पत्रकार या जासूस: आखिर वो दस्तावेज क्या हैं और कौन उन्हें दे रहा था?

पत्रकार राजीव शर्मा की दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा की गई गिरफ्तारी पर उठते सवाल.

WrittenBy:बसंत कुमार
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‘‘गिरफ्तारी के दस दिन बीत जाने के बावजूद हमें एफ़आईआर की कॉपी नहीं दी गई है. दिल्ली पुलिस ने ना ही इसे कोर्ट में जमा किया है और ना ही अपनी वेबसाइट पर डाला है. 21 सितंबर को जब मेरे वकील ने पुलिस रिमांड बढ़ाने का विरोध किया तब जांच अधिकारी ने कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि यह ‘ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट’ का मामला है इसलिए एफ़आईआर की कॉपी कोर्ट में जमा नहीं कराई गई है. पटियाला कोर्ट के चीफ मेट्रोपोलिटन जज पवन सिंह राजवंत के कोर्ट में हमने एफ़आईआर की कॉपी के लिए आवदेन दिया, लेकिन 24 सितंबर तक हमें वो नहीं मिला है. यह आरोपी के अधिकारों का हनन है.’’

यह उस पत्र का हिस्सा है जो डॉ प्रतिमा व्यास ने दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के जॉइंट कमिश्नर और डिप्टी कमिश्नर को लिखा गया है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में पढ़ाने वाली प्रतिभा व्यास, पत्रकार राजीव शर्मा की पत्नी हैं जिन्हें हाल ही में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने चीन के हाथों भारत की सुरक्षा से जुड़े गोपनीय दस्तावेज़ देने के मामले में गिरफ्तार किया है. शर्मा को ‘ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट’ की धारा 3, 4 और 5 के तहत गिरफ्तार किया गया था. वो अभी तिहाड़ जेल में बंद हैं. अगर वो दोषी पाए जाते हैं तो 10 साल तक की सज़ा हो सकती है.

अपने तीन पन्नों के पत्र में प्रतिमा व्यास दिल्ली पुलिस पर कई आरोप लगाती हैं. वो एक जगह लिखती हैं, ‘‘मेरे पति की जिस रोज गिरफ्तारी हुई उस रोज पुलिस ने हम दोनों से कुछ कागज़ों पर जबरन हस्ताक्षर करावाया. उन दस्तावेजों पर क्या लिखा था वो हमें पढ़ने तक नहीं दिया गया. इसके अलावा गिरफ्तारी वाली रात (14 सितंबर) को मेरे पड़ोसी जोएल डिमेलो से जब्त किए गए समानों को लेकर हस्ताक्षर कराया गया. उसके बाद एक बार फिर उन्हें 18 सितंबर को स्पेशल सेल के ऑफिस में बुलाकर कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने कुछ साक्ष्य नष्ट कर दिए हैं और साथ ही कुछ नए साक्ष्य गढ़ रही है.’’

61 वर्षीय राजीव शर्मा अपनी पत्नी के साथ पीतमपुरा में रहते हैं. उनका एक बेटा है जो अमेरिका में रहता है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा 14 सितंबर की रात उन्हें उस वक्त हिरासत में ले लिया गया था जब वे जनपथ मार्ग पर स्थित नेशनल मीडिया सेंटर से अपने घर लौट रहे थे. पुलिस उन्हें अपने साथ लेकर उनके घर पहुंची. उसने घर की तलाशी ली. इस दौरान मोबाइल फोन, लैपटॉप और बाकी अन्य कई डाक्यूमेंट पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिये.

शर्मा द्वारा सुरक्षा से जुड़े गोपनीय दस्तावेज़ चीन के खुफिया अधिकारियों को देने के मामले में हुई गिरफ्तारी की सूचना पुलिस ने पांच दिन बाद 19 सितंबर को मीडिया को दी. राजीव शर्मा की गिरफ्तारी के बाद कथित तौर पर दस्तावेज चीन भेजने में उन्हें सहयोग करने वाली एक चीनी महिला और उसके सहयोगी, नेपाली मूल के युवक को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने मीडिया को बताया, ‘‘इंटरनल इंटिलिजेंस से मिले इनपुट के आधार पर फ्रीलांस पत्रकार राजीव शर्मा को 14 तारीख को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था. शुरुआती पूछताछ में यह मालूम चला है कि वो कुछ चीनी खुफिया विभाग के अधिकारियों के संपर्क में थे और रक्षा से जुड़ी कुछ संवेदनशील सूचना उन्हें दे रहे थे. इनसे हुई पूछताछ के आधार पर ही आज सुबह एक चीनी युवती किंग शी और उससे जुड़े एक नेपाली नागरिकता वाले शख्स शेर सिंह को गिरफ्तार किया गया है.’’

