प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनावी इतिहास की सबसे गलाकाट स्पर्धा पर एक नज़र.
डिसक्लेमर: बहुधा सूत्रों के हवाले से खबर लिखने वाले पत्रकार इस कहानी में स्वयं सूत्र बन गए हैं. कइयों के लिए यह दोस्ती यारी की मर्यादा है, बहुतों के लिए यह सत्ता बदलने की सूरत में किए जा सकने वाले लेन-देन की मजबूरी है. यहां तथ्य पूर्णत: पवित्र हैं.
“सुधीरंजन सेन के बाल अगर प्रेस क्लब में कट गए होते तो आज प्रेस क्लब की इस तरह से न कट रही होती,” मज़ाकिया लहजे में कही प्रेस क्लब की मौजूदा कमेटी के एक सदस्य की इस बात के सिरे दूर तक जाते हैं. सुधीरंजन सेन फिलहाल प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव में कोषाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन साल भर पहले के मुकाबले इस बार हालात अलग हैं. सेन पहले जिस पैनल के साथ चुनाव लड़ते थे अब उसके खिलाफ खड़े नए पैनल की धुरी बन चुके हैं. लिहाजा हाल के कुछ सालों में एकतरफा नतीजों का गवाह रहा प्रेस क्लब का चुनाव इस बार एक गलाकाट स्पर्धा में तब्दील हो गया है.
इस टकराव के बीज लाकडाउन के दौरान पड़े थे. कथित तौर पर सुधीरंजन सेन और उनके कुछ साथियों ने लॉकडाउन के दौरान प्रेस क्लब को अपना ठिकाना बना लिया था. इस दौरान वो अपना सारा कामकाज, जिसमें पेशेवर कामकाज के साथ निजी कामकाज और बाल कटवाना भी शामिल है, प्रेस क्लब की बिल्डिंग से निपटा रहे थे. लॉकडाउन में जारी प्रतिबंधों का हवाला देकर तत्कालीन प्रबंधन कमेटी ने इसका विरोध किया. जवाब में सेन ने कड़ा रुख अपना लिया. इस लड़ाई का नतीजा प्रेस क्लब के मौजूदा चुनावों में दिख रहा है. 10 अप्रैल को होने जा रहे चुनावों में पहली बार एक ऐसा विरोधी पैनल खड़ा है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि 2009 से क्लब पर काबिज समूह को पहली बार बराबरी की टक्कर मिल रही है.
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