Newslaundry Hindi
कश्मीर घाटी में भाजपाई होने का क्या मतलब है?
“मेरे घर पर कई बार मिलिटेंट्स आए. उन्होंने घर के आदमियों के साथ-साथ महिलाओं के साथ भी मार-पिटाई की. गर्दन पर बंदूक रखकर भाजपा छोड़ने के लिए कहा. उनके सामने हमने हर दफा पार्टी छोड़ने की बात कही. लेकिन हम भाजपा से जुड़े रहे. किसी रोज मिलिटेंट्स हमें मार देंगे, लेकिन भाजपा मेरे लिए मां जैसी है. मां को कोई छोड़ता है भला,” यह कहना है श्रीनगर के भाजपा कार्यालय में रसोइए का काम करने वाले 34 वर्षीय शकील मीर का.
हिंसा और अलगाववाद से जकड़े कश्मीर में भाजपा से जुड़ना अपनी जान को दांव पर लगाने वाली बात है. पिछले साल अगस्त महीने में भारतीय जनता युवा मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूनम महाजन की रैली में आम लोगों को ले जाने के कारण आतंकवादियों ने भाजपा कार्यकर्ता शब्बीर अहमद भट्ट का पहले अपहरण किया और बाद में उनकी हत्या कर दी थी. शब्बीर की हत्या दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में की गई थी.
साल 2017 के नवंबर महीने में भारतीय जनता युवा मोर्चा, शोपियां के जिला अध्यक्ष गौहर अहमद भट्ट की भी हत्या कर दी गई थी. गौहर की दिसंबर में शादी होनी थी. गौहर की हत्या गला रेतकर निर्ममता से की गई थी.
शब्बीर और गौहर के अलावा भी बीते सालों के दौरान भाजपा से जुड़े कई नेताओं की हत्या और उनपर हमले की ख़बर आती रही हैं, लेकिन इस हालत में भी वहां धीरे-धीरे भाजपा अपनी उपस्थिति बनाने में सफल हो रही है.
श्रीनगर के जवाहर नगर में स्थित भाजपा का कार्यालय उन अनजान खतरों की तस्दीक करता है कि वहां भाजपाई होने के क्या मायने हैं. यह दफ्तर खोजने में हमें काफी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि ज्यादातर आम कश्मीरियों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं हैं, जिन्हें पता भी था उनकी भौंहें भाजपा के नाम पर तन जाती थी. एक व्यक्ति ऐसा भी मिला जिसने कार्यालय का पता पूछते ही गाली देना शुरू कर दिया.
कार्यालय के बाहर भाजपा ऐसा कोई पहचान चिन्ह या बोर्ड आदि नहीं लगाती, जिससे जाहिर हो की वह भाजपा का कार्यालय है. कार्यालय के गेट पर कश्मीर पुलिस और एसएसबी के जवान तैनात हैं. इस कार्यालय पर भी कई दफा आतंकियों ने हमला किया है.
पूछताछ के बाद कार्यालय के अंदर पहुंचने पर हमारी मुलाकात शकील मीर से हुई. शकील दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले से आते हैं. यह वही इलाका है जहां आतंकवाद की जड़े काफी गहरी हैं. उनका परिवार अभी भी अनंतनाग जिले में ही रहता है. वहां के नौगांव, बूथ संख्या 20 से इनके पिता सरपंच हैं.
शकील से बातचीत में कश्मीर की राजनीतिक स्थिति की एक झलक मिलती है. वह कश्मीर जहां की राजनीति को भाजपा पूरे देश में एक अलग नजरिए से इस्तेमाल करती है, वह कश्मीर जिसके विवाद में अब धर्म एक बड़ी भूमिका अदा कर रहा है, वह कश्मीर जिसकी सामाजिक संरचना भाजपा के राजनैतिक विचारों के विपरीत बिंदु पर खड़ी है.
शकील भाजपा और उसके कार्यकताओं की हालत बयां करते हुए कहते हैं, “जिस तरह से दिल्ली में गिलानी साहब (सैयद अलीशाह गिलानी) को देखा जाता है, उनके साथ जैसा व्यवहार किया जाता है. ठीक वैसा ही बर्ताव हमारे साथ यहां घाटी में होता है. हमें गद्दार समझा जाता है. कौम का दुश्मन माना जाता है. रिश्तेदार मिलने से कतराते हैं. हर वक़्त जान का खौफ बना रहता है.”
