वादों के बावजूद बढ़ती बेरोजगारी को रोकने में नाकाम मोदी सरकार
देश में रोजगार का संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) की 2 मार्च 2020 को जारी की गई ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी महीने में देश में बेरोजगारी की दर बढ़कर 7.78 प्रतिशत हो गई है, जो जनवरी 2020 में 7.16 प्रतिशत थी. पिछले चार महीने में यानी अक्टूबर, 2019 के बाद यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है. जो दर्शाता है कि देश में बेरोजगारी का गंभीर संकट न सिर्फ बरकरार है बल्कि और बढ़ गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर बढ़ी है, जबकि शहरी क्षेत्रों में कम हुई है.
इसके अलावा सीएमआईई की पिछले सितंबर से दिसंबर 2019 के चार महीनों की क्वार्टर रिपोर्ट भी दर्शाती है कि देश में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.5 फीसदी पहुंच गई. यही नहीं, देश में शिक्षित लोगों के बीच बेरोजगारी बड़ा विकराल रूप धारण करती जा रही है, उच्च शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गई है.
संयुक्त राष्ट्र की 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत दुनिया का सबसे युवा देश है. जहां 35.6 करोड़ आबादी युवाओं की है. किसी भी देश की तरक्की काफी हद तक वहां के युवाओं को मिलने वाले रोजगार पर निर्भर करती है. लेकिन अगर युवाओं को पर्याप्त रोजगार न मिले तो उनके न सिर्फ सपने टूटते हैं बल्कि अवसाद के कारण उनके गलत कदम उठाने की ओर बढ़ने की संभावना भी रहती हैऔर इसके भयंकर परिणाम भी सामने आ रहे हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट इसकी पुष्टि भी करती है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में किसानों से ज्यादा बेरोजगार लोगों ने आत्महत्या की है. जो अपने आप में एक शर्मनाक रिकॉर्ड है. साल 2018 में 12,936 लोगों ने बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी. जबकि इसी साल 10,349 किसानों ने खुदकुशी की थी. इससे पता चलता है कि देश में बेरोजगारों के अंदर हताशा का क्या आलम है.
युवाओं के रोजगार को 2014 आम चुनावों में प्रमुख मुद्दा बनाने वाली भाजपा सरकार चाहे लाख दावे करे लेकिन रोजगार के मुद्दे पर वह पूरी तरह अफसल और बेबस नजर आ रही है. बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान हर साल दो करोड़ से अधिक रोजगार देने का वादा किया था लेकिन हकीकत यही है कि मोदी सरकार आने के बाद देश में रोजगार का हाल और ज्यादा खराब हुआ है. युवाओं को दो करोड़ रोजगार मिलने की बात तो दूर देश में आर्थिक मंदी आने से लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है. ओटोमोबाइल सेक्टर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है.
भास्कर डॉटकॉम पर अगस्त 2019 में छपी एक खबर के मुताबिक वाहन बिक्री में 19 साल की सबसे बड़ी गिरावट आई है. जिससे 10 लाख लोगों की नौकरियों जाने का खतरा पैदा हो गया है.
हालांकि सरकार के लोग अभी भी आर्थिक मंदी या बेरोजगारी को मानने से इनकार करते नजर आ रहे हैं और इसकी जिम्मेदारी लेने की बात तो दूर बल्कि सरकार के मंत्री उलूल- जलूल बयानों से इसका बचाव भी करते रहते हैं.
हाल ही में केंद्रीय राज्यमंत्री सुरेश अंगड़ी ने अर्थव्यवस्था के बारे में कहा था कि, “ट्रेन और एयरपोर्ट फुल है, लोगों की शादियां हो रही है. इससे साफ पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी है.’’ उन्होंने यह भी कहा था कि ‘‘अर्थव्यवस्था हर तीन साल बाद सुस्त होती है, लेकिन फिर रफ्तार पकड़ लेती है.’’
इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी हास्यास्पद बयान देते हुआ कहा था, “फिल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो फिर देश में सुस्ती कहां है?" हालांकि बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया था.
जब एनएसएसओ ने जनवरी 2019 में बेरोजगारी पर रिपोर्ट जारी कर बताया था कि बेरोजगारी 45 साल में सर्वाधिक है तो सरकार ने न सिर्फ इस पर सवाल उठाए थे बल्कि इसे झूठा भी करार दिया था और कहा था कि यह अंतिम आंकड़े नहीं हैं. हालांकि दूसरी बार सरकार गठन के बाद मई 2019 में श्रम मंत्रालय ने जब बेरोजगारी के आंकड़े जारी किए तो इनके मुताबिक भी देश में 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1% रही थी जो 45 साल में सबसे ज्यादा है. इससे पहले 1972-73 में बेरोजगारी दर का यही आंकड़ा था.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रोहित आजाद से जब हमने बढ़ती बेरोजगारी पर बात की तो उन्होंने बताया, ‘‘देश में बढ़ती इस बेरोजगारी के दो मुख्य कारण है. पहला कारण सरकार का वह अड़ियल रवैया है, जिसमें सरकार पैसे खर्च नहीं करना चाहती. जिससे लोगों के हाथ में पैसा आना कम हो गया है. जब पैसा नहीं है तो लोग खर्च नहीं कर पा रहे हैं. जिससे बाजार और प्राइवेट सेक्टर पर बुरा असर पड़ता है. दूसरा, सरकार बेरोजगारी या आर्थिक मंदी को लेकर गंभीर नहीं दिखती हैं, जो उसके मंत्रियों के बयानों से साबित हो जाता कि वे सच्चाई को स्वीकार करने की जगह उलटे-सीधे बयान देकर इस पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहते हैं.’’
डॉ. रोहित आजाद आगे कहते हैं, ‘‘जब तक सरकार लोगों की मांग को पूरा नहीं करेगी या इस पर कोई उचित कदम नहीं उठाएगी तब तक हालात के और ज्यादा बिगड़ने की संभावना बनी रहेगी. सरकार नहीं चाहती कि उनसे कोई सवाल करे, जिस भी अर्थशास्त्री ने सवाल करने की कोशिश की तो उसे परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर बाहर कर दिया गया.’’
सरकार इस संकट से कैसे उभरे, इस सवाल के जवाब में डॉ. आजाद कहते हैं, ‘‘सबसे पहले अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव करना होगा. इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर या फ्लाईओवर के निर्माण की जगह सरकार को उस क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा जहां नौकरियों ज्यादा से ज्यादा पैदा की जा सकें. ग्रामीण क्षेत्रों की बेरोजगारी को दूर करने के लिए मनरेगा में निवेश बढ़ाना होगा और शहरी क्षेत्र के लिए भी मनरेगा जैसी कोई योजना शुरू करनी होगी. जिससे लोगों के हाथ में पैसा आए और वे खर्च कर सकें. तभी देश को इस गंभीर संकट से निकाला जा सकता है.’’