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जुबैर का इंटरव्यू: 'उन्होंने पूछा- भारत इतना गरीब है, कोई आपको फैक्ट-चेक के लिए पैसे क्यों देगा?'
आप बेंगलुरु में अपने परिवार के पास वापस आ गए हैं, घर लौटने के बाद कैसा लग रहा है?
यह सब बहुत व्यस्त रहा. मुझसे बहुत से शुभचिंतक मिलने आ रहे हैं. परिवार के लोग, पड़ोसी… उनमें से कई मुझे ऑल्ट न्यूज़ वाले जुबैर के तौर पर नहीं जानते, वह मुझे सिर्फ जुबैर के नाम से जानते हैं. रात के 12 बजे तक लोगों का आना-जाना लगा रहता है. मेरे कुनबे में बहुत से लोग नहीं जानते थे कि मैं वास्तव में क्या काम करता हूं ... मेरी गिरफ्तारी के बाद ही उन्हें मेरे काम के बारे ठीक से पता चला.
क्या आपको उनका समर्थन मिल रहा है या मुसीबतों से दूर रहने की हिदायत? जैसा कि परिवार में अक्सर होता है, आपका परिवार हमेशा चाहता है कि आप सावधानी से लिखें और बोलें?
ज्यादातर लोग बहुत खुश हैं और उन्हें गर्व महसूस हो रहा है. ऐसा मैं मुझसे मिलने आने वाले सभी लोगों के लिए कह सकता हूँ. लेकिन जैसा कि आपको पता है, परिवार में कुछ बड़े हैं जिन्होंने मुझसे सतर्क रहने के लिए कहा. वे कहते हैं, "तुम जानते हो यह सरकार कैसी है. हम नहीं चाहते कि तुम रुको लेकिन जो कहो सावधानी से कहो." जो लोग मुझे जानते हैं वह बहुत गौरवान्वित हैं.
आपने सोचा था कि जमानत मिल जाएगी, या फिर आपको लगा था कि लंबे समय तक अंदर रहना पड़ सकता है?
पहले जब मुझे दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया तो मैंने वकीलों से बात की थी. मामला इतना कमजोर था कि मुझे यकीन था कि भले इसमें समय लगे लेकिन कम से कम 14 दिनों के बाद मुझे जमानत तो मिल ही जाएगी. लेकिन फिर कहानी में यूपी पुलिस भी आ गई. सीतापुर का मामला भी काफी कमजोर था लेकिन फिर मेरे खिलाफ कई एफआईआर दर्ज कर दी गईं. तिहाड़ में न्यायिक हिरासत के दौरान मैंने अखबार में पढ़ा कि (मामलों की जांच के लिए) एसआईटी का गठन किया जा रहा है. तब मुझे लगा कि...अच्छा, ये लंबा प्लान कर रहे हैं.
जब आपको यूपी पुलिस सीतापुर ले गई उसके बारे में बताइए?
मुझे जहां ले जाया गया वह सीतापुर लॉकअप के परिसर में ही एक ऑफिस की तरह था. वहां 35-40 पुलिसवाले थे. उन्होंने मुझसे सुबह 10 बजे से लगभग शाम 5.30 बजे तक पूछताछ की. यह थोड़ा विचलित करने वाला था, 12 लोग मुझे घेर कर बैठे थे और सवाल दाग रहे थे. वह दो-दो के ग्रुप बना रहे थे और ऐसे छह ग्रुप मुझसे सवाल कर रहे थे. समय-समय पर वरिष्ठ अधिकारी भी बातचीत कर रहे थे. बीच में एक बड़े अधिकारी मेरे पास आए और मुझसे कहा की मैं चिंता न करूं. उन्होंने कहा कि पूछताछ न्यायसंगत प्रक्रिया से की जाएगी और अगर मैं किसी सवाल का जवाब देना न चाहूँ तो मैं ऐसा कर सकता हूं.
पूछताछ किस बारे में हो रही थी?
लगभग सभी अलग-अलग तरीकों से एक ही सवाल पूछ रहे थे. शुरू-शुरू में उन्होंने सीधे-सादे प्रश्न किए. मेरे बचपन के बारे में, मैं कहां पैदा हुआ, मेरे दोस्तों और पड़ोसियों के बारे में, मेरे इंजीनियरिंग के दिनों के बारे में, उन्होंने मेरे हर रिश्तेदार का नाम पूछा, उनमें से कितने विदेश में हैं … कितने सऊदी या दुबई में रहते हैं. मुझे लगता है वह सऊदी या पश्चिम-एशिया से मेरा कोई संबंध जोड़ना चाहते थे, कि कोई तो कनेक्शन होगा इसका बाहर.
