क्या गद्दी बचाए रखने के लिए भाजपा के नेता नौजवानों की छाती पर बम लगाकर ही मानेंगे?
दिल्ली चुनाव में प्रचार के दौरान भाजपा के नेता मारने काटने और गोली मारने की खुलेआम बातें कर रहे हैं, लोगों को भड़का रहे हैं. इनका ये कॉन्फिडेंस देख कर कोई भी सोच-विचार वाला आदमी अचंभे में पड़ जाता है.
दिमाग में एक सवाल आता है- इन्हें कोई रोक क्यों नहीं रहा? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है मगर मैं इस लेख के जरिए कोशिश करता हूं.
समझ लीजिए, ये भाजपा के नेता इतना कॉन्फिडेंस से बात कर रहे है क्योंकि इन्हें पता है कि हमारी कानून व्यवस्था इन्हें छुएगी तक नहीं. ज्यादा से ज्यादा निर्वाचन अधिकारी चंद घंटों के लिए उन्हें प्रचार करने से रोक देंगे, बस नाम के वास्ते कुछ कठोर शब्द कहेंगे और आगे बढ़ जाएंगे. रोक का समय ख़त्म होते ही इन नेताओं की बयानबाजी फिर शुरू हो जाएगी.
एक और बात: अगर एक नेता पर निर्वाचन आयोग ने रोक भी लगा दी, तो उसकी जगह दूसरा नेता ले लेगा मगर मारने काटने और गोलीबाजी वाली बयानबाजी जारी रहेगी. वहीं घृणा पैदा करने वाली भाषा का इस्तेमाल होता रहेगा.
आप ये अभी होते हुए साफ देख सकते हैं.
अनुराग ठाकुर, कोई ऐसे-वैसे नेता नहीं बल्कि जूनियर वित्त मंत्री है भारत के, उन्होंने "देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को" के नारे लगवाए. प्रवेश वर्मा, जो कि एक सांसद हैं, उन्होंने कहा कि शाहीन बाग के लोग दिल्ली वालों के घर में घुसकर इनकी बहन-बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे, मार देंगे. ऐसे घिनौने बयान देने के बाद, निर्वाचन अधिकारी ने इन्हें चुनाव प्रचार करने से रोक लगा दी. फिर भी इन दोनों नेताओ ने माफी नहीं मांगी, ना ही बोला कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. बल्कि प्राइम टाइम डिबेट पर भाजपा के स्पोक्सपर्सन उनका बचाव करने में लगे हैं.
अब इन पर रोक लगाने के कुछ ही दिन बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली पधारे और बोले, "अगर ये लोग बातों से नहीं मानेंगे तो गोली से मान जाएंगे". अब ये योगी पर रोक लगाने के बाद दो और नेता मैदान में उतर जाएंगे और ऐसे घिनौने बयानों का सिलसिला बिना रुकावट चलता रहेगा.
इन बयानों पर रोक लगाने का बस एक ही तरीका है. इन नेताओं को पद से हटा देना चाहिए और लोगों तक एक सीधा संदेश भेजना चाहिए कि ऐसी उकसाने वाली हरकतें हमारे देश में बर्दाश्त नहीं की जाएंगी. लोगों तक यह संदेश इसी समय पहुंचना बहुत जरुरी है कि वह नेता जो लोगों को खुलेआम मारने काटने के लिए उकसा रहा है, ऐसे नेताओं की हमारे लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है.
अगर निर्वाचन अधिकारियों और हमारे कानून व्यवस्था ने इस पर अभी रोक नहीं लगाई, तो राम ही जाने और क्या-क्या हमें सुनना पड़ेगा. यह वाकया बस दिल्ली के चुनाव तक ही सीमित नहीं है. हमारे कानून व्यवस्था और निर्वाचन आयोग का एक्शन आगे आने वाले चुनावों के लिए भी मायने रखता है.
सोचिए ऐसे बयानों का परिणाम बंगाल में कैसा होगा? तमिलनाडु में कैसा होगा? बिहार में क्या होगा?
