जुर्म का कोई सबूत नहीं, फिर भी महीने भर इंदौर जेल में बंद रहे कॉमेडियन की कहानी.
इंदौर पुलिस की कार्यशैली
मुनव्वर फारूकी की गिरफ्तारी को लेकर इंदौर पुलिस पर एकपक्षीय कार्रवाई करने के आरोप लगे हैं. इस पूरे केस में पुलिस ने जो तत्परता दिखाई है उससे लोगों को यही लगा कि पुलिस कहीं ना कहीं प्रभावित है. एक जनवरी यानी घटना के दिन इंदौर की तुकोगंज पुलिस ने मुनव्वर और चार अन्य को गिरफ्तार किया जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था.
इस घटना ने उस समय तूल पकड़ा जब पुलिस पर बिना किसी सुबूत मुनव्वर को गिरफ्तार करने का आरोप लगा. घटना के अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस ने तुकोगंज थाने के प्रभारी कमलेश शर्मा को बताया कि पुलिस को मुनव्वर के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा मुहैया कराए गए वीडियो में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है. जिसके बाद अलग-अलग मीडिया ने इस खबर को प्रकाशित कर दिया.
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने इंदौर पुलिस के एएसपी और थाना प्रभारी से बात की तो दोनों एक्सप्रेस की खबर से मुकर गए. उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स को झूठ बताया. उन्होंने कहा कि, ऐसा कोई बयान नहीं दिया है, हमारे पास सबूत हैं उसी के आधार पर कोर्ट ने जेल भेजा है.
इन विरोधाभासी बयानों के बीच आर्टिकल 14 ने एक खबर प्रकाशित की, जिसमें इंदौर के एसपी विजय खत्री कहते हैं, “यह फर्क नहीं पड़ता है कि उसने जोक किया है या नहीं, हमें शिकायतकर्ता ने बताया कि उसने रिहर्सल के दौरान हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ जोक किया था. उसने स्टेज पर भले ही जोक नहीं किया हो लेकिन उसकी भावना तो ऐसी थी ना.”
बता दें कि विजय खत्री इंदौर पूर्व के एसपी थे, उनका हाल ही में इंदौर से भोपाल ट्रांसफर कर दिया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनका तबादला सीता माता पर दिए गए एक बयान को लेकर हुआ है. दरअसल एक गिरोह के पकड़े जाने के बाद जारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अचानक से कह दिया, “जहां सोना होगा, ये सीता जी वहीं नाचेंगी.” इस पर काफी बवाल हुआ था. हालांकि इस बयान के 15 दिनों बाद उनका ट्रांसफर हो गया.
इस मामले में शुरुआत से ही पुलिस पर दवाब में कार्रवाई करने की बात कही जा रही थी. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में मुनव्वर के वकील अंशुमान श्रीवास्तव भी इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं, “जिस तरह से पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई की है, उससे कहीं ना कहीं यह तो साफ दिख जाता है कि पुलिस पर राजनीतिक दवाब है.” जब हमने थाने जाकर पुलिस वालों से बात करने की कोशिश की तो जांच अधिकारी महेंद्र चौहान ने और टीआई ने बातचीत करने से मना कर दिया था. उनका कहना था कि इस मामले में हमें कोई भी बयान देने से मना किया गया है, यह ऊपर से ऑर्डर है.
इस केस में हर कदम पर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठा है. हद तो उस समय हो गई थी जब हाईकोर्ट से मात्र 100 मीटर की दूरी पर मौजूद थाने से केस डायरी तक कोर्ट में पेश नहीं की गई. जिस पर वकील अंशुमान श्रीवास्तव ने कहा था, “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि फारूकी की जमानत याचिका पर सुनवाई के वक्त पुलिस की ओर से केस डायरी तुरंत उपलब्ध नहीं कराई गई."
शिकायतकर्ता एकलव्य गौड़
पुलिस की कार्रवाई से जिन दो लोगों को जनता ने जाना वो हैं मुनव्वर फारूकी और एकलव्य गौड़. एकलव्य की पहचान के लिए सिर्फ एक ही लाइन कही जा सकती है कि वो इंदौर की पूर्व महापौर और इंदौर नंबर चार से विधायक मालिनी गौड़ के बेटे हैं.
