इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में छात्रा की आत्महत्या के एक पखवाड़े से ज्यादा बीत जाने के बाद भी पुलिस ने नहीं दर्ज किया है एफआईआर.
इंदौर शहर में पखवाड़े भर पहले एक मेडिकल छात्रा की आत्महत्या बड़ी चर्चा का विषय बनी लेकिन फिर अचानक से मौत की यह ख़बर सुर्खियों से दूर हो गई. इसने कई तरह की शंकाओं और आशंकाओं को बल दिया. यह मामला इंदौर की एक निजी शिक्षण संस्था इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के एनेस्थेसिया विभाग में पीजी की छात्रा डॉ. स्मृति लाहरपुरे का है.
11 जून की रात स्मृति ने कॉलेज होस्टल में ही ड्रिप के जरिये एनेस्थिसिया का ओवरडोज लेकर आत्महत्या कर ली थी. शुरुआत में पुलिस ने घटना के लिए मृत छात्रा के एक सहपाठी की ओर इशारा किया था. लेकिन अगले ही दिन स्मृति के मोबाइल में मिले चार पन्ने के सुसाइड नोट से पुलिस की यह कहानी दम तोड़ गई.
सुसाइड नोट में स्मृति ने कॉलेज प्रबंधन के ऊपर कई गंभीर आरोप लगाए है. नोट के मुताबिक कॉलेज के संचालक सुरेश भदौरिया और एनेस्थेसिया विभाग की एचओडी डॉ. केके खान ने स्मृति को लगातार इतना प्रताड़ित किया कि उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा.
इस दुखद घटना का दूसरा पक्ष बेहद संगीन है और कई तरह के सवाल खड़े करता है. पुलिस ने लगभग एक पखवाड़ा बीत जाने के बावजूद इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की है. क्यों? इस एक सवाल से कई और सवाल पैदा होते हैं मसलन पुलिस की कार्रवाई का प्रोटोकॉल क्या है? क्या मामले के आरोपियों के रसूख के चलते पुलिस मामले को दबाने में लगी हुई है? अगर किसी मामले में एफआईआर ही दर्ज नहीं होगी तो पुलिस जांच का दावा किस आधार पर कर रही है? पंद्रह दिन से ज्यादा बीत जाने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं करना क्या पुलिस के रवैये पर खुद ही सवाल नहीं खड़ा करता? ये सारे सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब बहुत भरोसा पैदा करने वाला नहीं है.
स्मृति लाहरपुरे का सुसाइड नोट (1/4)
आत्महत्या के मामले में, जिसमें पुलिस को सुसाइड नोट भी मिला है, पुलिस की कार्रवाई का तरीका क्या है? मध्यप्रदेश सरकार में पूर्व डीएसपी रहे रवि अतरोलिया बताते हैं, “किसी की प्रताड़ना के कारण कोई व्यक्ति डिप्रेशन या दबाव में आकर आत्महत्या करता है और परिस्थितियां आत्महत्या की वजह को इंगित करती हैं कि तो पुलिस को सबसे पहले तत्काल मुकदमा दर्ज करना चाहिए. इंडेक्स कॉलेज की छात्रा के आत्महत्या के मामले में सुसाइड नोट मिला है, जिसमें आत्महत्या की वजह भी बताई गई है. ऐसे में पुलिस को बगैर किसी दबाव के धारा 306 (आत्महत्या के लिए प्रेरित करना) के तहत मुकदमा दर्ज करना चाहिए था.” जाहिर है पुलिस ने अब तक यह काम नहीं किया है.
इंदौर के डीआईजी हरि नारायणचारी मिश्र का कहना है, “छात्रा की आत्ममहत्या के मामले की जांच अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी कर रहे हैं. छात्रा ने जो सुसाइड नोट लिखा है वह करीब 20 पन्नों का है. उसमें कॉलेज प्रबंधन के ऊपर भी आरोप लगाया गया है. जांच के बाद उस पर कार्रवाई होगी.” डीआईजी मिश्रा के इस गोलमोल जवाब से संकेत मिलता है कि पुलिस की कार्रवाई ईमानदार तरीके से नहीं हो रही है.