आखिर चल ही गई गोली
अभी आप दिल्ली में ही देख लीजिए, तीन हादसे हो चुके है, जहां युवाओं ने बंदूक निकालकर अनुराग ठाकुर की मनोकामना पूरी कर दी. एक वाकया जामिया में हुआ जहां एक छात्र को गोली लगी, दूसरा वाकया शाहीन बाग में हुआ जहां एक शख्स ने हवा में गोली चलाई. इन दोनों मामलों में साफ दिखाई दिया की गोली चलाने वाले लोग हिंदुत्ववादी प्रोपगेंडा के शिकार होकर यह हरकत कर रहे थे. हमले के बाद दोनों लड़कों ने जोर-जोर से अपना नाम बताया और "हिन्दू" शब्द का इस्तेमाल करके नारेबाजी की.
यह दो वाकया हमारे समाज की बदलती संवेदनशीलता का छोटा सा उदाहरण है. ये दोनों लड़के अपने मर्दाने अंदाज़ में अपने प्रिय बयानबाज हिंदुत्ववादी नेताओं और उनके समर्थकों को बताने की कोशिश कर रहे थे कि, "मैंने आपकी बात सुन लिया है. ये हिन्दू जाग गया है. मैं दुश्मनों को सबक सिखा रहा हूं. गोली चला रहा हूं! जय श्री राम!"
अभी फिलहाल इनके हाथ में देसी कट्टा है, कल इन युवा मर्दों की छाती पर बम भी हो सकता है.
इस सब में एक बात और सोच में डालने वाली है: भाजपा के समर्थक आखिर "गोली मारो, मार दो, काट दो" जैसे बयानों का बचाव करने में क्यों लगे हुए हैं?
आज कल भाजपा की तरफ से हमें बचाव के तीन बहाने देखने को मिल रहे है:
1. समर्थक गोली चलाने वाले लोगों का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ रहे हैं.
2. समर्थक कह रहे हैं कि ये दोनों वाकया नकली है.
3. समर्थक कह रहे हैं कि मुसलमानों ने सालों से ऐसी हरकतें की हैं, इससे बदतर हमले किए हैं, तो हिंदुओं को ही शांति की सलाह क्यों दी जा रही है?
भाजपा के कट्टर समर्थकों ने मानो तय ही कर लिया है कि उनकी पार्टी और उनके नेता आखिरकार कुछ भी गलत कर ही नहीं सकते. अगर कोई कुछ गलत करता है, तो वह बस विपक्षी दलों के लोग करते हैं. भाजपा के प्रोपगेंडा का असर इतना जोरदार है कि एक तबके के समर्थक अब ये मान चुके हैं कि उनके नेता ही सच्चे देशभक्त हैं, सच्चे हिन्दू हैं और वही हैं जो देश का भला चाहते हैं. वैसे ही जो इन नेताओं के समर्थन में खड़े हैं वो ही सच्चे देशभक्त और हिन्दू हैं.
यही समर्थक यह भी मान चुके हैं कि बाकी सब के सब- जो लोग उनके मनपसंद नेताओं का समर्थन नहीं करते या उन्हें सवाल पूछते हैं- ये लोग बस देश का नुक़सान करना चाहते हैं और हिन्दुओं से नफ़रत करते हैं. अब आप इस प्रकार के समर्थकों को कितना भी समझाने की कोशिश करेंगे, कितना भी उनको संविधान के बारे में बताएंगे, कितना भी उन्हें गणतंत्र का पाठ पढ़ाएंगे, वे नहीं मानेंगे. पर क्यों?
क्योंकि जो लोग संविधान वगैरह की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे है, वहीं तो इनके दुश्मन हैं! और दुश्मनों की बात भला कोई सुनता है. कोई नहीं सुनता.
उसी तरह, जो भाजपा के समर्थक नहीं हैं उन्होंने भी कोशिश करना लगभग छोड़ ही दिया है. अब बस एक तरफ से गाली आएगी तो दूसरी तरफ से और गंदी गाली ही मिलेगी. बातचीत का समय गया, अब बस युद्ध होगा. ऑनलाइन होगा, फिर आगे जाकर सड़कों पर भी होगा.
हम अच्छे है, आप घटिया
इस "हम और आप" की प्रवृति को अंग्रेजी में ट्राइबलिज्म कहते हैं- कबीलाई मानसिकता.
युवाल नोआ हरारी और डेसमंड मोरिस जैसे लेखकों ने इसके बारे में काफी लिखा है. संक्षेप में बताएं तो, ये प्रवृत्ति की वजह से इंसान बाहरी दुश्मनों से अपने "ट्राइब" को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, वह अपनी जान तक देने को राज़ी हो जाता है. ये दुश्मन असल में अस्तित्व में है भी या नहीं, वह अलग बात है. अगर किसी इंसान के मन में एक बनावटी दुश्मन का डर पैदा कर दें, तो वह इंसान अपने "ट्राइब" के लोगों के संरक्षण में लग जाता है.
