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दिल्ली विधानसभा चुनाव: कैसे पूर्वांचली वोटरों के हाथ लगी सत्ता की चाबी
‘‘भले ही बिहार-यूपी में लोग बिरादरी देखकर वोट करते हो लेकिन दिल्ली में जो पूर्वांचली रहते हैं वो काम देखकर वोट करते हैं. मैं ऐसा अपने अनुभव से कह रहा हूं, क्योंकि मैं दिल्ली की राजनीति को लम्बे समय से देख रहा हूं.’’
यह कहना है, न्यू अशोक नगर के अपने घर के सामने बैठे लक्ष्मी मंडल का. लक्ष्मी मंडल बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले हैं और बीते कई सालों से दिल्ली में ही रहते हैं. मंडल की बात में कुछ हद तक सच्चाई है लेकिन इसका एक और पहलु भी है. जाति, समूह और संप्रदाय में बंटा पूर्वी यूपी और बिहार का रहने वाला वोटर दिल्ली में क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर एकजुट होकर वोट करता है. इस लिहाज से आज की तारीख में यह दिल्ली प्रदेश का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण वोटबैंक बनकर उभरा है.
दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तीनों बड़े दल (आप, कांग्रेस और भाजपा) मैदान में उतर चुके हैं. तीनों दलों की प्राथमिकता में पूर्वांचली वोटर सबसे ऊपर हैं. दिल्ली चुनाव में पूर्वांचली वोटरों की भूमिका कुछ सालों में लगातार बढ़ती गई है. जिसकी अहमियत हर दल समझते हैं.
2014 के मोदी लहर में दिल्ली की सातों सीट जीतने वाली भाजपा एक साल बाद दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गई. 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज तीन सीटें नसीब हुई. इसके बाद जब दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने थे तो आनन-फानन में साल 2013 में बीजेपी में शामिल हुए भोजपुरी गायक और अभिनेता मनोज तिवारी को 2016 में बीजेपी ने अपना अध्यक्ष बना दिया. जिसका विरोध भी देखने को मिला. बीजेपी दिल्ली में लम्बे समय से काम कर रहे नेताओं ने इसको लेकर नाराजगी भी दर्ज की.
बीजेपी के दिल्ली के नेताओं में यह कसक अभी भी बाकी है. एक बीजेपी के एक नेता कहते हैं, ‘‘मनोज तिवारी में पूर्वांचल में मशहूर होने के अलावा क्या खास था? उनका राजनीतिक अनुभव महज तीन साल का था. मोदी लहर में सांसद बन गए थे, बस.’’
आम आदमी पार्टी (आप) की बात करें तो पार्टी शुरू से ही पूर्वांचली लोगों को अहमियत देती रही है. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आप के 14 विधायक पूर्वांचल इलाके से ताल्लुक रखते हैं. वहीं इस बार पार्टी ने 12 पूर्वांचलियों को उम्मीदवार बनाया है. आप आदमी पार्टी में संजय सिंह, दिलीप पाण्डेय और गोपाल राय जैसे बड़े चेहरे हैं जो पूर्वांचल इलाके से आते हैं. संजय सिंह जहां राज्यसभा सांसद हैं वहीं गोपाल राय दिल्ली सरकार में वरिष्ठ मंत्री के साथ-साथ आप के दिल्ली यूनिट के प्रमुख हैं. दिलीप पाण्डेय पहले आप की दिल्ली यूनिट के प्रमुख रहे चुके हैं, वहीं लोकसभा चुनाव में वे मनोज तिवारी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं. पार्टी ने इस विधासभा चुनाव में उन्हें तिमारपुर सीट से मैदान में उतारा है.
कांग्रेस में जब तक शीला दीक्षित ताकतवर रहीं, तब तक किसी दूसरे पूर्वांचली चेहरे की ज़रूरत कांग्रेस पार्टी को नहीं पड़ी. लेकिन उस दौरान भी महाबल मिश्रा कुछ चेहरे कांग्रेस के साथ थे. शीला दीक्षित के निधन के बाद पार्टी ने पूर्वांचली वोटरों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. इसके तहत पूर्व क्रिकेटर और पूर्व बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद को पार्टी ने दिल्ली चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया है. कीर्ति आजाद बिहार से ताल्लुक रखते हैं. पूर्वांचली वोटरों को लुभाने के अलावा कीर्ति आजाद को बड़ी भूमिका देने के पीछे कोई कारण नज़र नहीं आता है. महाबल मिश्रा भी अभी तक कांग्रेस में ही हैं लेकिन उनके बेटे विनय कुमार मिश्रा द्वारका विधानसभा से आप के उम्मीदवार बनाए गए हैं. अब देखना होगा कि चुनाव के दौरान मिश्रा कांग्रेस में रहते हैं या नहीं. अगर वे कांग्रेस में रहते हैं तो अपने बेटे के लिए प्रचार करते हैं या अपनी पार्टी के लिए. वैसे कांग्रेस को उम्मीद है कि महाबल मिश्र पार्टी से अलग नहीं होंगे.
