और योगी सरकार का ये रिश्ता क्या कहलाता है?
‘‘किसानों की खुशहाली का सपना योगी सरकार के कार्यकाल में पूरा हो रहा है. गत 3.5 वर्षों में उठाए गए ऐतिहासिक व क्रांतिकारी कदमों से गांवों व खेतों में आए बदलावों से किसानों की आय दोगुना होने की आस बढ़ी है. किसानों के हित में उठाए गए राज्य सरकार के इन प्रयासों की दैनिक जागरण सराहना करता है और सरकार के इस अभियान में उसके साथ है.’’
यह पंक्तियां दैनिक जागरण ने अपनी वेबसाइट पर लिखी हैं.
बीते 50 दिनों से दिल्ली की सरहदों पर हज़ारों की संख्या में किसान अपनी मांगों के साथ बैठे हुए हैं. यहां 60 से ज्यादा किसानों की मौत भी हो चुकी है. सरकार और किसान नेताओं के बीच हो रही बातचीत लगातार बेनतीजा हो रही है. इसी बीच दैनिक जागरण 6 जनवरी से 21 जनवरी के बीच ‘किसान कल्याण मिशन’ कार्यक्रम चला रहा है. इसके अंतर्गत जागरण की चार गाड़ियां उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में घूमकर किसानों के हित में जारी योगी सरकार की योजनाओं का प्रचार कर रही हैं.
दैनिक जागरण इस कार्यक्रम में न सिर्फ अपनी गाड़ियां घुमा रहा है बल्कि प्रिंट और डिजिटल दोनों माध्यमों से योगी सरकार की योजनाओं और कथित तौर पर उससे लाभान्वित हुए किसानों की कहानियां प्रकाशित कर रहा है. योगी सरकार के साथ जागरण की यह दोस्ती इतनी गाढ़ी है कि जागरण ने अपने वेब पोर्टल पर इसके लिए एक अलग माइक्रोसाइट भी लॉन्च कर दिया. इसका नाम 'किसान कल्याण' है. वहीं जिस भी जिले में जागरण की प्रचार गाड़ी जा रही है वहां से एक खबर हर रोज लखनऊ एडिशन में छप रही है.
‘दैनिक जागरण किसान कल्याण मिशन’
किसानों के आंदोलन के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 जनवरी को लखनऊ के सरोजनी नगर स्थित दादूपुर गांव से किसान कल्याण मिशन की शुरुआत की. इस मिशन का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था.
प्रदेश सूचना विभाग द्वारा जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक, ‘‘किसानों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए इस मिशन की शुरुआत की गई है. इस कार्यक्रम से किसानों को आधुनिक खेती के विषय में उपयोगी जानकारी मिलेगी जो उनकी आय बढ़ाने में मददगार सिद्ध होगी.’’
सरकार ने प्रदेश भर के 825 विकास खंडों में इस योजना की शुरुआत की जो 6 जनवरी से 21 जनवरी तक चलेगा. इसके साथ ही दैनिक जागरण ने भी इसी तर्ज पर और ठीक वैसे ही कार्यक्रम की शुरुआत की. इसके लिए बकायदा उद्घाटन हुआ. सरकार और दैनिक जागरण के किसान कल्याण मिशन का लोगो भी एक जैसा ही है.
सरकार एक तरफ अपने इस मिशन को लॉन्च कर रही थी उसी दिन दैनिक जागरण कार्यालय से पांच किसानों पद्मश्री राम सरन वर्मा, बिटाना देवी, उपेंद्र कुमार सिंह, राज बहादुर सिंह और मोहम्मद अलीम ने जागरण के जागरूकता वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.
सात जनवरी को छपे लेख में जागरण इसकी जानकरी देते हुए बताता है, ‘‘इस जागरूकता वैन के जरिये किसानों की बात किसानों से की जाएगी. किसानों के हित में चलाई जा रही सरकार की लाभकारी योजनाओं के बारे में बताया जाएगा. इस तरह के चार जागरूकता वैन पूरे प्रदेश में घूमेंगी. प्रगतिशील किसानों ने इस मौके पर अपनी सफलता की प्रेरक कहानियां साझा की. सभी ने दैनिक जागरण के इस प्रयास की मुक्तकंठ से प्रशंसा की.’’
इसके तीन दिन बाद 9 जनवरी को जागरण ने डिजिटल रूप से योगी सरकार की योजनाओं के प्रचार के लिए किसान कल्याण माइक्रोसाइट को लॉन्च किया. लखनऊ के लोक भवन में प्रदेश के सूचना निदेशक शिशिर सिंह ने माइक्रोसाइट को लॉन्च किया. इस मौके पर संयुक्त सूचना निदेशक हेमंत सिंह, उप निदेशक सूचना, दिनेश सहगल मौजूद रहे. दैनिक जागरण की तरफ से राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल, महाप्रबंधक जेके द्विवेदी, महाप्रबंधक (गवर्नमेंट) देवेंद्र सिंह मौजूद थे.
जागरण में अपनी एक खबर में इस माइक्रोसाइट को लेकर जानकारी देते हुए बताया, ‘‘jagran.com पर मौजूद इस माइक्रोसाइट में बहुत कुछ खास है. इसका उद्देश्य पाठकों को किसान कल्याण मिशन के अंतर्गत सरकार द्वारा चलाई जा रहीं विभिन्न योजनाओं की जानकारी सुलभ तरीके से पहुंचाना है. इस माइक्रोसाइट के तहत पाठकों को किसान कल्याण के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इस पर सरकार द्वारा किए गए जनपयोगी कार्यों का विवरण भी मौजूद है.’’
इस माइक्रोसाइट पर अब तक लगभग 11 लेख लगे हैं. जिनका शीर्षक कुछ यूं है.
उत्तर प्रदेश में सुधर रहा किसानों का जीवन स्तर, आय में बढ़ोतरी से चेहरों पर बिखरी मुस्कान
उत्तर प्रदेश सरकार ने धान और गेहूं किसानों को सबसे अधिक भुगतान करने का बनाया कीर्तिमान
उत्तर प्रदेश में हर खेत को मिला भरपूर पानी तो लहलहाई फसल
उत्तर प्रदेश के किसानों को 'सम्मान निधि योजना’ का सर्वाधिक लाभ
किसानों की आय दोगुना करने के प्रधानमंत्री के संकल्प को साकार करने के लिए बढ़ते कदम
ठीक इसी तरह बाकी खबरों की भी हेडिंग हैं. जो सरकार की तारीफ में पुल बांधती है. नीचे की तस्वीर में आप सभी खबरों की हेडिंग पढ़ सकते हैं.
