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पत्रकारिता की नई मरुभूमि हिमाचल प्रदेश, पत्रकारों पर एफआईआर

बद्दी हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले का एक व्यावसायिक नगर है. 29 मार्च की शाम को पत्रकार ओम शर्मा, सड़क के बीचों-बीच खड़े होकर अपना कैमरा फुटपाथ पर बैठे हुए दर्जनभर प्रवासी श्रमिकों की तरफ घुमाते हैं, और फेसबुक पर लाइव जाते हैं.

"यह लोग सड़कों पर बाहर इसलिए आए हैं क्योंकि इन्होंने दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं है. प्रशासन ने समुचित इंतज़ाम नहीं किए हैं. मेरी स्थानीय समाजसेवी संस्थाओं से प्रार्थना है कि आगे आएं और इन लोगों की मदद करें."यह कहने वाले ओम शर्मा एक स्थानीय समाचार पत्र दिव्य हिमाचल में पत्रकार हैं, जिन्हें इस प्रदर्शन की सूचना एक पुलिस कांस्टेबल से मिली थी.

15 मिनट के भीतर ही पुलिस अफसर और स्थानीय नेता प्रदर्शन स्थल पर पहुंच जाते हैं और वहां आकर उन्होंने इन श्रमिकों से अपनी "नौटंकी" बंद कर अपने घरों को लौट जाने को कहा. ओम शर्मा के इसी प्रसारण के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एक पार्षद ने घोषणा की, "हमें कुछ समय दीजिए, हम पक्का इंतजाम करेंगे कि आपके पास खाना पहुंचे. प्रशासन की तरफ से मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि खाना आपके घर ज़रूर पहुंचेगा."

इसी वीडियो के दौरान पार्षद, ओम शर्मा की तरफ मुड़ते हुए यह दावा करते हैं कि प्रदर्शन करने वाले मज़दूरों में से एक के घर पर खाना है, वह केवल इसलिए प्रदर्शन कर रहा है कि ताज़ा राशन नहीं पहुंचा है. उनका तर्क यह है, "यह लोग यहां आकर इसलिए दुखड़ा रो रहे हैं क्योंकि पड़ोस वाली मज़दूर बस्ती की तरह इनके यहां ताजा राशन नहीं पहुंचा." मज़दूर ने पलट कर जवाब दिया- "अगर हमारे पास राशन होता, तो हम यहां सड़क पर होते?"

इस वीडियो ने फेसबुक पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया और यह 1,500 से ज्यादा बार शेयर किया गया. उसी दिन बद्दी पुलिस ने इस वीडियो को "सोशल मीडिया पर भड़काऊ और झूठी ख़बर" बताकर ओम शर्मा पर एफ़आईआर कर दी. इस एफ़आईआर को व्हाट्सएप के जरिए जारी किया गया. ऐसा करने वाले पुलिस अधिकारी और कोई नहीं बल्कि बद्दी के पुलिस अधीक्षक रोहित मालपानी थे. वो दावा करते हैं, "जिला प्रशासन बे सहारा लोगों के लिए, खाने और उनकी सलामती के लिए सारे इंतजाम कर रहा है. खाना व राशन विभिन्न टीमों के द्वारा खुलेदिल से बांटा जा रहा है."

ओम शर्मा के ऊपर आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत अनुच्छेद 54 में केस दर्ज हुआ है, जो झूठी चेतावनी के लिए सज़ा देता है. उनके ऊपर आईपीसी की चार धारा और लगी है, 182 (झूठी खबरें फैलाना), 188 (प्रशासनिक अधिकारीकी आज्ञा का उल्लंघन), 269 (लापरवाही से किसी खतरनाक बीमारी को फैलाना) और 336 (दूसरों के जीवन और सुरक्षा को खतरे में डालना).

38 साल के ओम शर्मा न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं कि, उनके 16 साल की पत्रकारिता में उनके ऊपर यह पहली एफ़आईआर है. "मैंने फेसबुक लाइव इसलिए किया क्योंकि अखबार ने अपने सरकुलेशन को लॉकडाउन में रोक दिया है. मैं कहीं रिपोर्ट फाइल ही नहीं कर सकता था." पर यह लॉकडाउन के दौरान उन पर होने वाली तीन एफ़आईआर में से पहली ही थी.