मुझसे कई बार पूछा गया कि मैं कितनी बार जामिया और जेएनयू गया हूं. कितनी बार दुबई गया हूं क्योंकि मेरे वहां रिश्तेदार हैं. वे यह जानकर थोड़ा हैरान हुए कि मैं नहीं गया था और पूछा कि क्या मैं यह बात छुपा रहा हूं.
मेरे काम पर भी सवाल किए - कि मैं केवल यूपी से संबंधित फैक्ट-चेक क्यों करता हूं, अन्य राज्यों से क्यों नहीं?
उन्होंने वाकई ऐसा पूछा?
हां थोड़ा 'इस पर क्यों नहीं बोलते' जैसा कुछ था. आप केवल हिंदुओं का फैक्ट-चेक क्यों करते हैं? कमलेश तिवारी की हत्या पर आपने ट्वीट क्यों नहीं किया? आप हमेशा यूपी के बारे में ट्वीट क्यों करते हैं, केरल या तमिलनाडु के बारे में क्यों नहीं?
ऐसे सवालों का जवाब कोई कैसे दे पायेगा?
मैंने उनसे कहा कि अगर हम यूपी से जुड़ी फर्जी ख़बरों का पर्दाफाश कर रहे हैं तो यह राज्य की कानून व्यवस्था के लिए अच्छा है. हम अपनी रिपोर्ट्स के लिए पुलिस से भी बात करते हैं, लेकिन वे घूम फिर कर वापस पूछने लगते हैं कि मैं मुस्लिम कट्टरपंथियों के बारे में अधिक बातें क्यों नहीं करता. मैंने उन्हें उन रिपोर्ट्स का हवाला दिया जिसमें मैंने नियमित रूप से टीवी चैनलों पर दिखने वाले तथाकथित इस्लामी विद्वानों का पर्दाफाश किया था, जो हिंदुओं को गाली देते हैं या पंचिंग बैग बन जाते हैं.... और कैसे वह हेट स्पीच को बढ़ावा देते हैं. लेकिन मुझे नहीं पता मैं उन्हें समझा पाया या नहीं. एक दिलचस्प बात यह थी कि वह शायद ऑपइंडिया के लेखों का जिक्र कर रहे थे और यहां तक कि उन्होंने मुझसे जॉर्ज सोरोस के ऑल्ट न्यूज़ को फंड करने के बारे में भी पूछा.
यूपी पुलिस द्वारा जॉर्ज सोरोस का ज़िक्र करना तो सीधे-सीधे एक दक्षिणपंथी स्क्रिप्ट की और इशारा करता है?
हां, मैं हंसा और उनसे पूछा कि क्या वे एक दक्षिणपंथी विचारक के ट्विटर थ्रेड का जिक्र कर रहे हैं. मुझे याद है उन्होंने ऐसे ही आरोप लगाए थे जो वायरल हो गए थे. मुझे लगता है कि वे समझ गए थे कि मैं किसकी बात कर रहा था. फिर उन्होंने पूछा कि भले ही जॉर्ज सोरोस से नहीं, लेकिन क्या यह सच नहीं है कि आपको विदेशी फंडिंग मिलती है? वह समझ नहीं पा रहे थे कि भारत में जो लोग एक अखबार के 10 रुपए भी नहीं देते हैं, वह ऑल्ट न्यूज़ को 1,000 रुपए क्यों दान करेंगे.
तो आपको उन्हें डोनेशन/सब्सक्रिप्शन मॉडल समझाना पड़ा?
हां (हंसते हुए). उनका आशय कुछ ऐसा था कि 'भारत इतना गरीब देश है, कोई भी आपको सिर्फ फैक्ट-चेक करने के लिए पैसे क्यों देगा.”
लेकिन मुझे एक बात कहनी होगी कि जब मुझसे भाजपा के खिलाफ लिखने के बारे में सवाल किया गया तो एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे बीच में ही रोक दिया.
यह एक तरह की रेडीमेड कॉन्सपिरेसी थ्योरी है, न केवल ऑल्ट न्यूज़ के खिलाफ, बल्कि किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ है जो सत्ता-विरोधी के रूप में देखा जाता है - कि हमें रहस्यमयी विदेशी फंडिंग मिलती है.