36 साल के एकलव्य हिन्द रक्षक संगठन के प्रमुख होने के साथ-साथ भाजपा युवा मोर्चा प्रदेश के सचिव भी हैं. वह मारपीट की घटना में इससे पहले भी कई बार शामिल रहे हैं. साल 2016 में उन्होंने और उनके कुछ समर्थकों ने इंदौर के रणजीत हनुमान मंदिर में तैनात एक पुलिसकर्मी से ना सिर्फ मारपीट की बल्कि वर्दी भी फाड़ दी. इस मारपीट के बाद दबाव बढ़ा तो पुलिस ने खानापूर्ति के लिए केस तो दर्ज किया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
मध्य प्रदेश की वरिष्ठ पत्रकार जयश्री पिंगले कहती हैं, “अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत पूरे मामले को देखें तो कहीं ना कहीं मामले में जल्दबाजी की गई और पुलिस ने अपनी राजनीतिक लॉयल्टी दिखाने के लिए कार्रवाई की. एक हार्डकोर हिंदुत्व की छवि को दिखाने की कोशिश एकलव्य ने की जो पहले उनके पिता किया करते थे.”
जयश्री आगे कहती हैं, “एकलव्य की कोई राजनीतिक तौर पर पहचान नहीं है. वह बस इस संगठन के द्वारा साल भर आयोजन करते रहते हैं. एक विधायक पुत्र और पूर्व मंत्री के बेटे के तौर पर लोग उन्हें जानते हैं उससे ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन इस घटना के बाद से जो एक हार्डकोर हिंदुत्व की सोच को लेकर बीजेपी चल रही है उस नज़रिए से देखें तो वह आगे चलकर टिकट के दावेदार हो सकते हैं.”
इंदौर के ही एक स्थानीय चैनल के संपादक आशीष जोशी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “एकलव्य के पिता पूर्व मंत्री लक्ष्मण गौड़ मध्य प्रदेश की राजनीति में कद्दावर नेता थे. उन्होंने ही आज से करीब 25 साल पहले हिन्द रक्षक संगठन की स्थापना की थी. इस संगठन के द्वारा वह हिंदुत्व के लिए और कई सामाजिक कार्य किया करते थे. लेकिन साल 2008 में एक सड़क एक्सीडेंट में निधन के बाद उनके बेटे इस संगठन को चला रहे हैं. एकलव्य भी अपने पिता की तरह ही हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं.”
आशीष जोशी बताते हैं, “इंदौर में विधानसभा नंबर 4 को ‘इंदौर की अयोध्या’ कहा जाता है. यह सिर्फ लक्ष्मण गौड़ की राजनीति की वजह से है. वहीं अगर शहर से सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाकों की बात करें तो वह इसी विधानसभा क्षेत्र में है जिसके कारण काफी बार इलाके में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं होती रहती हैं.”
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 5 फरवरी को मुनव्वर फारूकी की जमानत याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने 10 मिनट के अंदर मुनव्वर को जमानत दे दी और उत्तर प्रदेश में जारी प्रोडक्शन वारंट पर रोक लगा दी. लाइव लॉ ने विस्तार से इस फैसले को बताते हुए कहा कि “जस्टिस नरीमन ने इस मामले में धारा 41 के पालन नहीं होने की बात को लेकर सरकार को नोटिस जारी किया और हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए शर्तों के साथ जमानत दे दी.”
वहीं इससे पहले 29 जनवरी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहित आर्य ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया था और टिप्पणी करते हुए कहा था, “ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए."
जस्टिस आर्य ने सुनवाई के दौरान पूछा था कि, “लेकिन आप अन्य धर्मों की धार्मिक भावनाओं का अनुचित लाभ क्यों उठाते हैं. आपकी मानसिकता में क्या गलत है? आप अपने व्यवसाय के उद्देश्य के लिए यह कैसे कर सकते हैं?"
हाईकोर्ट के फैसले पर मुनव्वर के वकील अशुंमान श्रीवास्तव ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा था, “हमने अदालत से कहा था हमारा इंटेशन किसी की धार्मिक भावना आहत करने का नहीं था. कहीं सेक्शन 295 ए की परिस्थिति नहीं थी लेकिन कोर्ट ने माना है कि प्रकरण के तथ्य हैं उनको देखते हुए आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती.”
उन्होंने हमें आगे बताया, ''हमने अदालत के सामने दलील दी कि चूंकि मुनव्वर ने किसी के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं कहा है. जहां तक मौजूदा एफ़आईआर का सवाल है, तो अनुच्छेद 21 और 19 के तहत उसके अधिकार की गारंटी होनी चाहिए.'' लेकिन कोर्ट ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया.