दिल्ली में कैसे बढ़े पूर्वांचली वोटर
एक समय था जब दिल्ली चुनाव में पंजाबी वोटरों की भूमिका महत्वपूर्ण होती थी. 90 के दशक के अंत तक यह स्थिति बनी रही. लिहाजा दिल्ली की राजनीतिक में पंजाबी पृष्ठभूमि वाले नेताओं का प्रभुत्व देखने को मिलता था. लेकिन उदारीकरण के बाद हिंदी पट्टी में जनसंख्या के दबाव, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि के चलते शुरू हुए व्यापक विस्थापन ने दिल्ली के राजनीतिक मानचित्र को बदल दिया. धीरे-धीरे दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या बढ़ने लगी और यहां की राजनीति में ये तबका महत्वपूर्ण होता गया.
कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ‘‘दिल्ली में पूर्वांचली वोटर जिस दल के साथ गए उसकी जीत लगभग तय मानी जाती है. 2013 से पहले पूर्वांचल के वोटर कांग्रेस के साथ थे. आप देखें तो बिहार और उत्तर प्रदेश में भले कांग्रेस लम्बे समय से सत्ता में नहीं रही लेकिन दिल्ली में पन्द्रह साल तक सत्ता में रही. यह बिना पूर्वांचली वोटरों के सहयोग के मुमकिन नहीं था. 2012 में अन्ना आंदोलन के बाद बनी आम आदमी पार्टी की तरफ पूर्वांचली वोटरों का झुकाव हो गया जिसका नतीजा हुआ कि आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला. वैसा बहुमत दिल्ली के इतिहास में किसी को नहीं मिला है.’’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं, ‘‘मैंने यह बदलाव अपनी आंखों से देखा है. बिहार और यूपी से पहले भी लोग दिल्ली रोजी-रोटी के लिए आते थे लेकिन वो यहां के स्थायी नागरिक नहीं बन रहे थे. 1995 के बाद दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों को लगा कि खेती से फायदा नहीं हो रहा है तो उन्होंने अपनी जमीनों पर प्लॉट काटना शुरू कर दिया. और सस्ते दरों पर 25 गज और 50 गज ज़मीनें मिलने लगी. बिहार और यूपी से आए कमजोर तबके लोगों ने दिल्ली में बसने की चाह में जमीनें लेकर रहना शुरू कर दिया. एक बार जिस का जमीन से रिश्ता जुड़ जाय वह वोटर भी बन जाता और स्थानीय भी.’’
दिल्ली के नांगलोई, किराड़ी और बवाना जैसे इलाके, जहां भारी संख्या में पूर्वांचली रहते थे वहां शुरू-शुरू में पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं था. बिजली नहीं थी. पीने के पानी के लिए सब मिलकर चापाकल लगवाते थे या दूर से पानी भरकर लाते थे. धीरे-धीरे वहां सुविधाएं बढ़ी और सुविधाओं के साथ-साथ लोग भी बढ़ते गए. दिल्ली में बीजेपी की सरकार तो अस्त व्यस्त रही लेकिन शीला दीक्षित सरकार में इन इलाकों में काफी काम हुआ. इन इलाकों के लोग इस बात को स्वीकार करते हैं. यही वजह रही कि लंबे समय तक पूर्वांचली कांग्रेस का भरोसेमंद वोटर बना रहा.
आंकड़े और इलाके
दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या के अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री को दिए एक इंटरव्यू में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी बताते हैं कि दिल्ली में 43 प्रतिशत वोटर पूर्वांचल के रहने वाले हैं.
जनसत्ता अख़बार से जुड़े वरिष्ट पत्रकार मनोज मिश्रा जो खुद भी पूर्वांचल से आते हैं, बताते हैं, “दिल्ली में 26 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में 20 प्रतिशत वोटर पूर्वांचली हैं. वहीं 10 विधानसभा क्षेत्रों में वोटरों की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है. ऐसे विधानसभा क्षेत्र संगम विहार, बुराड़ी, किराड़ी, विकासपुरी और उत्तम नगर है.’’