देखा जाए तो यह काफी हास्यास्पद है...लेकिन जब आपके साथ ऐसा हो रहा हो तो यह कितना गंभीर हो जाता है?
मुझे पता था कि मैं जो कुछ भी कहूंगा वह मीडिया में नहीं आएगा. उदाहरण के लिए, रेजरपे वाले सवाल पर मैंने बहुत स्पष्ट कहा था कि हम किसी ऐसे व्यक्ति से डोनेशन नहीं ले सकते जिसका भारतीय बैंक में खाता नहीं है. यह तकनीकी रूप से असंभव है. हम डोनर्स के पैन नंबर भी लेते हैं. मुझे लगा कि मैंने बहुत स्पष्टता से बता दिया और पुलिस अधिकारी भी मेरी बात समझ गए... लेकिन फिर जब मैंने अखबार देखा तो ख़बरें चल रही थीं कि कैसे हमें पाकिस्तान, सीरिया और अन्य देशों से पैसे मिलते हैं. मैंने जो कहा वह न्यूज़ में नहीं आया ... इसलिए मुझे समझ में आ गया था कि मैं कुछ भी बोलूं फर्क नहीं पड़ता.
यह बात कहां से निकली कि आपको एक ट्वीट करने के 2 करोड़ रुपए मिलते हैं?
मुझे नहीं पता...ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा गया था. मुझसे ऑल्ट न्यूज़ ज्वाइन करने के बारे में पूछा गया, कि मैं प्रतीक को कैसे जानता हूं, क्या मुझे मुकुल सिन्हा (प्रतीक सिन्हा के पिताजी) की मोदी-विरोधी एक्टिविज़्म के बारे में पता था, क्या मैं उसके बारे में जानकर ऑल्ट न्यूज़ से जुड़ा था? लेकिन इस आरोप के बारे में मुझसे पूछा ही नहीं गया कि क्या मैंने दो करोड़ रुपए लिए. मेरा मतलब...कोई सोच भी कैसे सकता है “कि एक बंदे को ट्वीट के लिए दो करोड़ रुपए मिल सकते हैं.” बीजेपी आईटी सेल भी ऐसा दावा करने से पहले दो बार सोचेगी.
इस सबके बीच आपके दिमाग में क्या चल रहा था?
मैं ऑल्ट न्यूज़ की फंडिंग और फाइनेंसेस के बारे में बात करने के दौरान बहुत सहज था. प्रतीक, निर्झरी आंटी (प्रतीक सिन्हा की माताजी) और मैंने अक्सर इस पर चर्चा की है, विशेषकर हमारी फंडिग को लेकर फैली अफवाहों और गलत जानकारी की वजह से. इसलिए हमने सब कुछ बहुत पारदर्शी और नियमों के अनुसार रखा है. मेरे “अनऑफिशियल सुब्रमण्यम स्वामी” फेसबुक प्रोफाइल के बारे में भी सवाल उठे जहां मैं अक्सर न्यूज़ रिपोर्ट्स पर व्यंग्य करता था. उदाहरण के लिए त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब का बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि महाभारत के दौरान इंटरनेट था. यदि आप इस पर मेरी टिप्पणी को संदर्भ से हटकर देखेंगे, तो ऐसा लगेगा कि एक मुसलमान महाभारत या हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ा रहा है. लेकिन ऐसा नहीं था.
दिलचस्प बात यह है कि मैं एक ऐसे पुलिस अधिकारी से मिला जिन्होंने कहा कि वह 2015 से मेरे पेज को फॉलो करते हैं और वह उन्हें काफी पसंद था.
लेकिन क्या पूछताछ इस दिशा में हो रही थी कि आप हिंदुओं का मज़ाक क्यों उड़ाते हैं?
सीतापुर में मुझसे पूछा गया कि मैंने बजरंग मुनि की माफी पर ट्वीट क्यों नहीं किया? कहा गया कि मैंने केवल उनकी बलात्कार की धमकी को ट्वीट किया था, लेकिन पुलिस द्वारा मामला दर्ज करने के कुछ घंटे बाद उन्होंने जो माफी मांगी उसका वीडियो ट्वीट नहीं किया था. मैंने कहा कि मैं क्यों करूं? उनका वीडियो मुझे माफी जैसा नहीं लगा और यह कोई बहाना नहीं हो सकता.