इसमें से छह खबरों को अकेले अमित सिंह नाम के लेखक ने लिखा है और चार खबरों को उमेश कुमार तिवारी ने लिखा है. इन खबरों के कंटेंट पर आगे विस्तृत रूप से बात करेंगे. जागरण के इस किसान कल्याण माइक्रोसाइट पर फोटो गैलरी भी मौजूद है. फोटो गैलरी में भी पांच ख़बरें प्रकाशित हुई हैं जो सरकार की योजनाओं का प्रचार करती हैं. इन ‘खबरों’ का शीर्षक आप नीचे की तस्वीर में देख सकते हैं.
पहले छप चुकी खबरों को प्रकाशित कर रहा जागरण
किसान वाली माइक्रोसाइट पर जो खबरें लगी हुई हैं उनमें से कई खबरें अलग-अलग जगहों पर बहुत पहले ही छप चुकी हैं. जागरण एक बार फिर से योगी सरकार की तारीफ में उन्हें दोबारा से झाड़पोछ कर प्रकाशित कर रहा है.
मसलन ‘गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर यूपी ने बनाया नया रिकॉर्ड, चीनी उत्पादन में हुआ अव्वल’ शीर्षक से छपी खबर में लिखा है, ‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के गन्ना किसानों के हितों के संरक्षण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है. बसपा सरकार के वक्त 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में 19 चीनी मिलें बंद हुई थीं. समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 से 2017 तक 10 मिले बंद हुई थीं. इससे प्रदेश के गन्ना किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया था. मुख्यमंत्री योगी ने 2017 में बागडोर संभालते ही गन्ना किसानों की समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर समाधान शुरू किया.’’
ठीक इसी भाषा में ज़ी न्यूज़ पर 19 जून 2020 को एक खबर लगी हुई है. जिसका शीर्षक है ‘CM योगी बोले- पिछली सरकारों ने 29 चीनी मिलें बंद की, मेरी सरकार ने चालू करवाया'. इस खबर में लिखा है, “उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के गन्ना किसानों के हितों के संरक्षण को लेकर एक बार फिर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है. उन्होंने शुक्रवार को प्रदेश के गन्ना किसानों को एक लाख करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बसपा सरकार के वक्त 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में 19 चीनी मिलें बंद हुई थीं. उन्होंने आगे कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में अखिलेश यादव ने 2012 से 2017 तक 10 मिले बंद कर दी थीं. इससे प्रदेश के गन्ना किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया था. मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि उन्होंने 2017 में उत्तर प्रदेश की बागडोर संभालते ही गन्ना किसानों की समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण शुरू किया.’’
जो खबर ज़ी न्यूज़ ने जून 2020 में प्रकाशित की उसी खबर को जागरण ने 8 जनवरी 2021 को प्रकाशित किया. वो भी हूबहू, एकाध शब्दों को इधर-उधर करके.
बाकी खबरों की भी यही स्थिति है. उदाहरण के तौर पर 'कोरोना काल में किसानों की खुशहाली और उन्नति के लिए योगी सरकार ने किया काम' शीर्षक से छपी खबर में जागरण ने लॉकडाउन के दौरान योगी सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का जिक्र किया है. यह खबर जागरण ने 8 जनवरी 2021 को प्रकाशित की थी. जबकि जिन घोषणा का जागरण जिक्र कर रहा है वो 8 अप्रैल 2020 को योगी सरकार ने की थी. मसलन किसानों को दो महीने मुफ्त में जुताई और बुवाई की सुविधा देने की घोषणा सरकार ने की थी. हालांकि कृषि जानकारों की माने तो यह योजना जमीन पर ठीक से नहीं उतर पाई थी, लेकिन लगभग नौ महीने बाद जागरण ने इसे प्रकाशित किया.
यहां प्रकाशित ज़्यादातर खबरें सरकार की प्रेस रिलीज मालूम पड़ती हैं. जागरण कार्यालय के दो कर्मचारी बताते हैं कि एडिटोरियल से खबरें आती हैं. उसकी भाषा को ठीक कर, हेडिंग बनाकर लगा दिया जाता है.
इसी तरह फोटो गैलरी में छपी गेहूं की खरीद को लेकर एक स्टोरी में जागरण ने बताया है कि किसानों की फसल के दाने-दाने का भुगतान करने के अपने संकल्प पर योगी आदित्यनाथ सरकार खरी उतरी है. कार्यकाल में यूपी सरकार ने 33 लाख से ज्यादा गेहूं किसानों की फसल के लिए 29017.45 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.
दरअसल यह खबर 2020 के दिसंबर महीने में कई वेबसाइट पर चली है. पत्रिका में छपी 16 दिसंबर की खबर की माने तो खाद्य तथा रसद विभाग ने ये आंकड़ें जारी किए थे.
अख़बार में छपती 'सफल' किसानों की कहानी
डिजिटल माध्यमों से सरकार की तारीफ करने वाली खबरें जागरण प्रकाशित कर ही रहा है. इसके अलावा हर रोज दैनिक जागरण के लखनऊ एडिशन में कुछ किसानों की खबरें छपती है जिन्होंने खेती में बेहतर किया है. दैनिक जागरण के एक कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि जहां-जहां प्रचार गाड़ी जा रही है वहां से खबरें की जाती हैं. इसमें अभी लखनऊ, माल और मलिहाबाद की खबरें प्रकाशित हो रही हैं.
दिल्ली की सरहद को घेरे किसानों के आंदोलन के बीच जागरण ने ऐसी रिपोर्टिंग की जिस पर सवाल खड़े हुए. यहां आंदोलन में धीरे-धीरे देश के अलग-अलग राज्यों से आए किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में जागरण 15 जनवरी को अपने संपादकीय में लिखता है, ‘‘यह एक तथ्य है कि किसान आंदोलन मुख्यत: पंजाब के किसानों का आंदोलन बनकर रह गया है. इस आंदोलन में पंजाब के किसानों की अधिकता की एक बड़ी वजह खुद वहां की सरकार की ओर से उन्हें उकसाया जाना है.’’
क्या जागरण और यूपी सरकार के बीच कोई करार है?
जागरण की माइक्रोसाइट पर उत्तर प्रदेश सरकार का लोगो तो मौजूद है. वहीं प्रिंट की खबरों में ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई. तो क्या योगी सरकार और दैनिक जागरण दोनों मिलकर इस कार्यक्रम को चला रहे हैं. इसकी जानकारी कहीं भी अख़बार द्वारा नहीं दिया जाता है.
