क्या 2 मई को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा का लेना-देना जिन्ना की तस्वीर से था?
तीन दिन पहले अलीगढ़ से भाजपा के नेता और सांसद सतीश गौतम द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) प्रशासन को लिखे गए एक पत्र से बवाल खड़ा हो गया है. गौतम ने स्टूडेंट यूनियन के भवन में जिन्ना की दशकों पुरानी तस्वीर के होने के औचित्य पर सवाल खड़ा किया था. पत्र के बाद एएमयू छात्रों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव हुआ. तमाम मीडिया समूहों ने इसकी रिपोर्टिंग भी की है. हिंदू युवा वाहिनी और एबीवीपी के सदस्यों ने कथित तौर पर एएमयू छात्रों पर हमला किया. इसके विरोध में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया जिस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया.
जैसे ही लाठीचार्ज की तस्वीरें मीडिया में आईं, इसे लेकर तमाम तरह की कहानियां बनाई जाने लगीं. इनमें से कुछ कहानियों को मुख्यधारा के मीडिया ने जस का तस उठा लिया. कुछ ने लिखा कि दक्षिणपंथी गुटों और एएमयू छात्रों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ, कुछ के मुताबिक दक्षिणपंथी गुट जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए गए थे लेकिन एएमयू के छात्रों ने हिंसक तरीके से उनका विरोध किया. पर इनमें से कोई भी कहानी पूरी तरह सच नहीं है.
एएमयू में वास्तव में क्या हुआ?
2 मई को एएमयू प्रशासन ने पूर्व उपराष्ट्रपति और एएमयू के पूर्व कुलपति रहे हामिद अंसारी को लाइफटाइम मेंबरशिप अवार्ड देने के लिए आमंत्रित किया था.
अंसारी कार्यक्रम के आयोजन से थोड़ा पहले ही यूनिवर्सिटी कैंपस पहुंच गए लिहाजा उन्हें यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में ले जाया गया. थोड़ी ही देर में वहां एबीवीपी और हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं का हुजूम इकट्ठा हो गया. उनके साथ पुलिस भी थी. इनके हाथों में लाठी-डंडे और दूसरे हथियार थे. भीड़ में लोग नारे लगा रहे थे- ‘एएमयू के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’, और ‘एएमयू मुर्दाबाद’, ‘जिन्ना मुर्दाबाद’.
ज्यादातर नारों के निशाने पर पूर्व उपराष्ट्रपति थे और ऐसा लग रहा था कि एबीवीपी और हिंदू युवा वाहिनी के लोग उनके ऊपर हमले की नीयत से आए थे. स्टूडेंट यूनियन की तरफ से दाखिल की गई शिकायत में कहा गया है कि वे हामिद अंसारी पर हमले की नीयत से आए थे.
एबीवीपी और हिंदू युवा वाहिनी के छह कार्यकर्ताओं को विश्वविद्यालय प्रशासन के लोगों ने पकड़ा और बाद में उन्हें पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बजाय उन्हें छोड़ दिया. इससे नाराज यूनिवर्सिटी के छात्रों ने मुख्य द्वार पर धरना देना शुरू कर दिया. छात्रों की मांग थी कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो लेकिन पुलिस ने इनकार कर दिया.
एफआईआर दर्ज करने से पुलिस के इनकार के बाद छात्र थाने की तरफ मार्च करने लगे. इसके जवाब में पलिस ने छात्रों के ऊपर लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले छोड़े. छात्रों के ऊपर कुछ अज्ञात लोगों ने पत्थर भी चलाए.
घटना की रिपोर्टिंग कैसे हुई?
‘दक्षिणपंथियों ने नहीं पीटा एएमयू के छात्रों को’
स्क्रॉल और न्यूज़18 ने दावा किया कि हिंदूवादी संगठनों ने एएमयू के छात्रों को पीटा. जबकि यह सच नहीं है. सच्चाई यह है कि एएमयू छात्रों और हिंदुवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं का आपसमें कोई आमना-सामना ही नहीं हुआ.
‘दक्षिणपंथियों ने जिन्ना का पुतला नहीं फूंका’
द ट्रिब्यून ने ख़बर छापी की हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों ने कथित तौर पर जिन्ना का पुतला दहन किया. यह दावा गलत है क्योंकि कोई पुतला दहन नहीं हुआ. हालांकि यह सच है कि तमाम नारों के साथ ही ये लोग ‘जिन्ना मुर्दाबाद’ के नारे भी लगा रहे थे.