जस्टिस आर्य इससे पहले भी अपने फैसलों के कारण चर्चा में रहे हैं. एक फैसले में उन्होंने एक महिला से छेड़छाड़ के आरोपी को राखी बंधवाने का निर्देश देकर जमानत दे दी थी. द लल्लनटाप की खबर के मुताबिक, तीन जुलाई, 2020 को दिए गए एक फैसले में जस्टिस आर्य की कोर्ट ने छेड़छाड़ के एक आरोपी को सशर्त जमानत देते हुए कहा कि उसे महिला से राखी बंधवाना पड़ेगा और नेग में महिला को 11 हजार रुपए देने होंगे.
इसी तरह एक मामले में उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर में छेड़छाड़ करने के एक आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया था. यह जनवरी 2021 का मामला है. डेली हंट में छपी इस खबर में सरकारी वकील के हवाले से बताया गया है कि जज रोहित आर्य ने आरोपी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आदित्यनाथ न केवल मुख्यमंत्री हैं, बल्कि संत भी हैं.
अंत में
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद इंदौर में मुनव्वर के वकील ने जमानत के लिए सभी इंतजाम कर लिया था लेकिन उसे शनिवार शाम तक जमानत नहीं मिल पाई. एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, ‘केंद्रीय जेल प्रशासन ने यूपी के प्रयागराज जिले की एक अदालत से जारी पेशी वारंट का हवाला देते हुए फारूकी को रिहा करने से इनकार कर दिया. अधिकारियों ने कहा जेल मैन्युअल के हिसाब से फारूकी को रिहा करने के लिए प्रयागराज की अदालत या सरकार के किसी सक्षम प्राधिकारी के आदेश की जरूरत होगी.
इस देरी पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिंदबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार सुबह अंतरिम जमानत का आदेश पारित किया था, लेकिन अभी तक फारूकी को रिहाई नहीं मिल सकी. 30 घंटे बीत जाने के बावजूद फारूकी बाहर नहीं आ सके. एमपी पुलिस और जेल प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कमतर करने का प्रयास कर रहे हैं.”
हालांकि अनुराग द्वारी ने रात एक बजे एक वीडियो ट्वीट करते हुए बताया कि, जेल अधिकारियों ने आखिरकार मुनव्वर को जेल से रिहा कर दिया.
मुनव्वर की रिहाई के बाद अब सवाल है उन चार बेगुनाहों को कब रिहा किया जाएगा जिन्हें मुनव्वर के साथ ही गिरफ्तार किया गया था.
इंदौर पुलिस की कार्यशैली
मुनव्वर फारूकी की गिरफ्तारी को लेकर इंदौर पुलिस पर एकपक्षीय कार्रवाई करने के आरोप लगे हैं. इस पूरे केस में पुलिस ने जो तत्परता दिखाई है उससे लोगों को यही लगा कि पुलिस कहीं ना कहीं प्रभावित है. एक जनवरी यानी घटना के दिन इंदौर की तुकोगंज पुलिस ने मुनव्वर और चार अन्य को गिरफ्तार किया जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था.
इस घटना ने उस समय तूल पकड़ा जब पुलिस पर बिना किसी सुबूत मुनव्वर को गिरफ्तार करने का आरोप लगा. घटना के अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस ने तुकोगंज थाने के प्रभारी कमलेश शर्मा को बताया कि पुलिस को मुनव्वर के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा मुहैया कराए गए वीडियो में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है. जिसके बाद अलग-अलग मीडिया ने इस खबर को प्रकाशित कर दिया.
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने इंदौर पुलिस के एएसपी और थाना प्रभारी से बात की तो दोनों एक्सप्रेस की खबर से मुकर गए. उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स को झूठ बताया. उन्होंने कहा कि, ऐसा कोई बयान नहीं दिया है, हमारे पास सबूत हैं उसी के आधार पर कोर्ट ने जेल भेजा है.
इन विरोधाभासी बयानों के बीच आर्टिकल 14 ने एक खबर प्रकाशित की, जिसमें इंदौर के एसपी विजय खत्री कहते हैं, “यह फर्क नहीं पड़ता है कि उसने जोक किया है या नहीं, हमें शिकायतकर्ता ने बताया कि उसने रिहर्सल के दौरान हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ जोक किया था. उसने स्टेज पर भले ही जोक नहीं किया हो लेकिन उसकी भावना तो ऐसी थी ना.”
बता दें कि विजय खत्री इंदौर पूर्व के एसपी थे, उनका हाल ही में इंदौर से भोपाल ट्रांसफर कर दिया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनका तबादला सीता माता पर दिए गए एक बयान को लेकर हुआ है. दरअसल एक गिरोह के पकड़े जाने के बाद जारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अचानक से कह दिया, “जहां सोना होगा, ये सीता जी वहीं नाचेंगी.” इस पर काफी बवाल हुआ था. हालांकि इस बयान के 15 दिनों बाद उनका ट्रांसफर हो गया.
