आखिर कहां हुई चूक?
कुबूलनामा
25 जनवरी, 2019 की शाम को चंद्रा ने एक भारतीय प्रोमोटर के लिए एक अजीबोगरीब काम को अंजाम दिया.
वो शुक्रवार का दिन था जब द वायर की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद एस्सेल समूह के एक बड़े डिपॉज़िट की जांच की जा रही है. गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय की रिपोर्ट में कहा गया था कि नोटबंदी के ठीक बाद 3,000 करोड़ रुपये जमा करने के मामले में नित्यंक इंफ्रापॉवर नामक कंपनी की जांच चल रही है जो पहले ड्रीमलाइन मैनपॉवर के नाम से जानी जाती थी.
अगले दिन सुबह जैसे ही शेयर बाजार खुला ज़ील के शेयर औंधे मुंह आ गिरे. स्टॉक 33 प्रतिशत गिरकर 288.95 रुपये प्रति शेयर के 44 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए और इससे एक ही दिन में इसका बाजार मूल्य गिरकर 14,000 करोड़ रुपये कम हो गया. साथ ही अब और भी ज्यादा मार्जिन कॉल थे.
चंद्रा को पता था कि उनके पैरों तले की जमीन खिसक रही है. 26 साल पहले अपने हाथों से गढ़े इस पारिवारिक गहने को बेचने और देनदारियों के भुगतान की उनकी इस योजना को एक बड़ा झटका लगा. उन्होंने एक खुला पत्र लिखा और उसमें अपने सभी लेनदारों से शांत रहने की अपील करते हुए वादा किया कि वह सारा कर्ज चुका देंगे लेकिन इस संबंध में उन्होंने किसी समय सीमा का ज़िक्र नहीं किया.
इन सारी परेशानियों के लिए उन्होंने कुछ "नकारात्मक ताकतों" को दोषी ठहराया और उनके अनुसार इन्हीं नकारात्मक ताकतों ने बिक्री की प्रक्रिया को खराब करने के उद्देश्य से ज़ील के स्टॉक्स पर हमला किया था.
आखिर कौन थीं ये "नकारात्मक ताकतें"? मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र एक बड़ा मुक़ाम तय करने के सपने संजोने वाले एस्सेल ग्रुप के कुछ लोगों ने भारतीय कॉरपोरेट जगत के एक दिग्गज की ओर उंगली उठाई. लेकिन इस संबंध में किसी तरह के पुष्ट प्रमाण नहीं मिले. चंद्रा के पास केवल यही सुराग था कि ये नकारात्मक ताकतें मई-जून 2018 से काम कर रही थीं और बैंकर्स, एनबीएफसी, म्यूचुअल फंड्स के साथ ही शेयरधारकों को गुमनाम पत्र भेज रही थीं. ग्रुप के कुछ लोगों का कहना था कि इन "नकारात्मक ताकतों" ने ज़ील पर कब्जा करने के लिए पहले चंद्रा से संपर्क किया था लेकिन उन्होंने सख़्ती से इनकार कर दिया.
चंद्रा का वो पत्र जिसे कई लोगों ने "कॉर्पोरेट बॉम्बशैल" बताया उसमें चंद्रा ने कर्जदाताओं से "ईमानदारी से माफी" मांगी थी.
चंद्रा के अनुसार उनके द्वारा एस्सेल इंफ्रा में कुछ "गलत बोलियां" लगाई गयी थीं. प्रॉजेक्ट्स के घाटे में चलने के बावजूद उन्होंने सूचीबद्ध कंपनियों में प्रोमोटर्स की हिस्सेदारी के बदले उधार लेते हुए कर्ज चुकाना जारी रखा. उन्होंने अपने पत्र में कबूल किया, "परिस्थितियों से न भागने के मेरे जुनून ने मुझे 5,000 करोड़ रुपए तक का जख़्म दे दिया है."
एक और गलती थी वीडियोकॉन डी2एच का अधिग्रहण. उन्होंने कहा, "वीडियोकॉन से डी2एच खरीदने के लिए मेरे भाई जवाहर गोयल से की गयी मेरी सिफारिश एक और बहुत बड़ी गलती थी जिससे मुझे और जवाहर को बहुत नुकसान हुआ," उन्होंने कहा.
उन्होंने पत्र में कहा कि कुछ साल पहले जब इस पारिवारिक करोबार का बंटवारा हुआ था तो बड़े भाई होने के नाते एस्सेल ग्रुप्स के पूरे कर्ज के बोझ की जिम्मेदारी उन्होंने खुद अपने सर पर ले ली थी.