इसको लेकर उत्तर प्रदेश दैनिक जागरण के संपादक आशुतोष शुक्ला से जब हमने फोन पर बात की तो उन्होंने हमारा सवाल सुनने के बाद बिना कोई जवाब दिए फोन काट दिया. शुक्ला ‘किसान कल्याण’ माइक्रोसाइट के उद्घाटन में अधिकारियों के साथ मौजूद थे. हमने आशुतोष शुक्ला को व्हाट्सएप के जरिए भी सवाल भेजे हैं. लेकिन अभी तक उसका कोई जवाब नहीं आया. अगर कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
हमने उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के प्रमुख एडिशनल चीफ सेक्रेटरी नवनीत सहगल से बात की. उन्होंने जागरण के साथ ‘किसान कल्याण मिशन’ के कार्यक्रम को लेकर किसी भी तरह के साझेदरी से इंकार किया. वो कहते हैं, ''हम तो विज्ञापन देते रहते हैं. सबको देते हैं. अगर कोई चला रहा है तो आपको क्या दिक्कत है? अगर कोई चला रहा है तो हम उन्हें रोकेंगे थोड़ी या जांच थोड़े करेंगे की क्यों चला रहा है.''
जब हमने उनसे कहा कि जागरण अपने डिजिटल माध्यम पर उत्तर प्रदेश सरकार का लोगो इस्तेमाल कर रहा है. सरकार की योजनाओं का प्रचार कर रहा है. क्या यह ऐसे ही है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘वे लोग अच्छे काम के लिए लोगो का इस्तेमाल कर रहे हैं, अगर किसी गलत काम में करते तो बताओ. अच्छे काम के लिए कर रहे है. हमें कोई अपत्ति नहीं है.''
जब हमने नवनीत सहगल से कुछ और सवाल पूछा तो उन्होंने हमने सवाल भेजने के लिए कहा. हमने उन्हें भी सवाल भेज दिया है, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो हम उसे खबर में जोड़ देंगे.
हमने दैनिक जागरण समूह के मार्केटिंग विभाग के वाईस प्रेसिडेंट विकास चंद्रा से बात की. जागरण 'किसान कल्याण मिशन' अभियान को चंद्रा ने ही डिजाइन किया है. नवनीत सहगल की तरह चंद्रा भी सरकार और जागरण के बीच किसी साझेदारी से इंकार करते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए चंद्रा बताते हैं, ''यह अभियान किसानों का उत्साह बढ़ाने के लिए चलाया जा रहा है. जो भी अच्छे काम हुए हैं हम उसे खबरों के जरिए लोगों तक पहुंचा रहे हैं. अच्छे काम को अपने पाठकों तक पहुंचाना गुनाह तो नहीं है. जागरण लम्बे समय से अपने पाठकों की वजह से भारत का नंबर एक अख़बार है. कृषि विभाग से हमें जानकारी आती है. हम उसका फैक्ट चेक करके अपने पाठकों तक पहुंचाते हैं.''
जागरण की चार गाड़ियां यूपी में घूमकर प्रचार कर रही हैं. सरकार का और जागरण का लोगो एक ही है. अभियान की तारीख भी एक है. जागरण पुरानी खबरों को दोबारा प्रकाशित कर रहा है. सरकारी कार्यालय में, सरकारी अधिकारियों के द्वारा जागरण के इस अभियान की शुरुआत होती है. क्या यह सब बिना किसी साझेदारी के हुआ? इन तमाम सवालों के जवाब में विकास चंद्रा अपना पुराना जवाब ही दोहराते हुए कहते हैं, ''अगर हम मुफ्त में कुछ करें तो किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए. हम सरकार की योजनाओं का प्रचार नहीं कर रहे हैं बल्कि किसानों के हित में किए गए काम उन तक पहुंचा रहे हैं. वे हमारे पाठक हैं. हम पाठकों से ही नंबर एक है.''
लेकिन क्या सबकुछ इतना समान्य है. खुद को देश का सबसे ज़्यादा पढ़े जाने का दावा करने वाला अख़बार यूपी सरकार की योजनाओं को पाठकों तक ऐसे ही पहुंचा रहा है. मुफ्त में. यूपी सरकार और जागरण के अधिकारी की बातों को माने तो ऐसा ही है, लेकिन क्या ऐसा ही है?
आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ जागरण का रवैया
आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ जागरण लगातार लेख और संपादकीय छाप रहा है. ऐसा ही संपादकीय 7 जनवरी को भी छपा जिसका शीर्षक था- ‘‘किसान नेताओं का रवैया’’. इसमें लेखक लिखते हैं, ‘‘इन नेताओं ने झूठ का सहारा लेकर कृषि कानूनों के खिलाफ जिस तरह से मोर्चा खोल दिया है, उससे लगता है कि हालात बेहतर थे, लेकिन यह सच नहीं है. और इसीलिए किसानों की समस्याओं की तरफ ध्यान आकर्षित किया जाता था. नए कृषि कानूनों के जरिए किसानों की समस्याओं को ही दूर करने का काम किया गया है.’’
इस संपादकीय में आगे लिखा गया है, ‘‘चूंकि किसान नेता किसानों को बरगलाने से बाज नहीं आ रहे हैं इसीलिए सरकार को उनके खिलाफ सख्ती बरतने के लिए तैयार रहना चाहिए.’’
13 जनवरी को जागरण में 'सुप्रीम कोर्ट की पहल' हेडिंग से संपादकीय छपा. इसमें किसान आंदोलन को कांग्रेस और वाम दलों के इशारे पर चलने वाला बताने की कोशिश की गई. जागरण लिखता है, ''किसान नेताओं के रवैये से यह साफ है कि वे किसानों की समस्याओं का हल चाहने के बजाय अपने संकीर्ण स्वार्थो को पूरा करना चाहते हैं. इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि उनकी आड़ लेकर कांग्रेस एवं वाम दल अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना चाह रहे हैं. इसकी पुष्टि इससे होती है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति पर किसान नेताओं और कांग्रेसी नेताओं की आपत्ति के सुर एक जैसे हैं. यह समानता तो यही इंगित करती है कि किसानों को एक राजनीतिक एजेंडे के तहत उकसाया गया है. बात केवल इतनी ही नहीं कि किसान नेता किसी राजनीतिक उद्देश्य के तहत दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. बात यह भी है कि उनके बीच अवांछित तत्व घुसपैठ करते हुए दिख रहे हैं.''