यह तकनीक दुनिया के तमाम नेता खूब अच्छे से जानते हैं और इसका इस्तेमाल बार-बार, सालों से करते आए हैं. यही तकनीक अंग्रेज़ों ने भी इस्तेमाल की थी, जब उन्होंने हिन्दू और मुसलमान के बीच झगड़े लगवाए. उनका फायदा हुआ क्योंकि इसी तरह लोगों के झगड़े में वह अपनी गद्दी को बचाते रहे, हमें लूटते रहे. उनको हम बाहर तब ही फेंक पाए जब सारा भारत साथ आया और उन्हें दुश्मन की नज़र से देखने लगा.
यही तकनीक आज अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप इस्तेमाल कर रहे हैं, जो अपने समर्थकों को बताते रहते हैं कि मेक्सिको के लोगों को और घुसपैठियों को दूर रखेंगे तभी अमेरिका तरक्की कर पाएगा. अमेरिका में सबसे रईस 0.1% लोग और रईस होते जा रहे हैं और निचले तबके के लोग और गरीब. मगर उनके बढ़ते प्रभाव की तरफ कोई ज्यादा देख नहीं रहा क्योंकि अमेरिकी लोगों के असली दुश्मन तो बॉर्डर के उस पार बैठे हुए हैं!
इसी तकनीक का इस्तेमाल हिटलर ने किया था जब उसने डंके की चोट पर कहा कि यहूदी जर्मनी के दुश्मन हैं. उसने फिर "असली जर्मन" लोगों का इस्तेमाल करके लाखों लोगों का कत्ल करवाया. जब तक लोग यहूदियों पर नज़र गड़ाए बैठे थे, तब तक हिटलर राज करता रहा. उसको गद्दी से हटाने का और रोकने का काम आखिर में मित्र देशों को करना पड़ा.
यह तकनीक कंबोडिया में पोल पोट ने इस्तेमाल की थी जब खमेर रूज ने चश्मे पहनने वाले लोगों तक को दुश्मन करार देकर मार दिया और उन्हें सामूहिक कब्रिस्तान में दफना दिया. पोल पोट माओवादी विचारधारा वाला नेता था जिसने लाखों कंबोडियाई नागरिकों की घिनौने तरीके से हत्या करवाई. क्यों? क्योंकि उसका मानना था कि वहां के लोग माओ की सीख के मुताबिक नहीं चल रहे थे, क्योंकि वे लोग कम्युनिस्ट विचारधारा के खिलाफ थे और, अपने देश "कम्पूचिया" के भी खिलाफ थे.
यह तकनीक पुतिन ने 1999 में इस्तेमाल की थी जब उन्होंने चेचन्या के लोगों को दुश्मन करार कर, एक खतरनाक युद्ध छेड़ दिया था और खुद सत्तानशीं हो गए थे. आज 20 साल हो गए हैं और पुतिन अभी भी रूस की सत्ता में जमे हुए हैं.
भाजपा के नेता इस तकनीक का इस्तेमाल कर अपने समर्थकों को बार-बार बता रहे हैं कि हमारे दुश्मन, हमारे देश के गद्दार, शाहीन बाग जैसी जगहों में बैठे हुए हैं. ऐसे लोगों को पाकिस्तान प्रोत्साहित कर रहा है. इन्हें कपड़ों से पहचाना जा सकता है. नेता बोल रहे हैं कि ये "शाहीन बाग" के लोग रास्ते बंद कर असली देशवासियों को दफ्तर जाने से रोक रहे हैं, बच्चों को स्कूल जाने से रोक रहे हैं, भारत को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं. नेताजी ये भी कहते हैं कि ये शाहीन बाग वाले लोग हमारी बहन बेटियों पर वार करेंगे, उनका बलात्कार करेंगे, सड़क से आपके घर में घुसेंगे. नेताजी अपने समर्थकों को पुरानी कहानियां बताते हैं जिनमें मुगलों ने भारत पर हमला किया था, मंदिर तोड़े थे, हिन्दुओं को मारा था. नेताजी बार-बार याद दिलाते हैं कि ये गद्दार कश्मीर से भी आते हैं, इसलिए उन्हें पूरी दुनिया से काटकर एक खुली जेल में आज रखा गया है.