ओम शर्मा.

पास के ही नालागढ़ में, News18 हिमाचल के पत्रकार जगत बैंस पर भी पिछले 50 दिनों में 3 एफ़आईआर की गई हैं. बगल के जिले मंडी में यही स्थिति पत्रकार अश्वनी सैनी की है. लॉकडाउन के दौरान उन पर पांच केस दर्ज हो चुके हैं. डलहौजी के विशाल आनंद एक राष्ट्रीय समाचार चैनल से जुड़े हैं, उनके ऊपर भी दो एफ़आईआर दर्ज हो चुकी हैं. मनाली में, अंतरराज्यीय यात्रियों के क्वारंटीन पर प्रशासन के लचर रवैये को रिपोर्ट करने के कारण, पंजाब केसरी के सोमदेव शर्मा पर भी केस दर्ज किया गया. कुल्लू में दैनिक भास्कर के गौरीशंकर भी एफ़आईआर से बाल-बाल बचे. उनकी भूखे प्रवासी मजदूरों पर रिपोर्ट, जिसे लोकल एसडीएम ने "झूठी खबर" बताया, अंततः सच साबित हुई.

ओम शर्मा पर दूसरी एफ़आईआर 26 अप्रैल को हुई, जब उन्होंने हिंदी दैनिक अमर उजाला की एक रिपोर्ट फेसबुक पर शेयर की. उस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि सरकार ने व्यवसायियों को कुछ महीने के लिए बंद होने का आदेश दिया है, अगर कोई कर्मचारी कोरोना वायरस से पॉजिटिव पाया जाता है. सरकार द्वारा ट्विटर पर इस खबर का खंडन करने के बाद इसे अमर उजाला की वेबसाइट से हटा दिया गया. शर्मा पर आईपीसी की धारा 182 और 188, और आपदा प्रबंधन अधिनियम के खंड 14 के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है.

ओम शर्मा पर तीसरी एफ़आईआर अगले दिन 27 अप्रैल को दर्ज हुई. 23 अप्रैल को सोलन के जिलाधिकारी ने सुबह 8:00 से 11:00 के बीच कर्फ्यू में ढील की घोषणा की. इसके अंदर बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ तहसीलें भी आती है जो स्थानीय रूप से बीबीएन के नाम से मशहूर हैं. जब 24 अप्रैल को दुकानें खुलीं तो स्थानीय पुलिस ने उन्हें बलपूर्वक बंद करा दिया. अगले दिन एसडीएम ने स्पष्टीकरण दिया कि ढील के दौरान केवल जरूरी सामान बेचने वाली दुकानें ही खोली जा सकती हैं.

ओम शर्मा ने फेसबुक पर स्थानीय प्रशासन की इस ऊहापोह के लिए जनता को पतंग समझने की उपमा देकर जमकर आलोचना की. 3 दिन बाद प्रशासन ने इन पोस्ट के लिए उन पर आईपीसी की धारा 188 और सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 के अंतर्गत मामला दर्ज किया. फिर से, एफआईआर की ख़बर पुलिस अधीक्षक द्वारा एक व्हाट्सएप ग्रुप में बताई गई जिसमें स्थानीय पुलिस अफसर और पत्रकार शामिल हैं. उन्होंने ग्रुप में ओम शर्मा की पोस्ट को भी शेयर किया.

ओम शर्मा के अनुसार इन सभी एफ़आईआर की जड़ में प्रशासन के द्वारा हुई कोविड-19 रणनीति की खामियों को छुपाने की हड़बड़ाहट है. उनके अनुसार, “वे लॉकडाउन से पहले ऐसा नहीं करते. पर अब आप अगर दो शब्द प्रशासन की आलोचना के लिए लिख दें, तो आप पर एफआईआर निश्चित है.” ओम आगे बताते हैं,“एफ़आईआर होने के बाद से मेरा कर्फ्यू पास रद्द हो गया है. अब ‘बीबीएन’ में केवल सरकार द्वारा स्वीकृत पत्रकार ही, ग्राउंड रिपोर्ट कर सकेंगे.मैं बस घर पर ही रहता हूं.”