चंद्रा के कुबूलनामे से अगर कुछ हासिल हुआ तो वो था केवल और केवल उनकी मुसीबतों में इजाफा. उनके समूह की कंपनियों को शेयर बाजार में और अधिक डूबते चले जाने से कोई नहीं रोक पाया. हालांकि कुछ नाकाम कोशिशों के बाद लेनदारों को भुगतान करने और संभावित आपराधिक मामलों से बचने के लिए वादे के मुताबिक चंद्रा ने समूह की प्रमुख कंपनी ज़ील की अपनी अधिकांश हिस्सेदारी बेच दी.
आंखों के आगे घटित हुई घपलेबाजी का यह एक नायाब मामला था. ग्रुप की तीन विस्तृत कंपनियां- जेडएमसीएल, ज़ी लर्न और डिश टीवी - 25 जुलाई को क्रमशः 13.40 रुपए, 15 रुपए और 13.80 रुपए के शेयर की कीमतों के साथ पैनी स्टॉक बन गई. कोई विकल्प न बचने पर चंद्रा ने अधिकांश कंपनियों को बंद कर दिया या एस्सेल इंफ्रा और एस्सेल फाइनेंस के बैनर तले बेच दिया. ग्रुप की एक अन्य बड़ी कंपनी एस्सेल प्रोपैक को निजी इक्विटी कंपनी ब्लैकस्टोन को बेच दिया गया.
कुछेक हजार लोगों को बेरोजगार कर दिया गया.
एमटी एडुकेयर जिसे चंद्रा द्वारा फरवरी 2018 में 200 करोड़ रुपये में लिया गया था (और इसके बाद 72.76 रुपये प्रति शेयर पर एक ओपन ऑफर के तहत इसके शेयर बेचने की कोशिशें की जा रही थी) वर्तमान में शेयर बाजार में इसका दाम लगभग 8.60 रुपये प्रति शेयर के आसपास है. इसमें चंद्रा की 59 फीसदी हिस्सेदारी की कीमत महज 37 करोड़ रुपये है.
यस बैंक की बर्बादी के लिए भी एस्सेल ग्रुप आंशिक रूप से जिम्मेदार था. चंद्रा को प्रवर्तन निदेशालय की जांच का सामना करना पड़ा. 20 मार्च, 2020 को चंद्रा ने ट्वीट किया, "ईडी द्वारा मुझसे अनुरोध किया गया है कि मैं उस जानकारी से संबंधित एक बयान दूं जो उनके पास पहले से ही मौजूद है. मुझे उनके कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर उनके अनुरोध का सम्मान करते हुए, हर तरह से आवश्यक सहयोग करके खुशी होगी.” वर्तमान में किसी को भी जांच की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
एस्सेल ग्रुप की कंपनियों द्वारा किये गये डिफ़ॉल्ट्स ने कुछ प्रमुख म्यूचुअल फंड्स के लिए भी जमीन हिलाकर रख दी. मई 2020 में, फ्रैंकलिन टेम्पलटन म्यूचुअल फंड ने एस्सेल इंफ्रा द्वारा जारी किए गए लोन पर एक डिफ़ॉल्ट की घोषणा की. नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर भी चंद्रा की व्यक्तिगत गारंटी द्वारा समर्थित थे.
जहां एक ओर कुछ फंड हाउस जैसे आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, कोटक और आदित्य बिड़ला सन लाइफ ने ग्रुप द्वारा हिस्सेदारियों की बिक्री के जरिये जुटाए गयी पूंजी से अपने पैसे वसूल कर लिये वहीं दूसरों को उनके हिस्से के पैसों का केवल एक भाग ही मिल पाया.
ज़ील में कई लोग याद करते हैं कि लगभग पांच साल पहले जब इस कंपनी का एम-कैप 35,000 करोड़ रुपये के दायरे में था तब सीईओ के रूप में शामिल हुए पुनीत मिश्रा ने कैसे इस घरेलू प्रसारण कंपनी के मार्केट कैपिटलाइजेशन को दोगुना करने की बात कही थी. हालांकि ग्रुप की विविधता और कर्ज की अधिकता ने ज़ील को भी प्रभावित किया और जल्द ही शुरुआती उत्साह भी खत्म हो गया. आज कंपनी का मार्केट कैप लगभग 19,800 करोड़ रुपये है और चंद्रा की शेष चार प्रतिशत हिस्सेदारी का मूल्य वर्तमान में लगभग 790 करोड़ रुपये है. इसका अधिकांश हिस्सा समूह की विदेशों में पंजीकृत तीन संस्थाओं के पास है- एस्सेल मीडिया वेंचर्स, एस्सेल होल्डिंग्स और एस्सेल इंटरनेशनल होल्डिंग्स.