डीसीपी संजीव ने आगे बताया, ‘‘40 साल से पत्रकारिता कर रहे शर्मा 2010 से बतौर फ्रीलांसर पत्रकारिता कर रहे हैं. इस दौरान ये चीन की मीडिया कंपनी ‘द ग्लोबल टाइम्स’ के लिए आर्टिकल लिखते रहे हैं. जिसके बाद 2016 में इनका संपर्क चीनी ख़ुफ़िया विभाग के एक अधिकारी माइकल से लिंक्डइन अकाउंट के जरिए हुआ. 2016 से 2018 तक ये माइकल को भारत के रक्षा से जुड़े दस्तावेज़ देते रहे. 2019 में ये जॉज नाम के एक दूसरे चीनी ख़ुफ़िया अधिकारी के संपर्क में आए. जिसे ये लगातार भारत-चीन बॉर्डर पर चल रहे विवाद, सेना की तैनाती, आर्मी का प्रोक्योरमेंट और भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर सरकार की तैयारी से जुड़ी जानकरी दे रहे थे. इस जानकरी को साझा करने के लिए इन्हें मोटी रकम मिलती थी. जो हवाला और एक दूसरे जरिए से इन्हें मिलता रहा है.’’

राजीव शर्मा पर लगे आरोपों पर उन्हें जानने वाले हैरान

यूएनआई और ट्रिब्यून समेत कई मीडिया संस्थानों में लम्बे समय तक काम करने वाले राजीव शर्मा की गिरफ्तारी और उन पर लगे आरोपों पर उन्हें जानने वाले हैरान हैं. आरोप गंभीर होने के कारण कुछ अपना नाम नहीं बताना चाहते हैं, लेकिन वे आरोप पर अचरज जाहिर करते हुए पुलिस की कहानी पर भी कई तरह के सवाल खड़े करते हैं.

भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त (पीआईबी कार्ड धारक) पत्रकारों के लिए जनपथ में बने नेशनल मीडिया सेंटर में राजीव शर्मा का रोजाना आना-जाना होता था. यहां उनके साथ काम करने वाले एक 50 वर्षीय पत्रकार से हमारी मुलाकात दिल्ली के प्रेस क्लब में हुई. वे हमें बताते हैं, ‘‘बीते दस सालों से मैं उन्हें जानता हूं. हम दिन भर मीडिया सेंटर में बैठकर काम करते थे. जब से मैं जानता हूं वो विदेशी मामलों पर अलग-अलग मीडिया संस्थानों के लिए लिख रहे थे. बाकी पत्रकार वहां लगे कम्प्यूटर पर ही अपना लेख लिखते थे, लेकिन वो अपना काम फोन पर ही करते थे. हालांकि शुरू से ही उनकी आदत रात में काम करने की रही है. शाम को हम लोग मीडिया सेंटर से प्रेस क्लब साथ ही आते थे. वो मजाकिया किस्म के आदमी हैं तो मेरी क्या सबकी उससे बनती थी. गिरफ्तारी की खबर से मुझे बहुत हैरानी हुई. अगर 2016 से ऐसा कर रहा था तो हमें कुछ तो पता चलता. लगभग हर रोज हम चार से पांच घंटा साथ ही गुजारते थे. कोई तो बदलाव उसमें दिखता पर कोई बदलाव नज़र नहीं आया. आरोप सही है या गलत यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन मुझे तो कभी ऐसा नहीं लगा.’’

एक नेशनल टेलीविजन चैनल के लिए विदेश मंत्रालय कवर करने वाले पत्रकार रौशन (बदला नाम) बताते हैं, ‘‘उनके सामने मैं काफी जूनियर हूं. अक्सर ही उनसे नेशनल मीडिया सेंटर में मुलाकात होती थी. हमें अगर कुछ समझ नहीं आता था तो हम उनसे पूछ लेते थे. वे तसल्ली से हमें उस विषय के बारे में समझाते थे. उनकी विदेश मामलों में समझ काफी अच्छी है, जिससे हमें काफी फायदा मिलता था.’’