शकील बताते हैं कि उनके अनंतनाग स्थिति घर पर कई दफा आतंकियों ने हमला किया. घर को आग लगा दी. मिलिटेंट्स घर में घुस आए, मार-पिटाई की. उन्हें हर बार भाजपा छोड़ने की धमकी दी गई. लेकिन शकील का परिवार भाजपा से जुड़ा रहा. वे कहते हैं, “हम तब भी भाजपा से जुड़े रहे जब वो सत्ता में नहीं थी.”
वैसे तो कश्मीर के सभी आतंकी संगठन वहां की हर सियासी तंजीम से नफरत करते हैं, लेकिन भाजपा से उनकी नफरत का स्तर बाकियों से कहीं ज़्यादा है. इसका एक कारण कश्मीर को लेकर भाजपा का संकीर्ण, धार्मिक नजरिया भी है.
अशरफ आजाद 90 के दशक में भाजपा से जुड़े. तब कश्मीर में आतंक चरम पर था. घाटी से कश्मीरी पंडितों को भगाया जा चुका था. बड़गाम सरपंच संघ के अध्यक्ष अशरफ आजाद कहते हैं, “1992 में जब मुरली मनोहर जोशी लाल चौक पर झंडा फहराने आए थे. तब जोशी साहब के साथ नरेंद्र भाई (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) भी थे. उस वक़्त इन लोगों की बातें सुनकर मैं भाजपा से जुड़ा था.”
अशरफ आजाद का भाजपा में सफर बेहद मुश्किलों भरा रहा है. न्यूज़लांड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, “तीन बार मेरा घर जला दिया गया. कई सालों तक मैं अपने बच्चों के साथ किराये के कमरे में रहने को मज़बूर रहा. एक बार बाजार से लौट रहा था तो गाड़ी से एक्सिटेंड करवा दिया. मुझे मारने की हर कोशिश हुई, लेकिन खुदा मेरे साथ था.” अभी अशरफ आज़ाद को पुलिस सुरक्षा मिली हुई है. उनके साथ तीन पुलिसकर्मी हर वक़्त रहते हैं.
जम्मू कश्मीर से भाजपा के एमएलसी हैं प्रदीप शर्मा. 2009 में उनके ऊपर पेट्रोल डालकर जलाने की कोशिश हुई थी. साल 2008 और 2014 में इनके घर में आग लगा दी गई थी.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए प्रदीप शर्मा बताते हैं, “घाटी में भाजपा से जुड़े लोगों को परेशान किया जाता है. मुस्लिम कार्यकर्ताओं के साथ तो और भी परेशानी है क्योंकि उन्हें तो उन्हीं (जो नफरत करने वाले हैं) रहना है.”
कश्मीर में क्या है भाजपा की स्थिति?
भाजपा जम्मू में तो हमेशा मज़बूत स्थिति में रही, लेकिन कश्मीर में कभी कोई लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई. 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में जब किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो पीडीपी और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई. इस तरह से पहली बार जम्मू-कश्मीर में भाजपा सरकार में आई. हालांकि ये सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. भाजपा ने ही पीडीपी का साथ छोड़ दिया जिसके बाद सरकार गिर गई.
सरकार में शामिल होने के बाद भाजपा ने कश्मीर घाटी में अपनी स्थिति मज़बूत करने की कोशिश तेज़ की है. भाजपा के महासचिव अशोक कौल, जम्मू-कश्मीर में पार्टी का काम काज देखते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए अशोक कौल कहते हैं, “यहां के लोग भाजपा को बेवजह दुश्मन मानते रहे हैं. लेकिन धीरे-धीरे लोग भाजपा को समझ रहे हैं और इससे जुड़ रहे हैं. लोकसभा चुनाव 2014 में हमें कश्मीर में 10 हजार वोट मिला था, उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में हमें लगभग 50 हजार वोट मिला. सबने पंचायत चुनाव का बहिष्कार किया, लेकिन हम लोग चुनाव में शामिल हुए. हमारे लोगों को मारा गया. उस चुनाव में भी हमारा प्रदर्शन अच्छा रहा और हमने सबसे ज्यादा जगहों पर जीत दर्ज की.”
अशोक कौल आगे कहते हैं कि मुश्किल हालत में भी हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं. हमारे कार्यकर्ताओं की हत्या की जाती है. हमारे कार्यकर्ताओं के घरों में हमले होते हैं. उनके परिजनों को सताया जाता है, लेकिन फिर भी वो खड़े हैं. पार्टी कोशिश करती है कि कार्यकर्ताओं को सुरक्षा मिले लेकिन हर एक कार्यकर्ता की सुरक्षा में पुलिस जवान नहीं लग सकते हैं.