वे इस बात से बहुत हैरान थे कि ऑल्ट न्यूज़ के 15 कर्मचारियों में से केवल तीन मुसलमान हैं, जिनमें से एक मैं हूं. वे चाहते थे कि मैं सभी कर्मचारियों के नाम बताऊं, तो मैंने उनका नाम बताया. उनमें से दो-तीन तो अचंभित थे कि हमारे लगभग सभी सहकर्मी हिंदू हैं - "तुम हिंदू हो के हिंदुओं के खिलाफ लिखते हो". मैंने कहा कि हम ऐसा नहीं करते...हम केवल गलत सूचना फैलाने वाले लोगों के खिलाफ लिखते हैं. इसके अलावा, हमारे अधिकांश डोनर्स हिंदू हैं.
दिल्ली मामले में, मैंने समझाया कि मैंने केवल एक फिल्म के दृश्य को ट्वीट किया था और ऐसे उदाहरण भी हैं जहां वही ट्वीट सरकार के समर्थकों ने भी किया है. उन्हें यह अच्छा नहीं लगा कि मैंने 2014 का जिक्र किया. इसके तुरंत बाद उन्होंने भी ऑल्ट न्यूज़ की फंडिंग के बारे में पूछना शुरू किया, लेकिन पिछले सभी मामलों में भी मेरा यही अनुभव रहा है. पूछताछ ऑल्ट न्यूज़ की फंडिंग को लेकर ही हो रही थी. उन्होंने मुझे डोनर लिस्ट दिखाई और पूछा कि कोई 40,000 रुपए क्यों डोनेट करेगा.
वे मुझसे अच्छे से बात कर रहे थे लेकिन पटियाला हाउस कोर्ट में मैं थोड़ा चौंक गया जब उन्होंने हम पर विदेशी चंदा लेने का आरोप लगाया और कहा कि मुझे सीधे मेरे खाते में पैसा मिल रहा था. हालांकि मुझे लगता है कि पूछताछ के दौरान वे आश्वस्त थे कि हमें भारतीय खातों के माध्यम से ही पैसा मिला है. चाहे रेजरपे हो या इंस्टामोजो, आप विदेशी कार्ड से पैसे नहीं भेज सकते.
मुझे लगता है कि कई पत्रकार जो सत्ता के खिलाफ रहते हैं, किसी न किसी तरह उम्मीद करते हैं कि उनके दरवाजे पर भी सीबीआई या ईडी या आईटी विभाग दस्तक देगा. लेकिन जब तक ऐसा हो न जाए, तब तक आप वास्तव में तैयार नहीं रहते.
मुझे याद है मैंने अपने दोस्तों से कहा था कि मुझे यकीन है कि मुझे 2020 के मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुझे गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान कर दी थी. लेकिन कोई नई एफआईआर हुई तो क्या होगा? क्योंकि ऐसा हो चुका है, आप जानते हैं कि जिग्नेश मेवानी के साथ क्या हुआ. मेरे दोस्तों ने कहा कि मैं बिना बात के परेशान हो रहा हूं. हमने सोचा कि स्थिति इतनी खराब नहीं होगी. मुझे नहीं लगा था ऐसा होगा. लेकिन फिर…
अपने परिवार से दूर जेल में रहने का विचार अच्छे-अच्छों को तोड़ सकता है. एक समय आता है जब सोचते हैं कि क्या यह सब उचित है. क्या आपको ऐसे ख्याल आए?
शायद एक-आध बार आए हों, कि अगर मैं ऑल्ट न्यूज़ में नहीं होता तो जापान में होता, क्योंकि मैं इससे पहले नोकिया में काम करता था. मेरे माता-पिता कहते थे कि मैं ज़्यादा कमाऊंगा. लेकिन मुझे लगता है कि जो मैंने ऑल्ट न्यूज़ में किया उससे मुझे बहुत सुकून मिला है. जेल जाने के बाद मुझे जो समर्थन मिला है उससे मेरा विश्वास और मजबूत हुआ है. अब मुझे लगता है कि मुझे इंजीनियरिंग नहीं मास कम्युनिकेशन करना चाहिए था. शुरू से यही करना था.
फर्जी ख़बरें एक समस्या हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या है कि अधिकांश फर्जी ख़बरें मुस्लिम समुदाय के बारे में फैलाई जाती हैं. यह चिंताजनक है. ज्यादातर प्राइम टाइम डिबेट हिंदू बनाम मुस्लिम को लेकर होती हैं. मुझे पता है कि मेरा समुदाय किस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है, उन्हें कैसे निशाना बनाया जा रहा है. पत्रकारिता करने के साथ-साथ मैंने हमेशा यह महसूस किया है कि मुझे इस पर ध्यान देना चाहिए.