रौशन आगे बताते हैं, ‘‘पहले वे विदेश मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अक्सर दिख जाते थे, लेकिन साल 2018 के बाद वो नहीं दिखे. ऐसा क्यों हुआ ये हमें नहीं मालूम. उन्होंने भी कभी कुछ नहीं बताया, लेकिन सुनने में आया कि उन्हें आने से रोक दिया गया था. विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग में वो नहीं आते थे, लेकिन नेशनल मीडिया सेंटर में लगभग हर रोज ही आते थे.’’

शर्मा को किस तरह के दस्तावेज मिलते थे, किससे मिलते थे, इन सवालों के जवाब में डीसीपी संजीव कुमार यादव ने कहा कि इनके पास पीआईबी कार्ड है जिससे मंत्रालयों में इनकी ‘एक्सेस’ थी. जिस वजह से ये फॉर्मली और इनफॉर्मली तमाम लोगों से मिलते रहते थे और उनसे जो भी जानकारी मिलती थी उसे ये आगे भेज देते थे.

पुलिस के इस बयान पर रौशन कहते हैं, ‘‘ये बात मुझे पच नहीं रही है कि पीआईबी कार्ड का इस्तेमाल करके कोई रक्षा मंत्रालय या विदेश मंत्रालय के अंदर के अधिकारियों से कैसे मिल सकता है. आप पीआईबी कार्ड लेकर सिर्फ मंत्रालयों की ब्रीफिंग में जा सकते है इसके अलावा आपको मंत्रालय के अंदर जाने के लिए पास बनवाना पड़ता है. जिस व्यक्ति या अधिकारी से आपको किससे मिलना है, उसकी जानकारी देनी होती है, उसकी अनुमति के मिलने पर ही आप अंदर जा सकते हैं. हर गेट पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए. ऐसे में यह मुमकिन नहीं की खाली पीआईबी कार्ड लेकर आप अधिकारियों से मिल लें. सबसे बड़ा सवाल यह है कि इनके पास डाक्यूमेंट कौन सा था और वह इन्हें मिला कैसे?’’

आखिर वो दस्तावेज कौन सा है जिसे इन्होंने चीन के ख़ुफ़िया विभाग को दिया है. संजीव कुमार यादव एक तरफ कह रहे हैं कि वह गोपनीय और संवेदशील दस्तावेज थे वहीं दूसरी तरह वो कहते हैं, ‘‘जो भी सूचना इनके पास से भेजी गई है वो इनके सोशल मीडिया पर, मेल पर मौजूद है. जांच एजेंसियों की मदद से उन्हें डाउनलोड किया जा रहा है. उसके बाद मालूम चलेगा कि उन्होंने क्या-क्या सूचना और किस तरह की सूचना साझा की है.’’

23 सितंबर को हिंदुस्तान में छपी एक खबर में बताया गया है कि राजीव शर्मा से बरामद दस्तावेजों की जांच करने के लिए दिल्ली पुलिस ने पत्र लिखकर रक्षा मंत्रालय और ईडी से मदद मांगी है.

राजीव शर्मा को बीते 28 साल से जानने वाले पत्रकार राजीव रंजन नाग पुलिस पर जल्दबाजी में गिरफ्तार करने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘पुलिस के लोग दो तरह की बात कर रहे हैं. एक तरफ वे कह रहे हैं कि राजीव ने रक्षा मंत्रालय से जुडी संवेदनशील सूचना चीन के ख़ुफ़िया विभाग को सौंपा है दूसरी तरफ ये कह रहे हैं कि जो कुछ उन्होंने साझा किया है, जांच एजेंसियों से पता कराएंगे. जब आपको खुद पता नहीं कि दस्तावेज संवेदनशील है या नहीं तो आप मीडिया में आकर क्यों कह रहे है कि चीन को इन्होंने संवेदनशील दस्तावेज दिया. ऐसा लगता है कि आपका इरादा मीडिया ट्रायल का है. एक और सवाल उठता है कि गिरफ्तारी के पांच दिन बाद आप प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं और इतने दिनों बाद भी आप उन दस्तावेजों को पढ़-समझ नहीं पाए. यह सब संदेह पैदा करता है. मैं जितना राजीव शर्मा को जानता हूं वह एक शानदार पत्रकार हैं जिनकी विदेश मामलों पर अच्छी पकड़ है.’’