इस मामले में शुरुआत से ही पुलिस पर दवाब में कार्रवाई करने की बात कही जा रही थी. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में मुनव्वर के वकील अंशुमान श्रीवास्तव भी इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं, “जिस तरह से पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई की है, उससे कहीं ना कहीं यह तो साफ दिख जाता है कि पुलिस पर राजनीतिक दवाब है.” जब हमने थाने जाकर पुलिस वालों से बात करने की कोशिश की तो जांच अधिकारी महेंद्र चौहान ने और टीआई ने बातचीत करने से मना कर दिया था. उनका कहना था कि इस मामले में हमें कोई भी बयान देने से मना किया गया है, यह ऊपर से ऑर्डर है.
इस केस में हर कदम पर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठा है. हद तो उस समय हो गई थी जब हाईकोर्ट से मात्र 100 मीटर की दूरी पर मौजूद थाने से केस डायरी तक कोर्ट में पेश नहीं की गई. जिस पर वकील अंशुमान श्रीवास्तव ने कहा था, “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि फारूकी की जमानत याचिका पर सुनवाई के वक्त पुलिस की ओर से केस डायरी तुरंत उपलब्ध नहीं कराई गई."
शिकायतकर्ता एकलव्य गौड़
पुलिस की कार्रवाई से जिन दो लोगों को जनता ने जाना वो हैं मुनव्वर फारूकी और एकलव्य गौड़. एकलव्य की पहचान के लिए सिर्फ एक ही लाइन कही जा सकती है कि वो इंदौर की पूर्व महापौर और इंदौर नंबर चार से विधायक मालिनी गौड़ के बेटे हैं.
36 साल के एकलव्य हिन्द रक्षक संगठन के प्रमुख होने के साथ-साथ भाजपा युवा मोर्चा प्रदेश के सचिव भी हैं. वह मारपीट की घटना में इससे पहले भी कई बार शामिल रहे हैं. साल 2016 में उन्होंने और उनके कुछ समर्थकों ने इंदौर के रणजीत हनुमान मंदिर में तैनात एक पुलिसकर्मी से ना सिर्फ मारपीट की बल्कि वर्दी भी फाड़ दी. इस मारपीट के बाद दबाव बढ़ा तो पुलिस ने खानापूर्ति के लिए केस तो दर्ज किया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
मध्य प्रदेश की वरिष्ठ पत्रकार जयश्री पिंगले कहती हैं, “अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत पूरे मामले को देखें तो कहीं ना कहीं मामले में जल्दबाजी की गई और पुलिस ने अपनी राजनीतिक लॉयल्टी दिखाने के लिए कार्रवाई की. एक हार्डकोर हिंदुत्व की छवि को दिखाने की कोशिश एकलव्य ने की जो पहले उनके पिता किया करते थे.”
जयश्री आगे कहती हैं, “एकलव्य की कोई राजनीतिक तौर पर पहचान नहीं है. वह बस इस संगठन के द्वारा साल भर आयोजन करते रहते हैं. एक विधायक पुत्र और पूर्व मंत्री के बेटे के तौर पर लोग उन्हें जानते हैं उससे ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन इस घटना के बाद से जो एक हार्डकोर हिंदुत्व की सोच को लेकर बीजेपी चल रही है उस नज़रिए से देखें तो वह आगे चलकर टिकट के दावेदार हो सकते हैं.”
इंदौर के ही एक स्थानीय चैनल के संपादक आशीष जोशी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “एकलव्य के पिता पूर्व मंत्री लक्ष्मण गौड़ मध्य प्रदेश की राजनीति में कद्दावर नेता थे. उन्होंने ही आज से करीब 25 साल पहले हिन्द रक्षक संगठन की स्थापना की थी. इस संगठन के द्वारा वह हिंदुत्व के लिए और कई सामाजिक कार्य किया करते थे. लेकिन साल 2008 में एक सड़क एक्सीडेंट में निधन के बाद उनके बेटे इस संगठन को चला रहे हैं. एकलव्य भी अपने पिता की तरह ही हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं.”
आशीष जोशी बताते हैं, “इंदौर में विधानसभा नंबर 4 को ‘इंदौर की अयोध्या’ कहा जाता है. यह सिर्फ लक्ष्मण गौड़ की राजनीति की वजह से है. वहीं अगर शहर से सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाकों की बात करें तो वह इसी विधानसभा क्षेत्र में है जिसके कारण काफी बार इलाके में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं होती रहती हैं.”