यह अनुभव एक तरह से बहुत व्यक्तिगत है. मैं भी उन बहसों को देखती हूं जिनके बारे में आप बात कर रहे हैं, लेकिन यह मुझ पर उतना सीधे प्रभाव नहीं डालती जितना कि आप पर पड़ता है... क्योंकि आप एक मुसलमान हैं.
हां, खासकर न्यूज़ चैनलों पर... और जिस तरह के हैशटैग वह हर शाम इस्तेमाल करते हैं. यह बेहद दुखदायी है... सिर्फ मेरे लिए नहीं. जब मैंने नुपुर शर्मा की टाइम्स नाउ वाली क्लिप शेयर की, तो यही मेरा इरादा था. यह पहली बार नहीं है जब किसी ने पैगंबर या इस्लाम को गाली दी हो. मेरी टाइमलाइन पर कई लोग आते हैं और इस्लाम और पैगंबर के बारे में हर तरह की बातें कहते हैं, मैंने कभी इसकी परवाह नहीं की.
लेकिन इस मामले में सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी की प्रवक्ता एक बड़े न्यूज़ चैनल पर जाती है, इस तरह की बातें करती है और एंकर उसे रोकने के बारे में भी नहीं सोचती. मुझे याद है आपने अपने शो में दिखाया था कि नूपुर ने दो अन्य चैनलों- न्यूज़ 24 और रिपब्लिक भारत पर भी यही बात करने की कोशिश की और उन्हें वहीं रोक दिया गया. मैं वास्तव में न्यूज़ चैनल और न्यूज एंकर को कॉल आउट करना चाहता था, और मुझे यह बुरा लगता है कि लोग न्यूज़ चैनल की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि एक अलग दिशा में जा रहे हैं.
नुपुर की बातों पर ध्यान दिलाने के लिए आपकी आलोचना भी हुई है. शायद आपने शेखर गुप्ता का लेख पढ़ा हो. लेकिन मूल रूप से सवाल यह है कि क्या नुपुर की बातों पर ध्यान दिला कर आपकी धर्मनिरपेक्ष या उदारवाद दिख रहा है. तर्क है कि आपने नुपुर की बातों को ईशनिंदा के रूप में उजागर किया, यही आपका मुख्य इरादा था. और यह एक पत्रकार का काम नहीं है.
आप जैसा कह रही हैं वैसे अधिकांश लेखों या आलोचनाओं को मैंने नहीं पढ़ा है. लेकिन मुझे लगता है कि जो लोग ऐसा कह रहे हैं, उन्होंने वास्तव में मेरे ट्वीट नहीं पढ़े हैं या उससे जुड़े ट्वीट्स को नहीं देखा है. कहीं मैंने ईशनिंदा का जिक्र तक नहीं किया.
मेरा इरादा चैनल को कॉल आउट करने का था. मैंने टाइम्स नाउ, विनीत जैन को टैग किया है. मेरा मुख्य उद्देश्य न्यूज़ एंकर को कटघरे में लाना था, कि कैसे उन्होंने हिंदू बनाम मुस्लिम बहस को सामान्य बना दिया है. लोगों को दूसरे धर्मों को गाली देने के लिए उकसाया है, अभद्र भाषा को बढ़ावा दिया है. मैं इस बात पर प्रकाश डालना चाहता था कि कैसे यह चैनल वास्तविक मुद्दों पर बात नहीं करते हैं. मैंने तो यहां तक कह दिया है कि ये चैनल धर्म संसद से भी बदतर हैं. मुझे नहीं पता लोगों ने ऐसा क्यों समझा कि मेरा इशारा ईशनिंदा की तरफ है.
क्या आपने सोचा था कि आपका ट्वीट इतना वायरल होगा? और इतने बड़े राजनयिक विवाद में तब्दील हो जाएगा?
बिल्कुल नहीं. मैंने कल्पना नहीं की थी कि मामला यहां तक पहुंच जाएगा. लेकिन मुझे लगता है कि यह कहना गलत है कि इससे “भारत का अपमान” हुआ, यह भाजपा का अपमान था. इस घटना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो निंदा हो रही थी उसे दिखाने का मेरा मकसद यह उजागर करना था कि एक पार्टी के प्रवक्ता द्वारा भारत को कैसे शर्मिंदा किया जा रहा है.