रौशन इसको लेकर कहते हैं, ‘‘राजीव शर्मा के पास कौन सा दस्तावेज था यह अभी तक पता नहीं चल पाया है. पुलिस ने बस इतना बताया कि दस्तावेज संवेदनशील हैं. मेरे अपने अनुभव से लगता है कि शायद ही कोई अधिकारी उन्हें दस्तावेज देगा क्योंकि अधिकारी भी उन्हें ही दस्तावेज देते हैं जिनकी फिल्ड में पकड़ हो या वे किसी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान के लिए काम करते हों. बीते दस सालों में उन्होंने कोई ऐसी रिपोर्ट की नहीं जिससे सरकार असहज हो जाए, ना ही वो किसी संस्थान से जुड़े थे. ऐसे में कोई उन्हें क्यों दस्तावेज देगा. उन्हें जानने वाले पत्रकार कई तरह की शंकाएं जता रहे हैं. ये सारी शंकाएं तभी दूर होंगी जब पुलिस बताएगी कि आखिर वो जो दस्तावेज चीनी ख़ुफ़िया एजेंसी से साझा करते थे वो क्या है और उन तक वो कैसे पहुंचे.’’

राजीव शर्मा के मामले की पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉक्टर अदिश अग्रवाला कर रहे हैं. वो कहते हैं, पुलिस ने शर्मा को 14 सितंबर को गिरफ्तार किया है. 24 सितंबर तक हमें एफआईआर की कॉपी नहीं दी गई. हमें क्या कोर्ट को भी नहीं दी गई. 25 सितंबर को कोर्ट को और हमें एफआईआर की कॉपी दी गई जबकि यह 24 घंटे के अंदर देना होता है. रही बात गिरफ्तारी की तो उनके पास से कोई ऐसा डाक्यूमेंट बरामद नहीं हुआ है जो संवेदनशील हो. अगर पुलिस यह दावा कर रही है तो उसे पहले यह बताना होगा कि इनके पास वे डाक्यूमेंट आए कैसे? किस अधिकारी ने दिए है. गोपनीय दस्तावेज किसी अधिकारी ने ही दिया होगा, वे उसे अपने घर में तो छाप नहीं सकते.’’

पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के चार दिन बाद इसकी जानकारी मीडिया को देने पर अग्रवाला सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘‘14 सितंबर को उनकी गिरफ्तारी हुई और पुलिस इसकी जानकरी 19 सितंबर को सार्वजनिक की गई. ऐसा क्यों हुआ क्योंकि उन्हें कोई कागज मिला ही नहीं है. कौन सा दस्तावेज मिला है वो अभी तक पता ही नहीं चला है. बस मीडिया में यह कह दिया गया कि गोपनीय दस्तावेज भेजे गए. जहां तक पैसे की बात है तो वे ग्लोबल टाइम्स और सॉउथ एशियन जनरल के लिए लेख लिख रहे थे. उसका मेहनताना मिलता था. और अगर उसमें कुछ गड़बड़ी है तो ईडी मामले की जांच करे, ‘ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट’ की तहत क्यों कार्रवाई हुई. यह सबकुछ बहुत संदेहास्पद है.’’

राजीव शर्मा प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के भी सदस्य हैं. उनकी गिरफ्तारी के बाद प्रेस क्लब ऑफ़ इण्डिया ने नाराजगी जाहिर करते हुए बयान जारी किया है. जिसमें उन्होंने कश्मीरी पत्रकार इफ्तिकार गिलानी समेत कई अन्य पत्रकारों का उदाहरण देते हुए लिखा कि आरोप लगाए गए, उन्हें लंबे समय तक जेल में भी रहना पड़ा लेकिन पुलिस कुछ साबित नहीं कर पाई और वे जेल से रिहा हो गए. प्रेस क्लब का पूरा बयान यहां पढ़ सकते है.