जागरण अपने संपादकीय के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि कृषि बिल किसानों के हित में हैं वहीं किसान नेता किसानों को बरगला रहे हैं. साथ ही सरकार को सलाह भी देता है कि किसानों पर सख्ती बरतें.
किसान नेताओं की मांग को भी जागरण एक तरह से गैर ज़रूरी बताने की कोशिश करता है. किसानों की मांगों में से एक है, एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाना. न्यूनतम समर्थन मूल्य वह राशि है जो सरकार किसी फसल को लेकर तय करती है और उसी पर खरीदारी भी करती है. किसानों को डर है कि इन तीनों क़ानूनों के लागू होने के बाद एमएसपी पर खरीद बंद हो जाएगी.
किसानों की इस मांग को गलत बताने की कोशिश करते हुए जागरण ने एक खबर प्रकशित की. जिसका शीर्षक है 'महंगाई भड़कायेगी, एमएसपी की गारंटी, खजाने पर बोझ के साथ आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ेगा असर.’
सुरेंद्र प्रसाद सिंह के द्वारा लिखी इस खबर में यह बताने की कोशिश हो रही है कि अगर एमएसपी पर खरीदारी होगी तो सरकार को नुकसान होगा. कीमत बढ़ जाएगी. खबर में लिखा गया है, ‘‘किसानों के लिए कहने को तो यह न्यूनतम समर्थन मूल्य है लेकिन बाजार में यही अधिकतम मूल्य बनकर महंगाई का दंश देता है.’’
जागरण द्वारा सिर्फ संपादकीय और खबरों के जरिए ही किसान आंदोलन पर सवाल उठाया गया ऐसा नहीं है. जागरण ने कार्टून के जरिए भी कृषि कानूनों को बेहतर बताने की कोशिश की है. माधव जोशी नाम के कार्टूनिस्ट ने ये कार्टून बनाए हैं. 12 जनवरी को छपे कार्टून में,माथे पर हाथ रखे ट्रैक्टर पर बैठे एक सिख किसान कहते हैं, ‘‘पाजी! आप आंदोलन में जमे हो तब तक फसल मंडी के बाहर बेंच लूं? दाम अच्छे हैं?
एक ऐसा ही कार्टून माधव द्वारा बनाया गया है जिसमें लिखा गया, ‘‘किसान हल चलाते हैं लेकिन हल चाहते नहीं.’’
मोदी सरकार के आने के बाद जागरण को मिला करोड़ों का विज्ञापन
दैनिक जागरण खुद को हिंदी का सबसे बड़ा अख़बार बताता हैं. मौके-मौके पर वह सरकार को बचाने की कोशिश करता नजर आता है. हाल ही में हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए रेप और उसके बाद पुलिस की उपस्थिति में परिवार के इजाजत के बगैर और अनुस्थिति में अंतिम संस्कार का मामला आया तब भी जागरण ने लड़की के परिवार पर ही सवाल उठा दिया था. हालांकि बाद में सीबीआई ने माना कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ था. ऐसा ही जागरण ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ रेप मामले में किया था. जिसके बाद उसे काफी आलोचना का समाना करना पड़ा था.
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के दौरान भी जागरण ने ऐसी स्टोरी की जिससे आंदोलन और उसके नेताओं पर ही सवाल खड़े हुए. जागरण ऐसा क्यों कर रहा है? इस सवाल का जवाब सरकार द्वारा बीते दिनों जागरण ग्रुप को दिए गए विज्ञापनों से मिलता है.
ब्यूरो ऑफ़ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन के आंकड़ों के मुताबिक दैनिक जागरण को साल 2015 से 2019 तक 85 करोड़ 78 लाख 31 हज़ार पांच सौ बहात्तर रुपए का विज्ञापन मिला. जागरण ग्रुप के अंग्रेजी अख़बार मिडे-डे को 2 करोड़ 41 लाख पांच हज़ार चार सौ पैंतालीस रुपए का विज्ञापन मिला. वहीं जागरण के उर्दू अख़बार इंक़लाब को 57 लाख, नौ हज़ार दो सौ उन्तालीस रुपए का विज्ञापन दिया गया. यानी जागरण ग्रुप के तीनों अख़बारों को मिलाकर सिर्फ पांच साल के भीतर कुल 88 करोड़, 77 लाख, 26 हज़ार दो सौ छप्पन हज़ार का विज्ञापन सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा दिया गया है.
मोदी सरकार से पहले जागरण को मिले विज्ञापनों की बात करें तो यह कम है. कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान जागरण को साल 2010-11 में 13 करोड़, 68 लाख, आठ हज़ार तीन सौ दो रुपए का, 2011-12 में 13 करोड़, 66 लाख 60 हज़ार दो सौ नब्बे रुपए का, 2012-13 में पांच करोड़, 90 लाख, 13 हज़ार सात सौ अठहत्तर रुपए का विज्ञापन मिला. इसी दौरान अगर जागरण समूह के अंग्रेजी अख़बार मिड-डे को मिले विज्ञापन की बात करें तो 2010-11 में उसे 35 लाख, 53 हज़ार छह सौ चौतीस, 2011-12 में 24 लाख, 78 हज़ार 76 रुपए और 2012-13 में सात लाख, 48 हज़ार आठ सौ पचहत्तर रुपए का विज्ञापन मिला.
मोदी सरकार के आते ही जागरण को मिलने वाले विज्ञापन की दर लगभग दोगुना हो गई. साल 2015-16 की बात करे तो इस साल जागरण को 22 करोड़, 31 लाख, पांच हज़ार चार सौ चौवालीस रुपए, 2016-17 में 21 करोड़, 85 लाख, 44 हज़ार, 5 सौ 64 रुपए, 2017-18 में 36 करोड़ 40 लाख, 80 हज़ार 3, सौ 56 रुपए, 2018-19 में 5 करोड़, 21 लाख 01 हज़ार 2 सौ 08 रुपए का विज्ञापन दैनिक जागरण को मिला. यहीं स्थिति मिड-डे की भी रही. मिड-डे का विज्ञापन भी तेजी से बढ़ा.
इसके अलावा अगर भारत सरकार के डिजिटल विज्ञापन की बात करें तो साल 2015-19 के बीच जागरण समूह को 2 करोड़ 68 लाख, 38 हज़ार नौ सौ 77 रुपए का विज्ञापन दिया गया. वहीं मिड डे को 77 लाख 18 हज़ार पांच सौ 54 रुपए का विज्ञापन इस दौरान मिला.
यह तो सिर्फ केंद्र सरकार के आंकड़ें हैं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी कम विज्ञापन नहीं देती है. उसके आंकड़ें आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. उसे हम हासिल नहीं कर पाए.