मनोज मिश्रा दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या महत्वपूर्ण होने के पीछे के कारणों का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘पहले जब चुनाव होता था तो वोट डिवीज़न पंजाबी, बनिया, सरकारी कर्मचारी, दिल्ली देहात और गरीब बस्तियों के आधार पर होता था लेकिन यह धीरे-धीरे बदल गया. भारत के विभाजन के बाद जब रिफ्यूजी आए तो यहां पंजाबियों की संख्या तेजी से बढ़ी और चुनाव में उनकी भूमिका मजबूत हो गई. साल 1982 में दिल्ली में एशियाड गेम हुआ तो काफी संख्या में मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश से यहां आए. इससे पहले उतराखंड, हिमाचल के पहाड़ी इलाकों से भी लोग आए थे. लेकिन जब बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से लोगों का आना शुरू हुआ तब दिल्ली जनसंख्या का स्वरूप तेजी से बदला. धीरे-धीरे इन लोगों का संपर्क अपने गांवों से कटता गया. वो यहां के वोटर हो गए. इस समय पूर्वांचलियों की तीसरी पीढ़ी दिल्ली में रह रही है और इसका असर यहां की राजनीति पर भी दिखने लगा है.’’
कांग्रेस से दूर, आप के पास
2013 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले ज्यादातर पूर्वांचली वोटर कांग्रेस के समर्पित वोटर हुआ करते थे. इसके कारणों का जिक्र करते हुए मनोज मिश्रा कहते हैं, ‘‘इसका सबसे बड़ा कारण था झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों के मन में बैठा डर. दरअसल दिल्ली में जितनी झुग्गी और कच्ची कॉलोनिया हैं उसे बसाने में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का हाथ था. उन लोगों ने इन लोगों के मन में डर बैठा दिया कि अगर बीजेपी या कोई और पार्टी सत्ता में आएगी तो उन्हें हटा देगी. दूसरी बात शीला दीक्षित जो मूलत: पंजाबी थीं लेकिन उनकी शादी यूपी के कन्नौज में हुई थी तो वो खुद को पूर्वांचली बताती रहती थीं. लेकिन 2012 में आम आदमी पार्टी के गठन और उसकी लोकलुभावन नीतियों के बाद पूर्वांचली वोटरों का झुकाव उनकी तरह हुआ.’’
पूर्वांचली वोटरों के कांग्रेस से अलग होने के सवाल पर दिल्ली कांग्रेस के प्रवक्ता मुकेश कुमार कहते हैं, ‘‘पूर्वांचली वोटर कांग्रेस से अलग ज़रूर हुए है लेकिन इस चुनाव में वे कांग्रेस की तरफ वापसी करेंगे. कांग्रेस ने पूर्वांचलियों के लिए अपने शासन के दौरान जमकर काम किया था. बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने सिर्फ इन्हें छला है. हम अपने घोषणा पत्र में पूर्वांचल के लोगों के लिए अलग से बात रखने वाले है.’’
कांग्रेस दिल्ली अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा कहते हैं, ‘‘पूर्वांचली वोटर कांग्रेस के साथ वापस आएंगे क्योंकि हमारे पास कीर्ति आजाद जैसा बड़ा पूर्वांचली नाम है वहीं दूसरी तरफ महाबल मिश्रा है. इसके अलावा वोटरों के वापसी के पीछे एक बड़ी वजह बीजेपी और आप सरकार द्वारा पूर्वांचलियों को छला जाना है.’’
बीजेपी की सारी उम्मीदें मनोज तिवारी के इर्द-गिर्द सिमट गई हैं. दिल्ली बीजेपी का नेतृत्व उनके हाथ में होने के कारण लोगों का झुकाव बीजेपी की तरफ हो सकता है. भोजपुरी फिल्मों के तमाम बड़े स्टार आज बीजेपी के साथ हैं. भोजपुरी के तमाम लोकप्रिय चेहरे मसलन रविकिशन, दिनेश लाल निरहुआ और पवन सिंह बीजेपी में हैं.
दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता हरीश खुराना जो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के बेटे हैं और दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता हैं, न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘जब मेरे पिताजी दिल्ली के सीएम बने थे तो उन्होंने लालबिहारी तिवारी को मंत्री बनाया था जो पूर्वांचली थे. आज भले लोग कह रहे हैं कि पूर्वांचलियों की पकड़ मजबूत हो गई है लेकिन ऐसा नहीं है. उस वक़्त भी पूर्वांचलियों को पकड़ थी. हम बीजेपी के लोग पूर्वांचलियों को उतना ही महत्व देते हैं जितना पंजाबियों को देते है. हमारे यहां जात-पात और क्षेत्रवाद की राजनीति नहीं चलती है.’’
खुराना मानते हैं कि मनोज तिवारी को सिर्फ इसलिए बीजेपी दिल्ली का अध्यक्ष नहीं बनाया गया है कि वो पूर्वांचली हैं. उनकी और कई खासियतें हैं. उनके चाहने वाले देश के अलग-अलग हिस्सों के हैं.
आम आदमी पार्टी ने कई पूर्वांचली नेताओं को मैदान में उतारा है वहीं बीजेपी कितने पूर्वांचलियों को टिकट देगी इस सवाल पर खुराना कहते हैं, ‘‘हम जाति और क्षेत्र के आधार पर किसी को टिकट देने नहीं जा रहे है.’’
वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘दिल्ली में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोग रहते हैं. सब देश भर से उम्मीद लेकर आते हैं कि हम यहां पर छोटा-मोटा काम करेंगे. हमारे बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलेगी. हमारे बच्चों को अच्छी बिजली पानी मिलेगी. हमने यह सब दिया है. सब लोग आम आदमी पार्टी के साथ है’’.
क्या सोचते हैं पूर्वांचली वोटर
पांडव नगर में रहने वाले ऑटोचालक राकेश कुमार गुप्ता इलाहाबाद के रहने वाले है. पांच हज़ार रुपए के किराये के कमरे में रहने वाले राकेश ने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को वोट दिया था लेकिन विधानसभा चुनाव में वो केजरीवाल को वोट देने की बात करते हैं. राकेश कहते हैं, ‘‘मैं बीजेपी या आम आदमी पार्टी को वोट नहीं देता. मैं नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल को वोट करता हूं. देश के लिए नरेंद्र मोदी ज़रूरी हैं तो दिल्ली के अरविन्द केजरीवाल.”
कांग्रेस के सवाल पर राकेश कुमार कहते हैं, ‘‘कांग्रेस में कोई नेता नहीं है. दिल्ली में अगर कांग्रेस चुनाव जीत भी जाती है तो उनका सीएम कौन बनेगा. कुछ पता ही नहीं है. मैं तो केजरीवाल को ही वोट करूंगा.’’
ऐसा ही कुछ कहना है लक्ष्मी मंडल का. लक्ष्मी मंडल कहते हैं, ‘‘कांग्रेस ने दिल्ली के लिए काम नहीं किया ऐसा मैं नहीं कह सकता. शीला दीक्षित ने दिल्ली को चमकाया है लेकिन उनके बाद कांग्रेस में कोई नेता नज़र नहीं आ रहा है. फिर कांग्रेस को वोट क्यों दे कोई. रही बात बीजेपी की तो हम बीजेपी में भी कोई उम्मीद नहीं देख रहे है. केजरीवाल की वजह से दो महीने से मेरा बिजली बिल जीरो आ रहा है. पानी के पैसे नहीं लगते है. पानी का टैकर रोज आता है. तो आखिर क्यों हम नहीं चाहेंगे कि केजरीवाल की वापसी हो.’’
पटना के रहने वाले एसपी सिन्हा की राय कुछ अलग है. एसपी सिन्हा कहते हैं, ‘‘चार साल तक केजरीवाल ने कहा कि केंद्र और उपराज्यपाल काम नहीं करने दे रहे हैं लेकिन अब कह रहे हैं कि हमने काम नहीं किया तो हमें वोट मत दीजिए. एक साल में इतना काम हो गया. केजरीवाल फ्री-फ्री के नामपर लोगों का वोट बटोरना चाह रहे हैं तो शायद ऐसा न हो. कम से कम मैं तो फ्री के नाम पर वोट नहीं कर रहा हूं. आप बताये कि इस सरकार में कितने फ्लाईओवर बने है. कितनी सड़कें बनी है. हर गली तो महीनों से खुदी पड़ी है.’’
क्या चेहरा देखकर वोट करते हैं पूर्वांचली
पूर्वांचल यानी बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश. इन इलाकों में लम्बे समय से राजनीति में जाति का वर्चस्व रहा है. मतदाता जाति देखकर वोट करते रहे हैं तो क्या दिल्ली में भी इसी तरह से जाति देखकर या चेहरा देखकर वोट करते हैं.
इस सवाल के जवाब में मनोज मिश्रा कहते हैं, ‘‘अभी पूर्वांचल के राजनीति में जो जाति आधारित वोट करने का अवगुण है वो पूरी तरह दिल्ली की राजनीति में नहीं आया है लेकिन धीरे-धीरे आ रहा है. यहां भी जो सवर्ण हैं वो सवर्ण को वोट करता है और जो दलित है वो दलित को लेकिन अभी ऐसा खुलकर नहीं हो रहा है.’’
जाति आधारित राजनीति अभी खुलकर नहीं होने के पीछे एक बड़ा कारण है कि अभी पूर्वांचली यहां की राजनीति में एक हिस्सेदार है. जिस रोज राजनीति की बागडोर पूरी तरह पूर्वांचलियों के हाथ में आ जाएगी उस दिन से जाति वाली राजनीति का अवगुण यहां भी आ जाएंगा.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रहने वाले रामलाल वर्मा कहते हैं, ‘‘मैं जिस इलाके में रहता हूं वहां लोग जाति नहीं काम देखकर वोट कर रहे हैं और केजरीवाल ने बेहतर काम किया है इसमें कोई दो राय नहीं है.’’
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