अपनी मृत्यु से ठीक एक साल पहले ऑर्वेल ने कहा था कि वह कभी नहीं चाहेंगे कि जिस दुनिया का चित्रण उन्होंने इस उपन्यास में किया है, वह कभी साकार हो.
ओशिनिया की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में यह ज़रूरी है कि आप सोचें कुछ लेकिन बोलें कुछ और. न्यूस्पीक में इस खूबी को ‘डबल थिंक’ का नाम दिया गया है. बिग बॉस की पार्टी और उसके उच्च सदस्यों को डबल थिंक का ‘इंटेलेक्चुअल’ अभ्यास करना पड़ता है. डबल थिंक वह स्थिति है जब एक व्यक्ति एक ही समय में दो बिलकुल विरोधी विचारों को अपने दिमाग़ में स्थान देता है और दोनों विरोधी विचारों को साथ निभाता है. उदाहरण के लिए, अपने भाषणों में लोकतंत्र के घड़ी-घड़ी संदर्भ देने वाला नेता असल में उसकी धज्जियां उड़ाए, तब यह कहा जाएगा कि वह ‘डबल थिंक’ की अपनी बौद्धिक भूमिका निभा रहा है.
ओशिनिया का राजनीतिक-सामाजिक जीवन इसके बिना नहीं चल सकता. वहां नौकरशाहों और पार्टी-सदस्यों द्वारा प्रोपेगेंडा का जो विशाल तंत्र बनाया गया है उसमें पाखंड के बिना नहीं रहा जा सकता. डबल थिंक वहां केवल एक रणनीति नहीं है, वह वहां की आचरण-संहिता का सबसे प्रमुख मूल्य बन गया है. प्रोपेगेंडा के मंत्रालयों के परस्पर अंतर्विरोधी शीर्षक वस्तुतः ‘डबल थिंक’ के असर के नमूने हैं. प्रोपेगेंडा में जो ‘मिनिस्ट्री ऑफ़ पीस’ उसका काम निरंतर युद्ध करना अथवा उसकी संभावनाएं बनाए रखना है.
‘मिनिस्ट्री ऑफ़ ट्रुथ’ का काम प्रोपेगेंडा के विशाल लिटरेचर को तैयार करना, उसे लोगों में फैलाना और लोगों से लगातार झूठ बोलते रहना है. ‘मिनिस्ट्री ऑफ़ लव’ का काम थॉट पुलिस की मदद से लोगों को उठवा लेना और फिर उन्हें भयानक यातनाएं देना है. खुद विंस्टेन स्मिथ जिस अभिलेख विभाग में काम करता है, उसका काम अभिलेखों का परिरक्षण करना नहीं बल्कि फ़िज़िकल फ़ॉर्म में मौजूद उन सभी संदर्भों को नष्ट कर देना है जो बिग बॉस के अभिमत से मेल नहीं खाते. वह हर एक पत्रिका, अख़बार जो अतीत में मौजूद रही हो, यदि वह बिग बॉस के विचार से इत्तफ़ाक़ रखती हुई नहीं पायी जाती तो उसे या तो अतीत की किसी तारीख़ से संशोधित कर दिया जाता है, या पूरी तरह ग़ायब कर दिया जाता है.
बिग बॉस का डेटा पर अभूतपूर्व नियंत्रण है. डेटा की डेस्क पर काम करने वाले लोग बिग बॉस के भरोसे के नौकरशाह हैं. उन पर लगातार नज़र रखी जाती है. इस महकमे में गलती करना जीवन को जोखिम में डालना है. ओशिनिया में बिग बॉस के प्रति होने वाली किसी भी त्रुटि की सजा उस ‘पर्सन’ का ‘अनपर्सन’ हो जाना है. ‘अनपर्सन’ न्यूस्पीक का एक शब्द है जिसका मतलब है कल जो आदमी मौजूद था, उसका बाद में मौजूद न रहना. लोग ग़ायब कर दिए जाते हैं. बिग बॉस को पसंद न आने वाले लोगों को ‘परसन’ से ‘अनपर्सन’ कर देना ओशिनिया की पुलिस मशीनरी का सबसे प्रिय काम है.
1949 में ऑर्वेल के इस उपन्यास का प्रकाशन दूसरे विश्व-युद्ध के समाप्त होने और सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य में बढ़ती हुई अंतरराष्ट्रीय वैचारिक गोलबंदी की पृष्ठभूमि में हुआ था. उपन्यास में बिग बॉस के चरित्र चित्रण में अमेरिकी साहित्य समीक्षकों ने जोसेफ स्टालिन की छवि पायी. ऑर्वेल के न चाहते हुए भी पूंजीवादी खेमे ने इस उपन्यास का इस्तेमाल सोवियत वामपन्थ की भर्त्सना में किया.