‘‘किसानों की खुशहाली का सपना योगी सरकार के कार्यकाल में पूरा हो रहा है. गत 3.5 वर्षों में उठाए गए ऐतिहासिक व क्रांतिकारी कदमों से गांवों व खेतों में आए बदलावों से किसानों की आय दोगुना होने की आस बढ़ी है. किसानों के हित में उठाए गए राज्य सरकार के इन प्रयासों की दैनिक जागरण सराहना करता है और सरकार के इस अभियान में उसके साथ है.’’
यह पंक्तियां दैनिक जागरण ने अपनी वेबसाइट पर लिखी हैं.
बीते 50 दिनों से दिल्ली की सरहदों पर हज़ारों की संख्या में किसान अपनी मांगों के साथ बैठे हुए हैं. यहां 60 से ज्यादा किसानों की मौत भी हो चुकी है. सरकार और किसान नेताओं के बीच हो रही बातचीत लगातार बेनतीजा हो रही है. इसी बीच दैनिक जागरण 6 जनवरी से 21 जनवरी के बीच ‘किसान कल्याण मिशन’ कार्यक्रम चला रहा है. इसके अंतर्गत जागरण की चार गाड़ियां उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में घूमकर किसानों के हित में जारी योगी सरकार की योजनाओं का प्रचार कर रही हैं.
दैनिक जागरण इस कार्यक्रम में न सिर्फ अपनी गाड़ियां घुमा रहा है बल्कि प्रिंट और डिजिटल दोनों माध्यमों से योगी सरकार की योजनाओं और कथित तौर पर उससे लाभान्वित हुए किसानों की कहानियां प्रकाशित कर रहा है. योगी सरकार के साथ जागरण की यह दोस्ती इतनी गाढ़ी है कि जागरण ने अपने वेब पोर्टल पर इसके लिए एक अलग माइक्रोसाइट भी लॉन्च कर दिया. इसका नाम 'किसान कल्याण' है. वहीं जिस भी जिले में जागरण की प्रचार गाड़ी जा रही है वहां से एक खबर हर रोज लखनऊ एडिशन में छप रही है.
‘दैनिक जागरण किसान कल्याण मिशन’
किसानों के आंदोलन के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 जनवरी को लखनऊ के सरोजनी नगर स्थित दादूपुर गांव से किसान कल्याण मिशन की शुरुआत की. इस मिशन का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था.
प्रदेश सूचना विभाग द्वारा जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक, ‘‘किसानों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए इस मिशन की शुरुआत की गई है. इस कार्यक्रम से किसानों को आधुनिक खेती के विषय में उपयोगी जानकारी मिलेगी जो उनकी आय बढ़ाने में मददगार सिद्ध होगी.’’
सरकार ने प्रदेश भर के 825 विकास खंडों में इस योजना की शुरुआत की जो 6 जनवरी से 21 जनवरी तक चलेगा. इसके साथ ही दैनिक जागरण ने भी इसी तर्ज पर और ठीक वैसे ही कार्यक्रम की शुरुआत की. इसके लिए बकायदा उद्घाटन हुआ. सरकार और दैनिक जागरण के किसान कल्याण मिशन का लोगो भी एक जैसा ही है.
सरकार एक तरफ अपने इस मिशन को लॉन्च कर रही थी उसी दिन दैनिक जागरण कार्यालय से पांच किसानों पद्मश्री राम सरन वर्मा, बिटाना देवी, उपेंद्र कुमार सिंह, राज बहादुर सिंह और मोहम्मद अलीम ने जागरण के जागरूकता वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया.
सात जनवरी को छपे लेख में जागरण इसकी जानकरी देते हुए बताता है, ‘‘इस जागरूकता वैन के जरिये किसानों की बात किसानों से की जाएगी. किसानों के हित में चलाई जा रही सरकार की लाभकारी योजनाओं के बारे में बताया जाएगा. इस तरह के चार जागरूकता वैन पूरे प्रदेश में घूमेंगी. प्रगतिशील किसानों ने इस मौके पर अपनी सफलता की प्रेरक कहानियां साझा की. सभी ने दैनिक जागरण के इस प्रयास की मुक्तकंठ से प्रशंसा की.’’
इसके तीन दिन बाद 9 जनवरी को जागरण ने डिजिटल रूप से योगी सरकार की योजनाओं के प्रचार के लिए किसान कल्याण माइक्रोसाइट को लॉन्च किया. लखनऊ के लोक भवन में प्रदेश के सूचना निदेशक शिशिर सिंह ने माइक्रोसाइट को लॉन्च किया. इस मौके पर संयुक्त सूचना निदेशक हेमंत सिंह, उप निदेशक सूचना, दिनेश सहगल मौजूद रहे. दैनिक जागरण की तरफ से राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल, महाप्रबंधक जेके द्विवेदी, महाप्रबंधक (गवर्नमेंट) देवेंद्र सिंह मौजूद थे.
जागरण में अपनी एक खबर में इस माइक्रोसाइट को लेकर जानकारी देते हुए बताया, ‘‘jagran.com पर मौजूद इस माइक्रोसाइट में बहुत कुछ खास है. इसका उद्देश्य पाठकों को किसान कल्याण मिशन के अंतर्गत सरकार द्वारा चलाई जा रहीं विभिन्न योजनाओं की जानकारी सुलभ तरीके से पहुंचाना है. इस माइक्रोसाइट के तहत पाठकों को किसान कल्याण के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. इस पर सरकार द्वारा किए गए जनपयोगी कार्यों का विवरण भी मौजूद है.’’
इस माइक्रोसाइट पर अब तक लगभग 11 लेख लगे हैं. जिनका शीर्षक कुछ यूं है.
उत्तर प्रदेश में सुधर रहा किसानों का जीवन स्तर, आय में बढ़ोतरी से चेहरों पर बिखरी मुस्कान
उत्तर प्रदेश सरकार ने धान और गेहूं किसानों को सबसे अधिक भुगतान करने का बनाया कीर्तिमान
उत्तर प्रदेश में हर खेत को मिला भरपूर पानी तो लहलहाई फसल
उत्तर प्रदेश के किसानों को 'सम्मान निधि योजना’ का सर्वाधिक लाभ
किसानों की आय दोगुना करने के प्रधानमंत्री के संकल्प को साकार करने के लिए बढ़ते कदम
ठीक इसी तरह बाकी खबरों की भी हेडिंग हैं. जो सरकार की तारीफ में पुल बांधती है. नीचे की तस्वीर में आप सभी खबरों की हेडिंग पढ़ सकते हैं.
