सामाजिक दूरी के नियमों के कारण नेत्रहीनों के लिए बाहर की दुनिया और मुश्किल होने जा रही है. लोग इनकी मदद करने से भी परहेज कर रहे हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से इसी साल बी.ए.ऑनर्स (हिस्ट्री) कर चुके उमेश सिंह बताते हैं, “इस दौरान एक बड़ी समस्या शिक्षा के क्षेत्र में आई है जैसे ऑनलाइन क्लास हो, एग्जाम या एडमिशन प्रोसेस. जैसे एडमिशन फॉर्म भरने में अगर कोई गलती हुई तो पहली बार में ही फॉर्म रिजेक्ट हो रहा है, फिर दोबारा सम्पर्क करना बड़ा मुश्किल हो रहा है. कुछ में कम्प्यूटर एक्सेस फेल बता देता है. अभी जैसे हमारे एग्जाम हुए तो वे हमने जैसे-तैसे दे तो दिए लेकिन बड़ी मुश्किल आई. हमारी समस्याओं को नजरअंदाज कर एग्जाम कराए गए और इसमें हमें कोर्ट से भी निराशा ही मिली. और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान भी नहीं रखा गया.”
“इस दौरान उन लोगों को और ज्यादा दिक्कत हुई जिनके घर या इंस्टीट्यूशन सपोर्टिव नहीं थे, या जो अकेले रहते हैं या फाइनेंशियल कमजोर हैं. लॉकडाउन में जो बाहर खाना खाते थे उन्हें भी परेशानी उठानी पड़ी. और कहीं आने-जाने की भी क्योंकि मेट्रो बंद थी वहां हमें वॉलिंटियर भी मिलता है और जो कैब अफॉर्ड नहीं कर सकते थे, उन्हें मुश्किल हुई,” उमेश ने कहा.
कुछ ऐसी ही कहानी दीपक गुप्ता की है. आईआईटी दिल्ली से लिटरेचर में पीएचडी कर रहे दीपक गुप्ता ने इस बात की हमसे न सिर्फ पुष्टि की बल्कि विजुअली इंपेयर्ड के लिए बनी ऑनलाइन गाइडलाइन की पोल भी खोल दी. दीपक गुप्ता ने बताया, “ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम पूरी तरह एक्सेसिबल नहीं है. और विजुअली इंपेयर्ड के लिए तो वैसे भी अधिक समस्याएं हैं. क्योंकि “डब्ल्यूसीएजी यानी वेब कन्टेंट एक्सेसिबिलिटी गाइडलाइन” जो विजुअली चैलेंज्ड के लिए अन्तर्राष्ट्रीय गाइडलाइंस हैं उनका इंप्लीमेंटेशन भारत में सही से नहीं हो रहा है. जैसे ‘केप्चा’, टेक्स्ट नहीं बल्कि ऑडियो फॉर्म में होना चाहिए. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. तो ऐसी बहुत सी प्रॉब्लम है.”
बिहार के रोहतास जिले निवासी दीपक आगे बताते हैं, “बाकि कोविड के दौरान अब जैसे मैं अपने गांव हूं तो यहां माहौल नहीं है पढ़ाई का. इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारे माकूल नहीं है, लोग अवेयर नहीं हैं तो स्टिक भी यूज नहीं कर पाता हूं. दूसरा बिहार में चुनाव है और मुझे वोट डालना था तो मुझे दूसरे की मदद लेनी पड़ी, जो गलत है. जबकि इलेक्शन कमीशन के मुताबिक ईवीएम ब्रेन लिपि में होना चाहिए, लेकिन नहीं था. जबकि दिल्ली में ऐसा होता है.”
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से संस्कृत में पीएचडी कर रहे सूर्यप्रकाश भी कहते हैं कि इस दौरान परीक्षा, पढ़ाई और यातायात में हमें सबसे ज्यादा समस्या हुई है. सूर्यप्रकाश ने बताया, “जैसे रिसर्च करने वाले विजुअली इंपेयर्ड छात्रों को अलग से समस्याएं आ रही हैं. अगर उन्हें कोई रीडर या कोई लेखक चाहिए तो वह अब आसानी से नहीं मिलेगा. क्योंकि हॉस्टल में भी एंट्री नहीं मिल रही है.”
सूर्यप्रकाश आगे बताते हैं, “दूसरा लोगों के अंदर यह डर भी बैठ गया है कि हम इसे पकड़ कर रोड पार कराएं और यह कोरोना पॉजिटिव न हो. अभी बेर सराय इलाके में एक विजुअली इंपेयर्ड लड़का श्याम किशोर रोड क्रॉस करना चाह रहा था. कोरोना या जैसे भी किसी ने उसका हाथ पकड़ के रोड क्रॉस नहीं कराया, जबकि लोग वहां मौजूद थे. आखिरकार उसने अकेले ही रोड क्रॉस करने की कोशिश की और उसका पैर फ्रैक्चर हो गया. ये सब समस्या हमें आ रही है. लोगों के मन में एक डर की भावना बैठ गई है.”
सूर्यप्रकाश ने बताया, “दूसरे अगर ट्रेवल की बात करें तो अभी मैं कोविड में लखनऊ गया था तो वहां इस दौरान बहुत ज्यादा शांति थी, पहले तो लोग रहते थे. हालांकि मैंने तो पहले ही अपने दोस्तों को सूचित कर दिया था लेकिन जो अकेला अनजान ब्लाइंड हो उसके पटरी पर आने की पूरी संभावना है. क्योंकि वहां मेट्रो की तरह, बैरियर, टाइल्स या लोगों की कोई सुविधा नहीं थी. और सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.
सूर्यप्रकाश अंत में कहते हैं, “पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भी समस्याएं हैं. जैसे दिल्ली में बसों में सिर्फ 20 लोगों के बैठने की सुविधा थी, तो देखने वाले लोग तो चढ़ जाएंगे और हम इस कारण पीछे रह जाएंगे. क्योंकि हमें पता नहीं कि बस में 20 हैं या नहीं, परेशानियां बहुत बढ़ गई हैं. सरकार को चाहिए कि हमें ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक डिवाइस उपलब्ध कराए. जिससे हम आसानी से इधर-उधर जा सकें.”
दिल्ली स्थित नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड की एडमिन ऑफिसर हेमा कहती हैं, “हमारे यहां मुख्यत फाइनेंशियल समस्या आ रही है. और इस दौरान ट्रेवल नहीं कर सकते क्योंकि अभी यातायात सुचारू नहीं है और सेफ भी नहीं है. कैब सब अफॉर्ड नहीं कर सकते. दूसरा ये टच करके सबकुछ करते हैं, लेकिन अब बहुत मुश्किल आ रही है, बाकि हम जितना कर सकते हैं कर रहे हैं.”