खतरों के बाद भी भाजपा से क्यों जुड़ रहे हैं लोग?
अभी कश्मीर में भाजपा के लगभग दो लाख सदस्य हैं. ये वे सदस्य है जो मिस कॉल के जरिए भाजपा से जुड़े हैं. अगर सक्रिय कार्यकर्ताओं की बात करें तो उनकी संख्या लगभग दो से तीन हजार होगी. हाल ही में आतंकवादियों के हाथों मारे गए सेना के जवान औरंगजेब के पिता मोहम्मद हनीफ भी भाजपा से जुड़ गए हैं. मोहम्मद हनीफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने पार्टी की सदस्यता ली.
पूंछ जिले के रहने मोहम्मद हनीफ न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर मैं भाजपा में शामिल हुआ. जिस तरह से उन्होंने आम गरीब लोगों के लिए काम किया शायद ही आज तक किसी ने किया हो. जहां तक किसी तरह के डर की बात है तो मेरा बेटा देश के नाम शहीद हो गया. अब मेरा पूरा परिवार देश के लिए शहीद होने के लिए तैयार है.”
जब भाजपा से जुड़ना इतना खतरानक है तो आखिर कश्मीरी मुसलमान भाजपा से क्यों जुड़ रहे हैं, इस सवाल के जवाब कश्मीर भाजपा के मीडिया प्रभारी मंजूर भट्ट न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “सालों से कश्मीरी मारे जा रहे हैं. हाल ही में एक मिलिटेंट मारा गया जो पीएचडी किया हुआ था. क्यों मारे जा रहे हैं? क्योंकि युवाओं को आजादी के झूठे सपने दिखाए जाते है. उनको हथियार पकड़ाया जाता है. लेकिन जब वे एनकाउंटर में मार दिए जाते हैं तो उनके परिवार को देखने वाला कोई नहीं होता. यही सब देखकर हम भाजपा से जुड़े. भाजपा के अलावा किसी भी पार्टी की मंशा कश्मीर की समस्या खत्म करने की नहीं है.”
शकील मीर कश्मीर की स्थानीय राजनीतिक तस्वीर को भी इसका एक हिस्सा बताते हैं. कश्मीर का हर राजनीतिक दल किसी एक परिवार की जागीर है. नेशनल कॉन्फ्रेंस पर अब्दुल्लाह परिवार और पीडीपी पर मुफ़्ती परिवार का कब्जा है. कांग्रेस तो गांधी परिवार की है ही. इन पार्टियों में परिवार के अलावा कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता, लेकिन भाजपा में आम कार्यकर्ता भी एक दिन बड़े पदों पर पहुंच सकता है. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए कहते हैं, “मोदीजी भी आम कार्यकर्ता थे, लेकिन आज देश के प्रधानमंत्री हैं.”
कश्मीरी और भाजपा के रिश्तों पर श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों के लिए काम करने वाले समाजिक कार्यकर्ता टीएन पंडिता कहते हैं, “यहां (घाटी में) हिंदुस्तान की जय कहने वाले हर शख्स को गद्दार और दुश्मन माना जाता है. कश्मीरी पंडितों को भी सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि आतंकियों को लगा कि हमें हिंदुस्तान से सहानुभूति है. इसके अलावा हमारा गुनाह क्या था. भाजपा एक राष्ट्रवादी पार्टी है, वो कश्मीर को हिंदुस्तान का अभिन्न अंग मानती है. ऐसे में उससे जुड़े लोगों को निशाना बनाया ही जाएगा. वहीं यहां के जो क्षेत्रीय दल हैं, वे मीडिया में भारत की बात करते हैं, लेकिन अपने कार्यकर्ताओं के सामने दूसरी तरह की बात करते हैं.”
भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए तमाम तरह के खराब हालात के बावजूद अशोक कौल की उम्मीद कायम है. वे कहते हैं, “आज तो नहीं लेकिन दस साल बाद कश्मीर के लोग भाजपा से जुड़ेंगे. कश्मीर में भाजपा कार्यकर्ता खुलकर लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रख पाएंगे.”
Also Read
-
Kamala Harris’s legacy as a ‘well-behaved woman’ who couldn’t make history
-
From satire to defiance: The political power of Abu Abraham’s cartoons
-
Trump’s return: The threat to US press freedom runs parallel to India’s media crisis
-
Another oran hurdle to a Rajasthan project. This time to Adani solar plant
-
विचाराधीन आपराधिक मामलों की रिपोर्टिंग को लेकर केरल हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी