भारत में करीब 5 लाख लोग खनन में रोज़गार पाते हैं. किसी भी बदलाव के वक्त इन मज़दूरों की रोज़ी-रोटी का ख्याल रखना ज़रूरी है.
क्या ऐसे में भारत के लिये नेट ज़ीरो इमीशन का साल तय करना आसान होगा?
कोयला और पावर सेक्टर के जानकार और दिल्ली स्थित वसुधा फाउंडेशन के निदेशक श्रीनिवास कृष्णास्वामी कहते हैं, “भारत के लिये यह पूरी तरह मुमकिन है कि वह साल 2050 तक बिजली सेक्टर को कार्बन मुक्त कर ले. चाहे सोलर हो या दूसरे साफ ऊर्जा स्रोत, ये सस्ते हो रहे हैं और कोयला महंगा साबित हो रहा है. भारत ने 2030 तक 450 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य रखा है यानी उसका कार्यक्रम अभी ट्रैक पर है.”
कृष्णास्वामी के मुताबिक बैटरी स्टोरेज टेक्नोलॉजी में क्रांति हो रही है और कीमतें गिर रही हैं. अगले एक दशक में स्टोरेज के साथ रिन्यूएबल कोल पावर से सस्ता हो सकता है खासतौर से तब जबकि कोयला बिजलीघरों पर पर्यावरण मानकों की पाबंदी लगाई जायेगी. पर्यावरण विशेषज्ञ और इंटरनेशनल फोरम फॉर इन्वायरेंमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आई-फॉरेस्ट) के निदेशक चंद्र भूषण भी कृष्णास्वामी से सहमत हैं लेकिन वह कहते हैं कि नेट-ज़ीरो की बहस सिर्फ कोयले तक सीमित नहीं रहनी चाहिये.
चंद्रभूषण के मुताबिक, “नेट-ज़ीरो की डिबेट कोयले पर अटक गई लगती है लेकिन आपको याद रखना होगा कि बिना ऑइल और गैस को खत्म किये बिना भी नहीं हो सकता. भारत के लिये (नेट-ज़ीरो तक पहुंचने के लिये) कोयले को खत्म करना जितना ज़रूरी है लेकिन यूरोप और अमेरिका के लिये उसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये गैस और तेल को खत्म करना महत्वपूर्ण है. हमें सभी देशों का एनर्ज़ी प्रोफाइल देखना होगा और सारे जीवाश्म ईंधन को खत्म करने की कोशिश करनी होगी.”
सामाजिक सरोकार निभाना ज़रूरी!
नेट-ज़ीरो की बहस में जुड़ा एक महत्वपूर्ण सवाल उन कर्मचारियों और मज़दूरों का है सेक्टर में हैं. आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 5 लाख लोग खनन में रोज़गार पाते हैं. किसी भी बदलाव के वक्त इन मज़दूरों की रोज़ी-रोटी का ख्याल रखना ज़रूरी है.
देश की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने भी हाल में कहा कि वह सौर ऊर्जा में बढ़-चढ़ कर निवेश करेगी. कोल इंडिया ने साल 2024 में इसके लिये 6,000 करोड़ का बजट रखा है. माना जा रहा है कि कोल इंडिया इस दौरान करीब 13-14000 कर्मचारियों की छंटनी करेगा क्योंकि कई छोटी बड़ी खदानें बन्द होंगी. इस तरह के सामाजिक सरोकार को ध्यान में रखकर किये गये बदलाव को जस्ट ट्रांजिशन कहा जाता है. आई-फॉरेस्ट ने जस्ट-ट्रांजिशन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट (जस्ट ट्रांजिशन इन इंडिया) प्रकाशित की है.
चन्द्र भूषण कहते हैं कि नये हालातों में कोयले का आर्थिक समीकरण असंतुलित होता जायेगा और सभी देश और कंपनियां साफ ऊर्जा की ओर बढ़ेंगी लेकिन किसी भी बदलाव में सामाजिक ज़िम्मेदारी और न्याय से समझौता नहीं किया जा सकता.
उनके मुताबिक, “नेट-ज़ीरो के साथ साथ हमें जस्ट ट्रांजिशन की बात करना भी ज़रूरी है. सही मायनों में नेट-ज़ीरो तभी हो पायेगा जब कोयले पर निर्भर समुदायों के साथ न्यायपूर्ण सुलूक हो. कोई भी नेट ज़ीरो की बहस जस्ट ट्रांजिशन के समानान्तर होनी चाहिये”
(साभार- कार्बन कॉपी)