सच को छुपाने के साफ़ कोशिश

ओम शर्मा की तरह ही पास की नालागढ़ तहसील के 34 वर्षीय जगत बैंस पर भी तीन एफ़आईआर का बोझ है. वे न्यूज़18 हिमाचल में एक स्टिंगर हैं और उन पर यह एफ़आईआर तब दायर की गई जब उन्होंने सरकार की लॉकडाउन नीति में दिखाई देने वाली सहज कमियों को उजागर किया.

पहली एफ़आईआर लॉकडाउन के पहले हफ्ते में 30 मार्च को दाखिल की गई जब बैंस और उनके साथियों ने एक वीडियो रिपोर्ट दिखाई जिसमें यह बताया गया कि कैसे नालागढ़ के कुछ हिस्सों में प्रवासी श्रमिकों के पास राशन नहीं पहुंच पारहा. उन्हें इस एफ़आईआर के बारे में 1अप्रैल को पता चला, जो उन पर इसलिए फाइल की गई है क्योंकि उन पर “अफवाहें फैलाने” का आरोप है क्योंकि प्रशासन की नजर में जिस परेशानी को उन्होंने अपनी रिपोर्ट में दिखाया वह है ही नहीं. उनके कर्फ्यू पास को भी पुलिस ने अगले दिन रद्द कर दिया.

जगत बैंस.

जगत बैंस ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, “यह 25 अप्रैल को फिर से हुआ जब मुझे नालागढ़ के सल्लेवाल गांव से फोन आया. वहां के प्रवासी मज़दूरों ने मुझे बताया कि वहां के सरकारी सप्लायर ने उन्हें राशन देने से मना कर दिया है.” जब उन्होंने गांव पहुंचकर लाइव रिकॉर्डिंग शुरू की तो एक महिला श्रमिक ने हाथ जोड़कर उन्हें बताया कि मजदूर बाहर सड़कों पर इसलिए आए हैं क्योंकि उनके पास खाने को कुछ नहीं है. एक दूसरे मजदूर ने बताया कि स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें दूसरों से संपर्क करने की सलाह दी क्योंकिउनके पास इस परेशानी का कोई हल नहीं है.

रिपोर्ट ने अपना काम किया और मजदूरों को अगले दिन राशन पहुंचाया गया. स्थानीय प्रशासन ने जगत बैंस को कहा कि उन्हें इस चीज पर भी रिपोर्ट करना चाहिए, और उन्होंने ऐसा किया भी. पर जब उस दिन शाम को वह घर पहुंचे तो यह जानकर असमंजस में पड़ गए कि बीते कल उनके खिलाफ दो और एफ़आईआर दायर कर ली गई है. पहली एफ़आईआर उनकी सल्लेवाल की रिपोर्ट के बारे में थी जिसमें पुलिस ने उन पर अपने लाइव वीडियो के लिए भीड़ इकट्ठा करने का आरोप लगाया था. एफ़आईआर में जगत बैंस के द्वारा प्रशासन की आलोचना किए जाने का उल्लेख भी है. उनके ऊपर आईपीसी की धारा 188, 269 और 270 के अंतर्गत आरोप लगाए गए हैं.

उनके ऊपर दूसरी एफ़आईआर 23 अप्रैल की एक रिपोर्ट से जुड़ी थी जिसमें उन्होंने यह बताया था कि कैसे 22 अप्रैल की रात को कुछ निजी वाहन सीमाएं सील होने के बावजूद बद्दी तहसील में अवैध रूप से आवागमन कर रहे थे. जिला कमिश्नर ने न्यूज़18 हिमाचल को बताया था कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी. इसके बजाय जगत बेंस पर ही फिर से आईपीसी की धाराएं 188, 269 और 270 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया गया. एफ़आईआर कहती है- “पत्रकार जगत बैंस ने प्रशासन के वीडियो को बिना बात ही फैलाया. उन्होंने लॉकडाउन के निर्देशों का भी उल्लंघन किया.”