क्या आप कभी इस बारे में असहज महसूस करते हैं कि यह ईशनिंदा का मामला कैसे बन गया?
जी हां, खासकर कानपुर की घटना पर. मुस्लिम नेताओं के सिर कलम करने के बयान, अंधेरी में रैलियों में शामिल छोटे बच्चे. जिम्मेदार पार्टियों के नेताओं द्वारा नुपुर को फांसी देने की मांग के साथ यह मामला बहुत गंभीर हो गया. मेरे विचार से नुपुर को उनकी पार्टी से निलंबित किया जाना उनकी गिरफ्तारी से बड़ा है. उनकी गिरफ्तारी की मांग करने का क्या मतलब है? निलंबन से एक संदेश पहुंचा है.
क्या आपको लगता है कि अब ट्विटर पर आपको एक स्पष्ट बयान देना चाहिए था कि आप इस पूरे ईशनिंदा प्रकरण का समर्थन नहीं करते हैं, जो स्वरूप इस विवाद ने ले लिया है?
मैंने तब स्पष्टीकरण देने के बारे में नहीं सोचा था, शायद मुझे देना चाहिए था, मुझे नहीं पता. मेरे खिलाफ पूरा अभियान चला, लोग मेरी गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि मैं जेल जा सकता हूं. लोगों ने मुझे सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह दी. मैं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा था. लोग मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर पुरस्कारों की घोषणा कर रहे थे, तो एक तरह से सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो गया था.
लेकिन मैंने जिस पुलिस अधिकारी के बारे में बताया, जिन्होंने मेरे सुब्रमण्यम स्वामी पेज को पसंद किया था, उन्होंने कहा कि मुझे नुपुर का वीडियो ट्वीट नहीं करना चाहिए क्योंकि भारत में लोग बहुत भावुक हैं. एक प्रकार से मैंने इस स्तर की नाराजगी की कल्पना भी नहीं की थी. पता नहीं, लेकिन मेरा इरादा हमेशा वास्तव में न्यूज़ चैनल को बेनकाब करने का ही था.
यह बड़ी बात है कि कुछ लोग सत्ता की ताकत के आगे भी अपने सिद्धांतों पर टिके रहते हैं. आपके मामले में, ऐसा लगता है कि आपकी फैक्ट-चेकिंग ने आपको कानून के निशाने पर ला दिया है. क्या आपको कभी-कभी नहीं लगता कि आप अपनी व्यक्तिगत, शारीरिक स्वतंत्रता दांव पर क्यों लगा रहे हैं? आप जानते हैं कि आपको जेल में डालने के और भी प्रयास हो सकते हैं, फिर भी आप यह सब जारी रखने की हिम्मत कहां से लाते हैं?
मेरे शुभचिंतकों से. आपको पता है कि जहां मैं हूं, एक मुसलमान के लिए उस जगह तक पहुंचना, मेरे पास जितना प्रभाव डालने की क्षमता है उसे पाना कठिन है. इतने सारे शुभचिंतकों ने मुझसे कहा है कि मैं उस विशेषाधिकार का सदुपयोग करूं और उन्हें निराश न करूं. अब जब मेरे पास यह प्रतिष्ठा है, तो मुझे इसका अच्छी तरह से उपयोग करना चाहिए. मेरी गिरफ़्तारी के बाद सब डर गए, कि जब ट्वीट या फैक्ट-चेक करने पर गिरफ्तार हो सकते हैं, तो ग्राउंड रिपोर्टर्स का क्या होगा. मुझे लगता है कि इस कारण से भी मैं जो पत्रकारिता करता हूं उसे करते रहना महत्वपूर्ण है.
मुझे मेरी पत्नी का बहुत बड़ा सहारा रहा है. मेरी गिरफ्तारी तक मुझे नहीं पता था कि वह इतनी मजबूत है. मैंने उससे यह कहा नहीं है... लेकिन जब मैं जेल में था तो उसने वास्तव में मेरे माता-पिता का बहुत ख्याल रखा. अन्यथा वे पूरी तरह से टूट गए होते, वह बहुत राजनीतिक नहीं हैं इसलिए यह उनके लिए बहुत मुश्किल रहा है.
जेल में आप सबसे ज्यादा क्या मिस करते थे?
अपनी तीन महीने की बेटी के साथ खेलना.
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