एक स्त्रोत ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "पिछले कुछ सालों में ज़ील का ध्यान पूरी तरह कर्ज को कम करने, कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता पर केंद्रित है. बोर्ड काफी ताकतवर है और इसका चेयरमैन आगे बढ़कर नेतृत्व करता है. पुनीत गोयनका, कार्यकारी निदेशक और सीईओ बोर्ड को रिपोर्ट करते हैं."
एक कट्टर राष्ट्रवादी
चंद्रा को नरेंद्र मोदी सरकार के प्रबल समर्थक के रूप में जाना जाता है. कोई आश्चर्य नहीं कि अक्सर विवादों को जन्म देने वाले ज़ी न्यूज़ और उनके ग्रुप द्वारा चलाए जा रहे अन्य टीवी न्यूज़ चैनलों का झुकाव निश्चित तौर पर पूरी तरह हिंदू राष्ट्रवादी पक्ष की ओर ही है.
मई, 2015 में चंद्रा, सुधीर चौधरी जैसे कुछ शीर्ष संपादकों को दूर-दराज के गांवों में ले गए. इसके कदम के पीछे की सोच यह थी कि इससे यह जानने की कोशिश की जायेगी कि न्यूज़ टेलीविजन पर ग्रामीण लोगों को क्या पसंद है और क्या नापसंद है. एक शोध एजेंसी को नियुक्त करने के बजाय संपादकों को सीधे टारगेट ऑडियंस के पास ले जाया गया. चंद्रा ने अपने एक अंग्रेजी समाचार चैनल जिसे बाद में वियोन नाम दिया गया, के लॉन्च से पहले पत्रकारों की एक चुनिंदा बैठक को बताया, "मेरठ के एक ग्रामीण ने हमें बताया कि 'सब बिका हुआ है', हर समाचार चैनल बिक चुका है." "लेकिन एक संक्षिप्त चर्चा के बाद उसी व्यक्ति ने हमें यह भी बताया कि आप हमारी आखिरी उम्मीद हैं."
वियोन के द्वारा वह अंतरराष्ट्रीय समाचारों के लिए एक भारतीय नजरिये का निर्माण करना चाहते थे, जैसे कि अल जज़ीरा ने दुनिया को मध्य पूर्व के नजरिये से और बीबीसी ने यूके के नजरिये से देखा. वह हमेशा से मीडिया की "सॉफ्ट पावर" में विश्वास करते रहे हैं जो नई पीढ़ी की राजनीतिक सोच को प्रभावित कर सकती है.
7 अगस्त, 2015 को चिंतित चंद्रा ने मुंबई के एक होटल में पत्रकारों से मुलाकात की. वह टीवी न्यूज़ चैनलों की बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने के लिए एक "नियामक ढांचे" की गैर हाजिरी को लेकर आंदोलित थे. उन्होंने शिकायत की कि न्यूज़ चैनलों के कॉरपोरेट मुखौटे से पर्दा हटाने और उनकी फंडिंग की तह तक जाने के लिए "भारतीय रिजर्व बैंक के सटीक और उचित मानदंडों" की तरह कोई कड़े नियम नहीं हैं.
"दुर्भाग्य से हमारा तंत्र चैनल के मालिक द्वारा अपने आवेदन के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किये गए दस्तावेजों आदि से एक कदम भी आगे बढ़कर नहीं देखता. अगर यह मनी ट्रेल दाऊद इब्राहिम पर जाकर खत्म होता है तो मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं होगा," चंद्रा ने कहा. उनके अनुसार इस कारण राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता हुआ है.
ज़ी न्यूज़ के एंकर जिस राजनीतिक बयानबाजी और आक्रोश के साथ अपने डेली शोज़ प्रस्तुत करते हैं वो चंद्रा के विचारों और समझ को ही दर्शाते हैं. चेयरमैन की टीम कार्यकारी अधिकारियों का आपस में बहुत मजबूती से बंधा हुआ समूह होता है जिसमें दूसरे लोग किसी भी तरह दखल नहीं दे सकते. यह टीम लगातार ऐसे मुद्दे उछालती रहती है जो नियमित रूप से ज़ी न्यूज़ पर चर्चा का विषय बन जाते हैं.