ऑर्वेल के राजनीतिक विचार एक उदारतावादी लोकतांत्रिक व्यक्ति के थे. वह आजीवन ब्रिटिश लेबर पार्टी के सदस्य रहे. ऑर्वेल का मानना था कि फासीवाद किसी भी तरह की विचारधारा में पनपकर उस विचार को चट कर सकता है. 1984 ऑर्वेल के पिछले बीस वर्षों के राजनीतिक चिंतन का उत्कर्ष था जिसके संकेत 1945 में प्रकाशित हुई उनकी छोटी सी किंतु अतिशय लोकप्रिय रचना ‘एनिमल फार्म’ में ही स्पष्ट होने लगे थे. एनिमल फार्म में भी लेखक की केंद्रीय चिंता यह थी कि कोई भी राजनीतिक नेतृत्व जनता को स्वर्णिम भविष्य के सपने बेचकर किस तरह नियंत्रण, नौकरशाही और प्रोपेगेंडा के रस्से में बांधकर फासीवाद के गड्ढे में खींच ले जा सकता है.
ऑर्वेल के इस उपन्यास पर मार्क्सवादी धड़े के लेखकों-समीक्षकों ने भारी आक्रमण किया. भारतीय मूल के ब्रिटिश मार्क्सवादी रजनी पाम दत्त ने ऑर्वेल के मार्क्सवादी ज्ञान पर ही गंभीर सवाल उठाए. मार्क्सवादी विचारक रेमंड विलियम्स, ईपी थोंपसन, और एडवर्ड सईद ने भी ‘1984’ की ख़ूब आलोचना की. लेकिन दूसरी तरफ़ चेकोस्लोवाकिया के लोकप्रिय और सोवियत धड़े से असंतुष्ट नेता वक्लव हैवल जैसे लोग भी थे जो इस रचना को तानाशाही जीवन मूल्यों के विरुद्ध अपना प्रेरणास्रोत मानते रहे.
यह दुखद है कि उत्तर भारत की हिंदी पट्टी में होने वाले बौद्धिक विमर्शों से 1984 के संदर्भ लगभग नदारद होते हैं. इस इलाक़े को इस उपन्यास से परिचित होने की आज सर्वाधिक ज़रूरत है. मुझे नहीं पता कि ऑर्वेल की यह रचना कितने हिंदी क्षेत्र में पड़ने वाले विश्वविद्यालयों के उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में शामिल है? इस किताब का पाठन यदि अनिवार्य हो सके तो राजनीतिक उन्माद में उतराता चला जाता हुआ नागरिक समझ सकेगा कि उसकी मासूमियत के साथ ‘बिग बॉस’ अक्सर कैसे-कैसे खेला खेल रहे होते हैं. वह जान सकेगा कि लोकतंत्रों को निरंकुशता, व्यक्ति-पूजा और फासीवाद की दीमक मिलकर कैसे सफ़ाचट कर जाती है.
1950 में केवल 46 वर्ष की आयु में ऑर्वेल का निधन हो गया लेकिन 1984 बीसवीं सदी के उत्तरार्ध का सबसे विचारोत्तेजक और सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला उपन्यास बना रहा. अपनी मृत्यु से ठीक एक साल पहले ऑर्वेल ने कहा था कि वह कभी नहीं चाहेंगे कि जिस दुनिया का चित्रण उन्होंने इस उपन्यास में किया है, वह कभी साकार भी हो. लेकिन आज हम जानते हैं कि हम आंशिक रूप से उस दुनिया के हिस्सेदार बन गए हैं जो अपने किरदार में ‘ऑरवेलियन’ होती जा रही है. आज दुनिया के कई हिस्सों में ‘बिग बॉस’ पनप रहे हैं जिनके मंसूबे ख़तरनाक और योजनाएं नृशंस हैं.
अमेरिका के एक अख़बार ने गणना करके हाल ही में बताया कि उनके राष्ट्रपति ने शपथ लेने के बाद अपने नागरिकों से कितने हज़ार झूठ बोले. अपने नागरिकों पर संदेह और उनका सर्विलांस, राज्य चलाने के लिए एकतरफ़ा वफ़ादार नौकरशाही, मीडिया के सहयोग से वास्तविकता के उलट झूठ और प्रोपगेंडा का अभेद्य सिस्टम, जनता के लिए काल्पनिक दुश्मनों का निर्माण, उन्मादी वातावरण और अंततः भाषा का संकुचन और क्षुद्रीकरण वो आयाम हैं जिनसे मिलकर एक राज्य नागरिकों का राज्य नहीं रह जाता. वह ‘ऑर्वेलियन’ हो जाता है. हम भी अपना परिवेश टटोलें. कहीं हम भी किंकर्तव्यविमूढ़ हुए किसी के पीछे पीछे नींद-चाल में चलते हुए उसी ओशिनिया की ओर तो नहीं बढ़े चले जा रहे?