सुसाइड नोट (2/4)
इस मामले से जुड़े पुलिस और मेडिकल कॉलेज को सूत्रों का कहना है कि कॉलेज के मालिक सुरेश भदौरिया की राजनीति और अफसरशाही में ऊंची पहुंच के चलते पुलिस के हाथ बंधे हुए हैं. हालांकि कोई भी ऑन रिकॉर्ड बात करने को तैयार नहीं है. यही हाल स्मृति के साथी डॉक्टरों की भी है. इस रिपोर्टर ने कई छात्रों से इस बारे में बातचीत करने की कोशिश की लेकिन सबने अपने भविष्य और कॉलेज के गुस्से का निशाना बनने से बचने के लिए चुप रहने की बात कही.
स्मृति का सुसाइड नोट सामने आने के बावजूद भी अब तक पुलिस की ओर से न तो कॉलेज प्रशासन के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है ना ही पत्र में लिखे गए दोनों व्यक्तियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है.
इंदौर के एडिशनल एसपी नागेंद्र सिंह कहते हैं, “एफआईआर दर्ज न होने की वजह मृतका के परिवार द्वारा बयान नहीं देना है. इसी वजह से अब तक एफआईआर नहीं हुई. परिवार के बयान हाल ही में दर्ज हुए हैं. अब जल्द जांच पूरी कर एफआईआर दर्ज की जाएगी.”
सुसाइड नोट (3/4)
पुलिस सिर्फ एफआईआर दर्ज करने में ही आनाकानी नहीं कर रही बल्कि अब वह इस घटना के इतने दिन बीत जाने के बाद एक नई कहानी सामने लेकर आई है कि स्मृति ने प्रेम प्रसंग की वजह से आत्महत्या किया.
इस आरोप पर स्मृति के पिता किशोर लाहरपुरे बिफर जाते हैं. वे अपनी बेटी का किसी के साथ अफेयर की बात को सिरे से खारिज कर देते हैं. वे कहते हैं, “स्मृति को गए 15 दिन बीत चुके हैं लेकिन अब तक एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई है. साफ तौर पर कॉलेज प्रबंधक और एचओडी मेरी बेटी की मौत के लिए जिम्मेदार हैं. सुसाइड नोट पुलिस को मिला है, अब उसे क्या सबूत चाहिए.”
भोपाल के अरेरा कॉलोनी में रहने वाले किशोर लाहरपुरे ने साल 2016 में अपनी बेटी स्मृति लाहरपुरे का एडमिशन खुड़ैल स्थित इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में करवाया था. स्मृति के कथित सुसाइड नोट के मुताबिक कॉलेज प्रबंधन हर साल काउंसलिंग के दौरान बताई गई फीस से लगभग दो लाख रुपए ज्यादा वसूल रहा था.
सुसाइड नोट (4/4)
सुसाइड नोट के मुताबिक कॉलेज प्रबंधन द्वारा ज्यादा फीस वसूलने के विरोध में स्मृति और अन्य तीस छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी, जिस पर कोर्ट ने छात्रों के हक़ में फैसला सुनाते हुए पुरानी फीस ही लिए जाने के निर्देश दिए थे.
हाईकोर्ट के इसी आदेश के चलते स्मृति और अन्य छात्रों के साथ कॉलेज प्रबंधन का रवैया बेहद दुश्मनी भरा और कठोर हो गया था. स्मृति ने अपने सुसाइड नोट में विस्तार से इन बातों का जिक्र किया है. इसके मुताबिक एनेस्थीसिया विभाग की एचओडी डॉ. केके खान उन्हें छोटी-छोटी बात पर टॉर्चर करने लगी और अक्सर बेवजह ही उसे अपमानित करती थीं.
डॉ. स्मृति ने अपने सुसाइड नोट में केके खान के अलावा मेडिकल कॉलेज के मालिक सुरेश भदौरिया पर भी कई संगीन आरोप लगाए हैं. लेकिन पुलिस ने उनके खिलाफ भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है ना ही कॉलेज प्रबंधन की ओर से किसी को बयान के लिए अब तक बुलाया है.