"भारतीय टेलीविजन के पिता" और एक दूरदर्शी के रूप में जाने जाने वाले चंद्रा शायद इस बात से अनजान थे कि उनके प्रतिनिधि, संपादकों और सीईओ पर नजर रखते हैं और इन प्रतिनिधियों द्वारा गलत निर्णय भी लिए गए हैं. उदाहरण के लिए डीएनए ने 14 वर्षों में एक दर्जन से अधिक संपादकों और कई सीईओ को बाहर का रास्ता लेते देखा है. इन संपादकों और सीइओ आदि पदाधिकारियों का औसत कार्यकाल एक वर्ष का था. यहां तक कि चंद्रा ने दावा किया है कि उनका विशाल मीडिया साम्राज्य बगैर किसी हस्तक्षेप के "पेशेवर रूप से चलाया गया".
उनके तेजतर्रार और तर्कहीनता की हद तक चले जाने वाले आक्रामक तौर-तरीकों में से ज्यादातर एक परिवार विशेष के स्वामित्व वाले और बेशर्मी से केंद्रीकृत व्यवसाय की कार्य संस्कृति के ही पूरक थे. यहां हर कोई हर किसी के पहले नाम के बाद "जी" लगाकर संबोधित करता. आलोचकों ने इसे "जी संस्कृति" कहकर खुले तौर इसका मज़ाक उड़ाया.
जून 2016 में, चंद्रा के राज्यसभा में निर्वाचन की कहानी हरियाणवी लोककथाओं से भी ज्यादा रोमांचक है. भाजपा द्वारा समर्थन प्राप्त चंद्रा का निर्वाचन कांग्रेस के 12 नेताओं के वोट खारिज होने के बाद हुआ था. और इन 12 कांग्रेसी नेताओं का वोट इसलिए खारिज हुआ था क्योंकि उन्होंने "गलत कलम" का इस्तेमाल किया था. हालांकि किस बात ने विधायकों को गलत कलम का इस्तेमाल करने और अपने वोटों को अमान्य करने के लिए प्रेरित किया यह अब तक अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है. और इस तरह भारतीय राजनीति में विवादों और उपद्रव का एक और नया रिकॉर्ड बन गया.
सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया है कि चंद्रा को दोबारा संसद में जाने का मौका मिलने की संभावना न के बराबर है.
एक लंबी लड़ाई के बाद डीएनए प्रेस के सैकड़ों बर्खास्त कर्मचारियों ने दो महीने पहले एक छंटनी पैकेज हासिल किया है. डीएमसीएल ने प्रेस और जमीन के संभावित खरीदारों के साथ सेल एग्रीमेंट करने के बाद ही यह सौदा किया था. डीएनए प्रेस महापे में स्थित है जहां पर डीएमसीएल ने जमीन बेचने के लिए डेटा सेंटर कंपनी CtrlS के साथ तीन अलग-अलग सेल डील्स पर हस्ताक्षर किए थे. डीएमसीएल ने आपस में जुड़े हुए दो प्लॉट्स को 70 करोड़ रुपये में बेचा जबकि तीसरे प्लॉट के लिए 70 करोड़ रुपये के एक अन्य इनिशियल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हो चुके हैं. जिस पर प्रेस को कई हिस्सों में कर लेने के बाद ही कब्जा दिया जाएगा. फिलहाल यह प्रक्रिया जारी है.
गुजरात समाचार के प्रोमोटर्स के करीबी सूत्रों ने कहा है कि वो प्रिंटिंग प्रेस के लिए चार करोड़ रुपए की एडवांस मनी का भुगतान कर चुके हैं और एस्सेल ग्रुप्स के "गैर जिम्मेदाराना व्यवहार" से ऊब गए हैं.
प्रोमोटर्स में से एक ने कहा, "करीब दो साल बीत चुके हैं. हमें उम्मीद है कि अगले कुछ हफ्तों में हम इस मामले का निपटारा कर देंगे."
संपादकीय नोट: एंटो टी जोसेफ ने मुंबई की लेबर कोर्ट में डीएनए के खिलाफ एक मामला दायर किया है.
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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 75 से अधिक पाठकों ने योगदान दिया है. यह गौरव केतकर, प्रदीप दंतुलुरी, शिप्रा मेहंदरू, यश सिन्हा, सोनाली सिंह, प्रयाश महापात्र, नवीन कुमार प्रभाकर, अभिषेक सिंह, संदीप केलवाड़ी, ऐश्वर्या महेश, तुषार मैथ्यू, सतीश पगारे और एनएल सेना के अन्य सदस्यों की बदौलत संभव हो पाया है.
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