लगे हाथ नेताजी ये भी बोल देते है कि केजरीवाल से लेकर, राहुल गांधी तक, ममता बनर्जी से लेकर उमर अब्दुल्ला तक, सब के सब "ऐसे लोगों" को समर्थन देते है. क्योंकि यही तो है इनका घिनौना वोट बैंक!
ये सब बोलने के बाद, हमारे भाजपा के नेता पूछते हैं, "ऐसे गद्दारों के साथ क्या करना चाहिए?"
तब उनके मंत्रमुग्ध समर्थकों का पुरजोर जवाब आता है, "गोली मारो सालो को!"
मंत्रमुग्ध भाजपा समर्थक
अब आप ही सोचिए, आप कैसे बात करेंगे मंत्रमुग्ध समर्थकों से?
कुछ समर्थकों ने अब बंदूक उठा ली है और निकल पड़े हैं वो शाहीन बाग और जामिया की तरफ बदला लेने. बात इस हद तक बढ़ चुकी है कि इन बदला लेने वाले लोगों की एक तरफ तारीफ हो रही है या फिर ये कहा जा रहा है कि अपोजिशन ने हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए इन्हें बंदूक थमा कर भेजा है. रिपब्लिक जैसे प्रोपगेंडा मंच बता रहे हैं कि ये हमले इस लिए हो रहे है क्योंकि सच्चे देशभक्त ये शाहीन बाग में प्रोटेस्ट करने वाले "दुश्मनों" से गुस्सा हैं. तो उनके ऊपर होने वाले हमले के जिम्मेदार- अर्णब गोस्वामी जैसों के मुताबिक- ये शाहीन बाग में बैठे लोग ही हैं, है ना?
अब आते हैं तीसरी बात पर, जो कि सबसे ज्यादा चिंताजनक बात है. आज जब आप बंदूक लहराते हुए नौजवानों की बात छेड़ते हैं, तो कुछ कट्टर भाजपा समर्थक आकर आपको बताएंगे कि मुसलमान अतंकवादी और उग्रवादी लोगों ने सालों से हिन्दुओं को मारा है. और अब हिन्दू जाग गया है.
अब आप सोचिए: ये मैं जरूर मानता हूं कि इस्लाम का इस्तेमाल अल कायदा और आईएसआईएस जैसे संस्थाओं ने कबीलाई तकनीक का इस्तेमाल करके, आतंकवादी तैयार किए हैं. ये भी बात बिल्कुल सही है कि पाकिस्तान, जो कि एक मुसलमान "बहुल" देश है, वहां पर आईएसआई ने भारत के प्रति हिंसक विचार रखने वाले लोगों को हम पर सालों से "प्रॉक्सी वार" में लगा रखा है. रैडिकल दिमाग के लोग इस्लाम को तोड़-मरोड़ कर, लोगों के दिमाग में ठूंसकर और ब्रेनवाश कर कर, जिहाद करवाने में लगे हुए हैं.
मगर अब क्या हमारे कट्टर हिंदुत्ववादी ये कहना चाहते है कि हम अपना खुद का एक हिन्दू "जिहाद" शुरू कर दें?
क्या ये भाजपा के समर्थक जो गोली चलाने वाले नौजवानों का बचाव कर रहे हैं, यह कहना चाहते हैं कि हम भी अब अपने नौजवानों को हिंदुत्व की हिंसक पट्टी पढ़ाकर, दिल और दिमाग में गुस्सा भर दें. उनके हाथ में बंदूक पकड़ा कर और छाती पर विस्फोटक बांधकर अन्य देशों के पीछे छोड़ दें? क्या हम ऐसे मानव बम पैदा कर अंदरूनी बनावटी "दुश्मनों" पर छोड़ दें?
और ये सब क्यों? ताकि चंद लालची नेता इसका फायदा उठाकर सालों साल तक सत्ता का मजा लेते रहें?
ये कुछ सवाल सोचने लायक हैं और हमारे "गोली मारो सालों को" चिल्लाने वाले नेताओं को पूछने लायक भी हैं. अगर भाजपा के समर्थक ये सवाल उन्हें पूछें, तो वह या तो जवाब दे देंगे या फिर सवाल पूछने वाले समर्थकों को भी दुश्मन का दर्जा दे देंगे.
आपको मेरी शुभकमनाएं.