प्रेस क्लब के प्रेजिडेंट आनंद के सहाय न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हमें जो कहना था वो प्रेस रिलीज में बता दिया है. हालांकि हम आपके जरिए एक बात दोहराना चाहते हैं कि जैसे किसी सांसद की गिरफ्तारी के तुरंत बाद लोकसभा अध्यक्ष को जानकारी दी जाती है, जैसे वकील को हिरासत में लेने के बाद बार काउंसिल को जानकारी दी जाती है वैसे ही किसी पत्रकार को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस को तुरंत यह जानकारी प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को देनी चाहिए. ऐसा करने पर कम से कम परिवार के लोगों तक सूचना तो पहुंच जाएगी की उनके परिजन को कहां और क्यों रखा गया.’’

विवेकानंद फाउंडेशन और राजीव शर्मा

राजीव शर्मा एक समय में दक्षिणपंथी थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन से भी जुड़े हुए थे. उसके लिए लिख रहे थे. लेकिन जैसे ही चीनी ख़ुफ़िया अधिकारियों से दस्तावेज साझा करने का मामला सामने आया, उसके बाद राजीव शर्मा का प्रोफाइल पेज विवेकानंद फाउंडेशन की वेबसाइट से हटा दिया गया. साल 2010 में रेडिफ.कॉम पर छपी राजीव शर्मा की एक रिपोर्ट 'तालिबान टार्गेटिंग सिख्स एंड हिन्दू इन पाकिस्तान' प्रकाशित हुई है. इस लेख में इनका परिचय कुछ यूं लिखा हुआ है, ‘‘लेखक नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के सीनियर फेलो और मुख्य संपादक हैं.’’

विवेकानंद फाउंडेशन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के नेतृत्व में शुरू हुआ एक थिंक टैंक है. 2010 में अजीत डोभाल सक्रिय रूप से फाउंडेशन से जुड़े हुए थे. तो क्या अजीत डोभाल और राजीव शर्मा एक दूसरे को जानते थे?

टेलीग्राफ पर छपे एक रिपोर्ट 'ए क्वेश्चन फॉर अजित डोभाल ऑन अरेस्टेड 'स्पाई' में वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने इसको लेकर एक सवाल उठाया है. न्यूज़क्लिक वेबसाइट के लिए शर्मा का इंटरव्यू करने वाले ठाकुरता अजीत डोभाल और शर्मा के संबंधों को लेकर कहते हैं, “शर्मा अजीत डोभाल को अच्छी तरह से जानते थे इसके बारे में कभी छुपाते नहीं थे. यहां पूछा जाने वाला तार्किक प्रश्न यह है कि क्या एनएसए को शर्मा की गतिविधियों की जानकारी नहीं थी?''

जैसा की ठाकुरता ने बताया कि शर्मा, डोभाल से अपनी जान-पहचान का जिक्र अक्सर करते थे. इस बात की ताकीद उन्हें जानने वाले कई पत्रकारों ने हमसे की. कुछ लोगों को यह बड़बोलापन लगता था, वहीं कई लोग इसे सच भी मानते थे.

रौशन बताते हैं, ‘‘बातचीत में वो अजीत डोभाल का जिक्र कभी-कभी करते थे. उनकी विदेशी मामलों की समझ पर कोई शक नहीं था, लेकिन डोभाल से उनके संबंध बेहतर थे, यह मुझे डींग हांकने जैसा लगता था. अगर आपके संबंध बेहतर थे तो आपने अब तक कोई बड़ी खबर ब्रेक क्यों नहीं की? 2014 से भारत सरकार का एक ताकतवर आदमी आपको जानने वाला है तो आपके पास तो काफी जानकारी होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था. सुहाषिनी हैदर जैसे लोग लगातार सरकार को असहज कर देने वाली खबरें करते रहते हैं. कोई सरकार से जुड़ी सूचना ना सही डोभाल को लेकर कोई प्लांटेड खबर भी उन्होंने नहीं किया. फिर इस संबंध को क्या कहा जाए. हालांकि वो अक्सर उनका जिक्र करते थे.’’

चाणक्यपुरी स्थित विवेकानंद फाउंडेशन. हम जब यहां पहुंचे तो सुरक्षा गार्ड ने बताया कि आजकल कोई नहीं आ रहा. बंद है यह.