स्मृति के पिता किशोर लाहरपुरे पुलिस की इस कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं, “पुलिस दबाव में काम कर रही है.” वो आगे बताते हैं, “उनकी बेटी पढ़ने में बेहद होशियार थी और साथ ही बेहद दबंग भी थी.वो आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठा सकती. यह आत्महत्या नहीं, हत्या है.”
स्मृति की मौत के बाद से उनका परिवार एक अनजान से डर के साए में जी रहा है. उनके पिता का कहना है कि इसी डर की वजह से वे लोग अपनी बेटी की मौत के दस दिन बाद पुलिस के सामने बयान देने पहुंचे. स्मृति के पिता कॉलेज प्रबंधन के ऊपर एक और संगीन आरोप लगाते हुए कहते हैं, “कॉलेज प्रबंधन ने स्मृति के साथ पढ़ने वाले उसके साथी छात्रों पर भी दबाव बना रखा है. कॉलेज प्रबंधन द्वारा छात्रों पर उनके पक्ष में बयान देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. इसके लिए उन्हें धमकी के साथ ही एक्जाम में पास करने जैसा लालच भी दिया गया है.”
स्मृति की मौत के तत्काल बाद उसके पोस्टमॉर्टम के वक्त कुछ छात्रों ने कॉलेज प्रबंधन पर मनमानी फीस वसूलने और स्मृति को प्रताड़ित करने के आरोप लगाए थे, लेकिन अब कोई भी छात्र इस मामले में कुछ भी बोलने से बच रहा है.
स्मृति के पिता बैंक में कर्मचारी हैं. मिडिल क्लास परिवार है. दो छोटे भाई सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. 2016 में स्मृति ने 35 लाख रुपए डोनेशन देकर इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया था. किशोर लाहरपुरे ने बताया कि बैतूल के भामनगांव में 14साल तक नौकरी करने के बाद स्मृति और अन्य दो बच्चों की पढ़ाई की खातिर उन्होंने भोपाल में ट्रांसफर करवा लिया था. स्मृति की शुरुआती पढ़ाई सेंट्रल स्कूल में हुई. मिडिल क्लास परिवार होने के कारण उन्होंने अपना मकान मुचलके पर रख कर 35 लाख का लोन लिया था.
इंडेक्स कॉलेज और सुरेश भदौरिया का विवादों से नाता
डॉ. स्मृति लाहरपुरे की मौत के बाद एक बार फिर इंडेक्स मेडिकल कॉलेज सुर्खियों में आ गया है. ये पहला मौका नहीं है जब यह कॉलेज विवादों में घिरा है. पिछले सत्र में भी 22 छात्रों के नाम काउंसलिंग में होने के बाद भी प्रबंधन द्वारा उन्हें एडमिशन देने के बजाय अन्य छात्रों को डोनेशन के नाम पर मोटी रकम लेकर एडमिशन दिया गया था. उस वक्त भी इसे लेकर छात्रों द्वारा जमकर हंगामा किया गया था. लेकिन कुछ दिनों बाद मामला ठंडा पड़ गया. वहीं दूसरी ओर इंडेक्स कॉलेज के मालिक सुरेश भदौरिया के खिलाफ व्यापमं घोटाले में सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल कर रखा है.
इस मामले में शक की सुई हर तरफ से मालिक सुरेश भदौरिया और विभागाध्यक्ष केके खान की ओर उठ रही है लेकिन कॉलेज प्रबंधन सिरे से स्मृति के सुसाइड नोट को यह कहकर खारिज कर रहा है कि उसका सुसाइड नोट चार पन्नों का नहीं बल्कि 26 पन्नों का है.
