सोशल मीडिया दिग्गजों और मीडिया के बीच राजस्व साझाकरण मॉडल पर काम करने की जरूरत- उपराष्ट्रपति

सोशल मीडिया दिग्गजों और प्रिंट मीडिया के बीच राजस्व साझाकरण मॉडल पर काम करने की जरूरत- उपराष्ट्रपति

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भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने मणिपाल यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, "अब समय आ गया हैं कि तकनीक आधारित सोशल मीडिया दिग्गजों और राजस्व उत्पन्न करने के लिए संघर्ष कर रहे प्रिंट मीडिया के बीच राजस्व साझाकरण मॉडल के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों और कानूनों की आवश्यकता को रेखांकित किया जाए."

उन्होंने कहा, "प्रिंट मीडिया द्वारा पर्याप्त लागत के साथ उपलब्ध कराए जा रहे सूचना रिपोर्टों को सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा हाईजैक किया जा रहा है, जो कि अनुचित है."

उपराष्ट्रपति ने इस दौरान पत्रकारिता की विश्वसनीयता को लेकर भी बात की.

मैंगलोरियन की खबर के मुताबिक नायडू ने कहा, वह आज के पत्रकारिता के भाग्य से निराश हैं. मीडिया की ज़िम्मेदारी सरकार और लोगों के बीच की खाई को पाटने में निहित है, जिसमें साक्ष्य द्वारा समर्पित एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण है. लेकिन अफसोस की बात है कि वर्तमान पत्रकारिता नैतिक अपेक्षाओं से परे है.

खबर के मुताबिक उपराष्ट्रपति ने कहा कि पेड न्यूज, मीडिया के मूल्यों में गिरावट और लाभ का एजेंडा बेहद परेशान करने वाला है. इस दौरान उन्होंने कहा प्रेस की स्वतंत्रता अपरिहार्य है. हालांकि, स्वतंत्रता जिम्मेदारियों के साथ आती है, जिसका प्राथमिकता के साथ पालन करना चाहिए.

द गार्जियन की खबर के मुताबिक इसी महीने, ऑस्ट्रेलिया सरकार एक ऐसा प्रस्ताव लायी है जिसके तहत गूगल और फेसबुक पर खबरें डालने के लिए कंपनियों को भुगतान करना पड़ेगा. वहां की सरकार का कहना हैं कि यह दुनिया का पहला कानून है, इसके तहत ऑनलाइन विज्ञापन बाजार में सबको समान मुकाबले का मौका मिलेगा.

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उन्होंने कहा, "प्रिंट मीडिया द्वारा पर्याप्त लागत के साथ उपलब्ध कराए जा रहे सूचना रिपोर्टों को सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा हाईजैक किया जा रहा है, जो कि अनुचित है."

उपराष्ट्रपति ने इस दौरान पत्रकारिता की विश्वसनीयता को लेकर भी बात की.

मैंगलोरियन की खबर के मुताबिक नायडू ने कहा, वह आज के पत्रकारिता के भाग्य से निराश हैं. मीडिया की ज़िम्मेदारी सरकार और लोगों के बीच की खाई को पाटने में निहित है, जिसमें साक्ष्य द्वारा समर्पित एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण है. लेकिन अफसोस की बात है कि वर्तमान पत्रकारिता नैतिक अपेक्षाओं से परे है.

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