इसमें से छह खबरों को अकेले अमित सिंह नाम के लेखक ने लिखा है और चार खबरों को उमेश कुमार तिवारी ने लिखा है. इन खबरों के कंटेंट पर आगे विस्तृत रूप से बात करेंगे. जागरण के इस किसान कल्याण माइक्रोसाइट पर फोटो गैलरी भी मौजूद है. फोटो गैलरी में भी पांच ख़बरें प्रकाशित हुई हैं जो सरकार की योजनाओं का प्रचार करती हैं. इन ‘खबरों’ का शीर्षक आप नीचे की तस्वीर में देख सकते हैं.
पहले छप चुकी खबरों को प्रकाशित कर रहा जागरण
किसान वाली माइक्रोसाइट पर जो खबरें लगी हुई हैं उनमें से कई खबरें अलग-अलग जगहों पर बहुत पहले ही छप चुकी हैं. जागरण एक बार फिर से योगी सरकार की तारीफ में उन्हें दोबारा से झाड़पोछ कर प्रकाशित कर रहा है.
मसलन ‘गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर यूपी ने बनाया नया रिकॉर्ड, चीनी उत्पादन में हुआ अव्वल’ शीर्षक से छपी खबर में लिखा है, ‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के गन्ना किसानों के हितों के संरक्षण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है. बसपा सरकार के वक्त 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में 19 चीनी मिलें बंद हुई थीं. समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 से 2017 तक 10 मिले बंद हुई थीं. इससे प्रदेश के गन्ना किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया था. मुख्यमंत्री योगी ने 2017 में बागडोर संभालते ही गन्ना किसानों की समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर समाधान शुरू किया.’’
ठीक इसी भाषा में ज़ी न्यूज़ पर 19 जून 2020 को एक खबर लगी हुई है. जिसका शीर्षक है ‘CM योगी बोले- पिछली सरकारों ने 29 चीनी मिलें बंद की, मेरी सरकार ने चालू करवाया'. इस खबर में लिखा है, “उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के गन्ना किसानों के हितों के संरक्षण को लेकर एक बार फिर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है. उन्होंने शुक्रवार को प्रदेश के गन्ना किसानों को एक लाख करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बसपा सरकार के वक्त 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में 19 चीनी मिलें बंद हुई थीं. उन्होंने आगे कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में अखिलेश यादव ने 2012 से 2017 तक 10 मिले बंद कर दी थीं. इससे प्रदेश के गन्ना किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया था. मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि उन्होंने 2017 में उत्तर प्रदेश की बागडोर संभालते ही गन्ना किसानों की समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण शुरू किया.’’
जो खबर ज़ी न्यूज़ ने जून 2020 में प्रकाशित की उसी खबर को जागरण ने 8 जनवरी 2021 को प्रकाशित किया. वो भी हूबहू, एकाध शब्दों को इधर-उधर करके.
बाकी खबरों की भी यही स्थिति है. उदाहरण के तौर पर 'कोरोना काल में किसानों की खुशहाली और उन्नति के लिए योगी सरकार ने किया काम' शीर्षक से छपी खबर में जागरण ने लॉकडाउन के दौरान योगी सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का जिक्र किया है. यह खबर जागरण ने 8 जनवरी 2021 को प्रकाशित की थी. जबकि जिन घोषणा का जागरण जिक्र कर रहा है वो 8 अप्रैल 2020 को योगी सरकार ने की थी. मसलन किसानों को दो महीने मुफ्त में जुताई और बुवाई की सुविधा देने की घोषणा सरकार ने की थी. हालांकि कृषि जानकारों की माने तो यह योजना जमीन पर ठीक से नहीं उतर पाई थी, लेकिन लगभग नौ महीने बाद जागरण ने इसे प्रकाशित किया.
यहां प्रकाशित ज़्यादातर खबरें सरकार की प्रेस रिलीज मालूम पड़ती हैं. जागरण कार्यालय के दो कर्मचारी बताते हैं कि एडिटोरियल से खबरें आती हैं. उसकी भाषा को ठीक कर, हेडिंग बनाकर लगा दिया जाता है.
इसी तरह फोटो गैलरी में छपी गेहूं की खरीद को लेकर एक स्टोरी में जागरण ने बताया है कि किसानों की फसल के दाने-दाने का भुगतान करने के अपने संकल्प पर योगी आदित्यनाथ सरकार खरी उतरी है. कार्यकाल में यूपी सरकार ने 33 लाख से ज्यादा गेहूं किसानों की फसल के लिए 29017.45 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.
दरअसल यह खबर 2020 के दिसंबर महीने में कई वेबसाइट पर चली है. पत्रिका में छपी 16 दिसंबर की खबर की माने तो खाद्य तथा रसद विभाग ने ये आंकड़ें जारी किए थे.
अख़बार में छपती 'सफल' किसानों की कहानी
डिजिटल माध्यमों से सरकार की तारीफ करने वाली खबरें जागरण प्रकाशित कर ही रहा है. इसके अलावा हर रोज दैनिक जागरण के लखनऊ एडिशन में कुछ किसानों की खबरें छपती है जिन्होंने खेती में बेहतर किया है. दैनिक जागरण के एक कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि जहां-जहां प्रचार गाड़ी जा रही है वहां से खबरें की जाती हैं. इसमें अभी लखनऊ, माल और मलिहाबाद की खबरें प्रकाशित हो रही हैं.
दिल्ली की सरहद को घेरे किसानों के आंदोलन के बीच जागरण ने ऐसी रिपोर्टिंग की जिस पर सवाल खड़े हुए. यहां आंदोलन में धीरे-धीरे देश के अलग-अलग राज्यों से आए किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में जागरण 15 जनवरी को अपने संपादकीय में लिखता है, ‘‘यह एक तथ्य है कि किसान आंदोलन मुख्यत: पंजाब के किसानों का आंदोलन बनकर रह गया है. इस आंदोलन में पंजाब के किसानों की अधिकता की एक बड़ी वजह खुद वहां की सरकार की ओर से उन्हें उकसाया जाना है.’’
क्या जागरण और यूपी सरकार के बीच कोई करार है?
जागरण की माइक्रोसाइट पर उत्तर प्रदेश सरकार का लोगो तो मौजूद है. वहीं प्रिंट की खबरों में ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई. तो क्या योगी सरकार और दैनिक जागरण दोनों मिलकर इस कार्यक्रम को चला रहे हैं. इसकी जानकारी कहीं भी अख़बार द्वारा नहीं दिया जाता है.