इंडेक्स कॉलेज के पीआरओ आरसी यादव कहते हैं, “मीडिया में स्मृति की मौत का सिर्फ चार पन्नों का सुसाइड नोट सामने आया है,लेकिन उसने 26 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा है जो पुलिस के पास है.” इसके आगे आरसी यादव एक बार फिर से अपने वही आरोप दोहरा देते हैं कि स्मृति के आत्महत्या करने की वजह उसका लव अफेयर था. हालांकि इस संबंध में न तो वो कोई पुख्ता सबूत देते हैं ना ही कोई तीसरा व्यक्ति इस दावे की पुष्टि करता है.
अफसरशादी, राजनीति में सुरेश भदौरिया की पैठ
इंडेक्स मेडिकल कॉलेज की शुरुआत के पहले भदौरिया कई धंधों में अपनी किस्मत आजमा चुका है. नब्बे के दशक में भदौरिया ने इंदौर में होटल अमलतास खरीदा था. इसी दौरान उन्होंने देवास में बियर फैक्ट्री स्थापित की. हालांकि नियमों का पालन ना करने की वजह से शासन द्वारा फैक्ट्री को बंद कर दिया गया. सुरेश भदौरिया के पिता ग्वालियर में पुलिस अफसर रहे हैं.इस कनेक्शन के चलते पुलिस महकमे में उनकी अच्छी जान पहचान है. इन संबंधों के चलते एक समय भदौरिया ने होटल और शराब के धंधे में खूब तरक्की की. भदौरिया को जानने वाले एक व्यक्ति के मुताबिक उनके एक डीजीपी से गहरे ताल्लुक थे. इस कारण उनका शराब का धंधा जमकर फला फूला,हालांकि कुछ वक्त बाद सुरेश भदौरिया ने शराब के धंधे से दूरी बना ली. लेकिन आज भी उनके परिवार के लोग शराब के धंधे से जुड़े हुए हैं.
इसी दौरान उन्होंने पूर्व एमसीआई चेयरमैन केतन देसाई से अच्छे संबंध स्थापित कर लिए. इसका फायदा उन्हें मिला और इंडेक्स मेडिकल कॉलेज की नींव पड़ी. चिकित्सा क्षेत्र में आए भदौरिया की अफसरशाही में तगड़ी पकड़ है. सूत्र बताता है कि मध्य प्रदेश के कई नौकरशाहों का काला धन भदौरिया के धंधे में लगा है.
डॉ. स्मृति लाहरपुरे की आत्महत्या किसी लड़की का मर जाना भर नहीं है. ये मौत है उन सपनों की, जो मध्यवर्ग अपने बच्चों के जरिए देखता है, ये मौत है हौसले की और उन लड़कियों के जज़्बातों की जो अपनी पलकों तले नए भारत के ख्वाब बुन रही हैं.
शिक्षा की बदतर दशा के लिए मध्य प्रदेश बहुत पहले से इज्जत कमा चुका है. यहां व्यापमं घोटाले के तार मुख्यमंत्री से लेकर संघ के बड़े-बड़े नेताओं तक से जुड़ चुके हैं. व्यापमं घोटाले से संबंधित 50 से ज्यादा लोगों की मौत इसी मध्य प्रदेश में रची गई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी इस मामले में सवाल करना चाहिए कि उनके सूबे में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की यह कैसी रीति चल रही है. इस मामले में एक पिता को न्याय चाहिए जिसने अपने जीवन भर की कमाई अपनी बेटी पर लगा दी, इस मामले में एक बेटी को न्याय चाहिए जिसका दोष सिर्फ इतना था कि उसने कॉलेज द्वारा मनमानी फीस वसूलने का विरोध किया था.
स्मृति ने अपने सुसाइड नोट में सुरेश भदौरिया और केके खान की प्रताड़नाओं की पूरी कहानी कही है. डॉक्टर स्मृति के साथी दोस्त इतने दबाव में हैंकि कॉलेज प्रबंधन को शपथपत्र लिखकर क्लीनचिट दे रहे हैं. ऐसी हालत में व्यापम घोटाले में व्यापक मौतों के लिए बदनाम मध्य प्रदेश में एक और मौत गुमनाम हो जाय तो अचरज की बात नहीं.