‘बीजेपी कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज नहीं हुआ’
हिंदी वेबसाइट आजतक ने अपनी ख़बर में दावा किया कि एएमयू के छात्र नहीं बल्कि बीजेपी कार्यकर्ताओं के ऊपर पुलिस ने लाठी चार्ज किया. ख़बर इस तरीके से लिखी गई थी कि बीजेपी कार्यकर्ता एएमयू परिसर से जिन्ना की तस्वीर हटाना चाहते थे तभी उन पर लाठी चार्ज किया गया. बाद में छात्रों की शिकायत पर आजतक ने ख़बर हटा ली.
‘दक्षिणपंथियों द्वारा जिन्ना की तस्वीर हटाने की मांग पर छात्रों ने विरोध नहीं किया’
एनडीटीवी समेत तमाम वेबसाइटों ने इस बाबत ख़बरें चलाई कि हिंदूवादी संगठनों द्वारा जिन्ना की तस्वीर हटाने की मांग के विरोध में एएमयू के छात्रों ने प्रदर्शन किया. ये पूरी तरह गलत है. छात्रों ने तब प्रदर्शन किया जब पुलिस ने पकड़े गए छह हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं को बिना कार्रवाई के छोड़ा दिया. एनडीटीवी ने प्रोफेसर शफी किदवई के बयान को भी गलत तरीके से चलाया. किदवई ने कहा- ‘जिन्ना एएमयू कोर्ट के संस्थापक सदस्य थे.’ एनडीटीवी ने चलाया- ‘जिन्ना एएमयू के संस्थापक थे.’
‘हिंदूवादी संगठनों और छात्रों के बीच कोई संघर्ष नहीं हुआ’
अमर उजाला समेत तमाम बड़े समाचार वेबसाइटों ने ख़बर चलाई कि जब हिंदूवादी संगठन जिन्ना का पुतला दहन करने की कोशिश कर रहे थे उसी वक्त एएमयू के छात्रों से उनका टकराव हुआ. इससे हिंसा बढ़ती गई. यह पूरी तरह बेबुनियाद बात है. छात्रों का हिंदूवादी संगठनों से कोई आमना-सामना ही नहीं हुआ. अमर उजाला ने यह ख़बर भी चलाई कि पुलिस ने कोई लाठीचार्ज नहीं किया.
‘पुलिस ने कोई फायरिंग नहीं की’
दैनिक हिंदुस्तान ने अपने वेबसाइट पर पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने की ख़बर लगाई. ख़बर में दावा किया गया कि पुलिस की गोली से दो लोग घायल हुए हैं. हिंदुस्तान कहता है कि हिंदूवादी संगठन एएमयू के कुलपति का पुतला फूंक रहे थे इस दौरान यूनिवर्सिटी प्रशासन के साथ उनकी मारपीट हुई. बाद में एएमयू के छात्रों ने एएसपी सिटी और एसएसपी के साथ भी मारपीट की. तब पुलिस को आंसूगैस, लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा. पुलिस ने फायरिंग नहीं की लिहाजा किसी के गोली से घायल होने का सवाल नहीं है.
जिन्ना इस विवाद में कैसे आए?
एएमयू छात्र संघठन और एएमयू शिक्षक संघ ने शिकायत की थी कि हिंदूवादी संगठनों की कोशिश उपराष्ट्रपति पर हमले की है. लेकिन ज्यादातर मीडिया ने इस शिकायत को अनदेखा कर दिया. सारा ध्यान स्टूडेंट यूनियन की बिल्डिंग में लगी जिन्ना की तस्वीर पर मोड़ दिया गया. इस पूरे विवाद को ऐसा रंग दे दिया गया मानो एएमयू के छात्र जिन्ना की तस्वीर के लिए लड़ाई लड़ रहे थे और हिंदूवादी संगठन जिन्ना का विरोध कर रहे थे.
मीडिया ने हिंदूवादी संगठनों को ऐसे देशभक्त के रूप में प्रचारित किया जो एएमयू के एक भवन से खलनायक जिन्ना की तस्वीर हटवाने के लिए यत्न कर रहे थे. इस विवाद की शुरुआत और जड़ में जिन्ना कहीं था ही नहीं. यह यूनिवर्सिटी परिसर के भीतर सुरक्षा में चूक का मुद्दा था. यह शायद हिंदूवादी संगठनों द्वारा हामिद अंसारी के ऊपर हमले की असफल कोशिश थी, जिसे अब जिन्ना की आड़ में दबाया जा रहा है.