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 5 फरवरी को मुनव्वर फारूकी की जमानत याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने 10 मिनट के अंदर मुनव्वर को जमानत दे दी और उत्तर प्रदेश में जारी प्रोडक्शन वारंट पर रोक लगा दी. लाइव लॉ ने विस्तार से इस फैसले को बताते हुए कहा कि “जस्टिस नरीमन ने इस मामले में धारा 41 के पालन नहीं होने की बात को लेकर सरकार को नोटिस जारी किया और हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए शर्तों के साथ जमानत दे दी.”
वहीं इससे पहले 29 जनवरी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहित आर्य ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया था और टिप्पणी करते हुए कहा था, “ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए."
जस्टिस आर्य ने सुनवाई के दौरान पूछा था कि, “लेकिन आप अन्य धर्मों की धार्मिक भावनाओं का अनुचित लाभ क्यों उठाते हैं. आपकी मानसिकता में क्या गलत है? आप अपने व्यवसाय के उद्देश्य के लिए यह कैसे कर सकते हैं?"
हाईकोर्ट के फैसले पर मुनव्वर के वकील अशुंमान श्रीवास्तव ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा था, “हमने अदालत से कहा था हमारा इंटेशन किसी की धार्मिक भावना आहत करने का नहीं था. कहीं सेक्शन 295 ए की परिस्थिति नहीं थी लेकिन कोर्ट ने माना है कि प्रकरण के तथ्य हैं उनको देखते हुए आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती.”
उन्होंने हमें आगे बताया, ''हमने अदालत के सामने दलील दी कि चूंकि मुनव्वर ने किसी के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं कहा है. जहां तक मौजूदा एफ़आईआर का सवाल है, तो अनुच्छेद 21 और 19 के तहत उसके अधिकार की गारंटी होनी चाहिए.'' लेकिन कोर्ट ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया.
जस्टिस आर्य इससे पहले भी अपने फैसलों के कारण चर्चा में रहे हैं. एक फैसले में उन्होंने एक महिला से छेड़छाड़ के आरोपी को राखी बंधवाने का निर्देश देकर जमानत दे दी थी. द लल्लनटाप की खबर के मुताबिक, तीन जुलाई, 2020 को दिए गए एक फैसले में जस्टिस आर्य की कोर्ट ने छेड़छाड़ के एक आरोपी को सशर्त जमानत देते हुए कहा कि उसे महिला से राखी बंधवाना पड़ेगा और नेग में महिला को 11 हजार रुपए देने होंगे.
इसी तरह एक मामले में उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर में छेड़छाड़ करने के एक आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया था. यह जनवरी 2021 का मामला है. डेली हंट में छपी इस खबर में सरकारी वकील के हवाले से बताया गया है कि जज रोहित आर्य ने आरोपी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आदित्यनाथ न केवल मुख्यमंत्री हैं, बल्कि संत भी हैं.
अंत में
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद इंदौर में मुनव्वर के वकील ने जमानत के लिए सभी इंतजाम कर लिया था लेकिन उसे शनिवार शाम तक जमानत नहीं मिल पाई. एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, ‘केंद्रीय जेल प्रशासन ने यूपी के प्रयागराज जिले की एक अदालत से जारी पेशी वारंट का हवाला देते हुए फारूकी को रिहा करने से इनकार कर दिया. अधिकारियों ने कहा जेल मैन्युअल के हिसाब से फारूकी को रिहा करने के लिए प्रयागराज की अदालत या सरकार के किसी सक्षम प्राधिकारी के आदेश की जरूरत होगी.
इस देरी पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिंदबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार सुबह अंतरिम जमानत का आदेश पारित किया था, लेकिन अभी तक फारूकी को रिहाई नहीं मिल सकी. 30 घंटे बीत जाने के बावजूद फारूकी बाहर नहीं आ सके. एमपी पुलिस और जेल प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कमतर करने का प्रयास कर रहे हैं.”
हालांकि अनुराग द्वारी ने रात एक बजे एक वीडियो ट्वीट करते हुए बताया कि, जेल अधिकारियों ने आखिरकार मुनव्वर को जेल से रिहा कर दिया.
मुनव्वर की रिहाई के बाद अब सवाल है उन चार बेगुनाहों को कब रिहा किया जाएगा जिन्हें मुनव्वर के साथ ही गिरफ्तार किया गया था.