राजीव रंजन नाग कहते हैं, ‘‘उनके डोभाल से अच्छे ताल्लुकात थे इसमें कोई दो राय नहीं है. विवेकानंद फ़ाउंडेशन से पहले से वो एक दूसरे को काफी अच्छे से जानते थे. मुझे लगता है कि जब डोभाल आईबी प्रमुख थे तब से दोनों के बीच अच्छे ताल्लुकात थे. 2014 के बाद जब वे एनएसए बन गए, तब भी उनका मिलना होता था. जिसका जिक्र वो हमसे करते थे. सिर्फ डोभाल ही नहीं उनके विदेश मंत्रालय के कई अधिकारियों से अच्छे संबंध थे और वे उनकी पार्टियों में जाया करते थे.’’

अजीत डोभाल और राजीव शर्मा के बीच संबंध और बाकी अन्य सवालों के लिए हमने प्रतिमा व्यास से संपर्क किया. हालांकि उन्होंने हमसे बात करने से इंकार करते हुए बोला, ‘‘आप मेरे वकील से बात कर लें. वे सबकुछ जानते हैं.’’

वकील अदिश अग्रवाला इसपर कहते हैं, ''जी उन दोनों के बीच अच्छी बातचीत थी. डोभाल साहब तो सुरक्षा का ही मामला लम्बे समय से देख रहे हैं. हर एजेंसी उनको रिपोर्ट करती है ऐसे में अगर 2016 से राजीव ऐसा कुछ कर रहे थे तो डोभाल साहब को पता होगा. दरअसल ऐसा कुछ हुआ नहीं है. पुलिस जल्दबाजी में उठा ली है. अब देखिए उन्होंने 18 सितंबर को दोबारा बरामदी कागजात बनाए है. ऐसा क्यों हुआ. यह तो जिस रोज गिरफ्तारी होती है उसी वक़्त बनता है.’’

प्रेस क्लब में हमें जो भी शख्स राजीव शर्मा को जानने वाला मिला सबको अजीत डोभाल और राजीव शर्मा के बीच जान-पहचान की खबर थी. अगर सच में डोभाल उन्हें जानते थे तो यह कैसे मुमकिन होगा कि उनके नाक के नीचे कुछ सुरक्षा से खिलवाड़ कर जाए. इसकी जानकारी के लिए हमने अजीत डोभाल के ऑफिस के नंबर पर फोन किया लेकिन हमारी बातचीत नहीं हो पाई.

अमित शाह पर किताब लिख रहे थे शर्मा

राजीव शर्मा गृहमंत्री अमित शाह को लेकर एक किताब लिख रहे थे. जिसका कुछ हिस्सा वो लिख चुके थे. यह उनके कम्प्यूटर पर पड़ा था. इसको लेकर कुछ कागजात भी रखे हुए थे, जिसे पुलिस उस रोज राजीव के घर से जब्त करके ले गई है.

शर्मा के एक साथी आशंका जाहिर करते हैं कि कहीं यह किताब गिरफ्तारी की वजह तो नहीं है. लेकिन शर्मा के वकील अदिश अग्रवाला इससे साफ़ इंकार करते है. वे कहते हैं, ''बिना ठोस सबूत के पुलिस उन्हें उठा ले गई. उन्होंने देखा कि चीन से पैसे आ रहे हैं तो उठा लिया. अरे चीन की पत्रिका के लिए लिखते थे तो उसका मेहनताना मिलता था. 28 सितंबर को जमानत के लिए पटियाला कोर्ट में सुनवाई है. हम अपना पक्ष रखेंगे. हमारा पक्ष मज़बूत है. पुलिस को कुछ खास अब तक मिला नहीं है.’’

सबकी निगाहें एक ही जगह लगी है कि आखिर वो दस्तावेज़ क्या था जिन्हें पुलिस राजीव के घर से उठाकर ले गई. और इससे भी अहम सवाल यह है कि क्या सच में राजीव शर्मा चीन को खुफिया जानकारियां भेज रहे थे?

इस तरह के तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए हमने दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव को फोन किया. लेकिन उन्होंने फोन पर हमें कोई जानकरी देने से मना कर दिया. इसके बाद हमने उन्हें सवालों की एक सूची भेज दी है. अब तक उनका कोई जवाब नहीं मिला है. अगर उनका जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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