इसको लेकर उत्तर प्रदेश दैनिक जागरण के संपादक आशुतोष शुक्ला से जब हमने फोन पर बात की तो उन्होंने हमारा सवाल सुनने के बाद बिना कोई जवाब दिए फोन काट दिया. शुक्ला ‘किसान कल्याण’ माइक्रोसाइट के उद्घाटन में अधिकारियों के साथ मौजूद थे. हमने आशुतोष शुक्ला को व्हाट्सएप के जरिए भी सवाल भेजे हैं. लेकिन अभी तक उसका कोई जवाब नहीं आया. अगर कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
हमने उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के प्रमुख एडिशनल चीफ सेक्रेटरी नवनीत सहगल से बात की. उन्होंने जागरण के साथ ‘किसान कल्याण मिशन’ के कार्यक्रम को लेकर किसी भी तरह के साझेदरी से इंकार किया. वो कहते हैं, ''हम तो विज्ञापन देते रहते हैं. सबको देते हैं. अगर कोई चला रहा है तो आपको क्या दिक्कत है? अगर कोई चला रहा है तो हम उन्हें रोकेंगे थोड़ी या जांच थोड़े करेंगे की क्यों चला रहा है.''
जब हमने उनसे कहा कि जागरण अपने डिजिटल माध्यम पर उत्तर प्रदेश सरकार का लोगो इस्तेमाल कर रहा है. सरकार की योजनाओं का प्रचार कर रहा है. क्या यह ऐसे ही है? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘वे लोग अच्छे काम के लिए लोगो का इस्तेमाल कर रहे हैं, अगर किसी गलत काम में करते तो बताओ. अच्छे काम के लिए कर रहे है. हमें कोई अपत्ति नहीं है.''
जब हमने नवनीत सहगल से कुछ और सवाल पूछा तो उन्होंने हमने सवाल भेजने के लिए कहा. हमने उन्हें भी सवाल भेज दिया है, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो हम उसे खबर में जोड़ देंगे.
हमने दैनिक जागरण समूह के मार्केटिंग विभाग के वाईस प्रेसिडेंट विकास चंद्रा से बात की. जागरण 'किसान कल्याण मिशन' अभियान को चंद्रा ने ही डिजाइन किया है. नवनीत सहगल की तरह चंद्रा भी सरकार और जागरण के बीच किसी साझेदारी से इंकार करते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए चंद्रा बताते हैं, ''यह अभियान किसानों का उत्साह बढ़ाने के लिए चलाया जा रहा है. जो भी अच्छे काम हुए हैं हम उसे खबरों के जरिए लोगों तक पहुंचा रहे हैं. अच्छे काम को अपने पाठकों तक पहुंचाना गुनाह तो नहीं है. जागरण लम्बे समय से अपने पाठकों की वजह से भारत का नंबर एक अख़बार है. कृषि विभाग से हमें जानकारी आती है. हम उसका फैक्ट चेक करके अपने पाठकों तक पहुंचाते हैं.''
जागरण की चार गाड़ियां यूपी में घूमकर प्रचार कर रही हैं. सरकार का और जागरण का लोगो एक ही है. अभियान की तारीख भी एक है. जागरण पुरानी खबरों को दोबारा प्रकाशित कर रहा है. सरकारी कार्यालय में, सरकारी अधिकारियों के द्वारा जागरण के इस अभियान की शुरुआत होती है. क्या यह सब बिना किसी साझेदारी के हुआ? इन तमाम सवालों के जवाब में विकास चंद्रा अपना पुराना जवाब ही दोहराते हुए कहते हैं, ''अगर हम मुफ्त में कुछ करें तो किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए. हम सरकार की योजनाओं का प्रचार नहीं कर रहे हैं बल्कि किसानों के हित में किए गए काम उन तक पहुंचा रहे हैं. वे हमारे पाठक हैं. हम पाठकों से ही नंबर एक है.''
लेकिन क्या सबकुछ इतना समान्य है. खुद को देश का सबसे ज़्यादा पढ़े जाने का दावा करने वाला अख़बार यूपी सरकार की योजनाओं को पाठकों तक ऐसे ही पहुंचा रहा है. मुफ्त में. यूपी सरकार और जागरण के अधिकारी की बातों को माने तो ऐसा ही है, लेकिन क्या ऐसा ही है?
आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ जागरण का रवैया
आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ जागरण लगातार लेख और संपादकीय छाप रहा है. ऐसा ही संपादकीय 7 जनवरी को भी छपा जिसका शीर्षक था- ‘‘किसान नेताओं का रवैया’’. इसमें लेखक लिखते हैं, ‘‘इन नेताओं ने झूठ का सहारा लेकर कृषि कानूनों के खिलाफ जिस तरह से मोर्चा खोल दिया है, उससे लगता है कि हालात बेहतर थे, लेकिन यह सच नहीं है. और इसीलिए किसानों की समस्याओं की तरफ ध्यान आकर्षित किया जाता था. नए कृषि कानूनों के जरिए किसानों की समस्याओं को ही दूर करने का काम किया गया है.’’
इस संपादकीय में आगे लिखा गया है, ‘‘चूंकि किसान नेता किसानों को बरगलाने से बाज नहीं आ रहे हैं इसीलिए सरकार को उनके खिलाफ सख्ती बरतने के लिए तैयार रहना चाहिए.’’
13 जनवरी को जागरण में 'सुप्रीम कोर्ट की पहल' हेडिंग से संपादकीय छपा. इसमें किसान आंदोलन को कांग्रेस और वाम दलों के इशारे पर चलने वाला बताने की कोशिश की गई. जागरण लिखता है, ''किसान नेताओं के रवैये से यह साफ है कि वे किसानों की समस्याओं का हल चाहने के बजाय अपने संकीर्ण स्वार्थो को पूरा करना चाहते हैं. इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि उनकी आड़ लेकर कांग्रेस एवं वाम दल अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना चाह रहे हैं. इसकी पुष्टि इससे होती है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति पर किसान नेताओं और कांग्रेसी नेताओं की आपत्ति के सुर एक जैसे हैं. यह समानता तो यही इंगित करती है कि किसानों को एक राजनीतिक एजेंडे के तहत उकसाया गया है. बात केवल इतनी ही नहीं कि किसान नेता किसी राजनीतिक उद्देश्य के तहत दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. बात यह भी है कि उनके बीच अवांछित तत्व घुसपैठ करते हुए दिख रहे हैं.''
जागरण अपने संपादकीय के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि कृषि बिल किसानों के हित में हैं वहीं किसान नेता किसानों को बरगला रहे हैं. साथ ही सरकार को सलाह भी देता है कि किसानों पर सख्ती बरतें.
किसान नेताओं की मांग को भी जागरण एक तरह से गैर ज़रूरी बताने की कोशिश करता है. किसानों की मांगों में से एक है, एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाना. न्यूनतम समर्थन मूल्य वह राशि है जो सरकार किसी फसल को लेकर तय करती है और उसी पर खरीदारी भी करती है. किसानों को डर है कि इन तीनों क़ानूनों के लागू होने के बाद एमएसपी पर खरीद बंद हो जाएगी.
किसानों की इस मांग को गलत बताने की कोशिश करते हुए जागरण ने एक खबर प्रकशित की. जिसका शीर्षक है 'महंगाई भड़कायेगी, एमएसपी की गारंटी, खजाने पर बोझ के साथ आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ेगा असर.’
सुरेंद्र प्रसाद सिंह के द्वारा लिखी इस खबर में यह बताने की कोशिश हो रही है कि अगर एमएसपी पर खरीदारी होगी तो सरकार को नुकसान होगा. कीमत बढ़ जाएगी. खबर में लिखा गया है, ‘‘किसानों के लिए कहने को तो यह न्यूनतम समर्थन मूल्य है लेकिन बाजार में यही अधिकतम मूल्य बनकर महंगाई का दंश देता है.’’
जागरण द्वारा सिर्फ संपादकीय और खबरों के जरिए ही किसान आंदोलन पर सवाल उठाया गया ऐसा नहीं है. जागरण ने कार्टून के जरिए भी कृषि कानूनों को बेहतर बताने की कोशिश की है. माधव जोशी नाम के कार्टूनिस्ट ने ये कार्टून बनाए हैं. 12 जनवरी को छपे कार्टून में,माथे पर हाथ रखे ट्रैक्टर पर बैठे एक सिख किसान कहते हैं, ‘‘पाजी! आप आंदोलन में जमे हो तब तक फसल मंडी के बाहर बेंच लूं? दाम अच्छे हैं?
एक ऐसा ही कार्टून माधव द्वारा बनाया गया है जिसमें लिखा गया, ‘‘किसान हल चलाते हैं लेकिन हल चाहते नहीं.’’
मोदी सरकार के आने के बाद जागरण को मिला करोड़ों का विज्ञापन
दैनिक जागरण खुद को हिंदी का सबसे बड़ा अख़बार बताता हैं. मौके-मौके पर वह सरकार को बचाने की कोशिश करता नजर आता है. हाल ही में हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए रेप और उसके बाद पुलिस की उपस्थिति में परिवार के इजाजत के बगैर और अनुस्थिति में अंतिम संस्कार का मामला आया तब भी जागरण ने लड़की के परिवार पर ही सवाल उठा दिया था. हालांकि बाद में सीबीआई ने माना कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ था. ऐसा ही जागरण ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ रेप मामले में किया था. जिसके बाद उसे काफी आलोचना का समाना करना पड़ा था.
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के दौरान भी जागरण ने ऐसी स्टोरी की जिससे आंदोलन और उसके नेताओं पर ही सवाल खड़े हुए. जागरण ऐसा क्यों कर रहा है? इस सवाल का जवाब सरकार द्वारा बीते दिनों जागरण ग्रुप को दिए गए विज्ञापनों से मिलता है.
ब्यूरो ऑफ़ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन के आंकड़ों के मुताबिक दैनिक जागरण को साल 2015 से 2019 तक 85 करोड़ 78 लाख 31 हज़ार पांच सौ बहात्तर रुपए का विज्ञापन मिला. जागरण ग्रुप के अंग्रेजी अख़बार मिडे-डे को 2 करोड़ 41 लाख पांच हज़ार चार सौ पैंतालीस रुपए का विज्ञापन मिला. वहीं जागरण के उर्दू अख़बार इंक़लाब को 57 लाख, नौ हज़ार दो सौ उन्तालीस रुपए का विज्ञापन दिया गया. यानी जागरण ग्रुप के तीनों अख़बारों को मिलाकर सिर्फ पांच साल के भीतर कुल 88 करोड़, 77 लाख, 26 हज़ार दो सौ छप्पन हज़ार का विज्ञापन सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा दिया गया है.
मोदी सरकार से पहले जागरण को मिले विज्ञापनों की बात करें तो यह कम है. कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान जागरण को साल 2010-11 में 13 करोड़, 68 लाख, आठ हज़ार तीन सौ दो रुपए का, 2011-12 में 13 करोड़, 66 लाख 60 हज़ार दो सौ नब्बे रुपए का, 2012-13 में पांच करोड़, 90 लाख, 13 हज़ार सात सौ अठहत्तर रुपए का विज्ञापन मिला. इसी दौरान अगर जागरण समूह के अंग्रेजी अख़बार मिड-डे को मिले विज्ञापन की बात करें तो 2010-11 में उसे 35 लाख, 53 हज़ार छह सौ चौतीस, 2011-12 में 24 लाख, 78 हज़ार 76 रुपए और 2012-13 में सात लाख, 48 हज़ार आठ सौ पचहत्तर रुपए का विज्ञापन मिला.
मोदी सरकार के आते ही जागरण को मिलने वाले विज्ञापन की दर लगभग दोगुना हो गई. साल 2015-16 की बात करे तो इस साल जागरण को 22 करोड़, 31 लाख, पांच हज़ार चार सौ चौवालीस रुपए, 2016-17 में 21 करोड़, 85 लाख, 44 हज़ार, 5 सौ 64 रुपए, 2017-18 में 36 करोड़ 40 लाख, 80 हज़ार 3, सौ 56 रुपए, 2018-19 में 5 करोड़, 21 लाख 01 हज़ार 2 सौ 08 रुपए का विज्ञापन दैनिक जागरण को मिला. यहीं स्थिति मिड-डे की भी रही. मिड-डे का विज्ञापन भी तेजी से बढ़ा.
इसके अलावा अगर भारत सरकार के डिजिटल विज्ञापन की बात करें तो साल 2015-19 के बीच जागरण समूह को 2 करोड़ 68 लाख, 38 हज़ार नौ सौ 77 रुपए का विज्ञापन दिया गया. वहीं मिड डे को 77 लाख 18 हज़ार पांच सौ 54 रुपए का विज्ञापन इस दौरान मिला.
यह तो सिर्फ केंद्र सरकार के आंकड़ें हैं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी कम विज्ञापन नहीं देती है. उसके आंकड़ें आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. उसे हम हासिल नहीं कर पाए.
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