वे असमंजस में न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “सरकार के पास जितना संख्याबल है उसका सही उपयोग बजाय हमारे ऊपर एफ़आईआर दर्ज करने के प्रशासन को ठीक से चलाने में होता. यह सरासर उत्पीड़न है जो अपने साथ मानसिक उत्पीड़न भी लाता है. मुझे नालागढ़ पुलिस स्टेशन में गवाहों के साथ तीन बार हाज़िर होने के लिए कहा गया जिससे मुझे जमानत मिल सके. हर बार करीब 2 घंटे मुझे इंतजार करना पड़ा.”

और अब उनका कर्फ्यू पास भी स्थानीय प्रशासन ने दोबारा से जारी नहीं किया.वे कहते हैं, “अभी भी किसी के कॉल करने पर मैं खुद की ज़िम्मेदारी पर बाहर जाता हूं.”

सोलन जिला पत्रकार समिति और वहां के प्रेस क्लब के अध्यक्ष, और रिपोर्टर भानु वर्मा के अनुसार, “यह सत्य को बलपूर्वक दबाने का सीधा सीधा प्रयास है. इन विभिन्न एफ़आईआर के पीछे प्रशासन की खीज दिखाई देती है क्योंकि हिमाचल प्रदेश धीरे-धीरे ग्रीन जोन बनने की तरफ बढ़ रहा था. और फिर एक विस्फोट सा हुआ जिसके कारण अब हमारे यहां अट्ठारह केस हैं और 3 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. इस बात से मुख्यमंत्री कतई प्रसन्न नहीं हैं, पर अगर हम इसकी ख़बर चलाते हैं तो हम पर लगाम लगने के लिए उनके पास बस एक एफ़आईआर ही है.”

न्यूज़लॉन्ड्री में बीबीएम के एसडीएम प्रशांत देष्टा और बद्दी के पुलिस अधीक्षक रोहित मालपानी को इस रिपोर्ट के संबंध में संपर्क करने की कोशिश की परंतु उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. सोलन जिले के जनसंपर्क अधिकारी कार्यालय ने भी इस विषय पर कोई टिप्पणी देने से इंकार कर दिया.बद्दी के शहर पुलिस अधीक्षक एनके शर्मा ने भी न्यूज़लॉन्ड्री को समय दिया पर बाद में उस पर कोई भी टिप्पणी देने से मना कर दिया.

लॉकडाउन शुरू होने से अब तक की पांच एफ़आईआर

पड़ोस के जिले मंडी का भी यही हाल है. यहां पर 44 वर्षीय अश्विनी सैनी, जो कि दैनिक जागरण और पंजाब केसरी के लिए काम कर चुके हैं. अब जागरण के लिए फ्रीलांस और फेसबुक पेज मंडी लाइव के लिए वीडियो रिपोर्ट बनाते है, उनके खिलाफ भी लॉकडाउन शुरू होने के बाद से पांच एफ़आईआर दर्ज की जा चुकी है.

अश्विनी सैनी.

ओम शर्मा और जगत बैंस की तरह ही अश्विनी सैनी पर भी 8 अप्रैल को आईपीसी की धारा 188 और आपदा प्रबंधन कानून के सेक्शन 54 के तहत ही मामला दर्ज किया गया है. यह इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने सुंदर नगर तहसील के भरजवानूगांव में प्रशासन के द्वारा प्रवासी श्रमिकों को राशन ना पहुंचाए जाने पर रिपोर्ट किया था. जो वीडियो उन्होंने मंडी लाइव के लिए शूट किए, उनमें विभिन्न श्रमिक उन्हें यह बताते हुए दिखते हैं कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान दूसरी बार राशन नहीं मिला.

यह एफ़आईआर सुंदर नगर के एसडीएम राहुल चौहान के द्वारा फाइल की गई,जिन्होंने अश्विनी सैनी पर झूठी ख़बरें फैलाने का आरोप लगाया. अश्विनी ने इसके विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर को चिट्ठियां लिख दीं जिसमें उन्होंने एसडीएम चौहान पर “प्रेस की आवाज़ को दबाने” का आरोप लगाया.

13 अप्रैल को दिव्य हिमाचल के एक और रिपोर्टर के साथ वीडियो रिपोर्ट में जब उन्होंने यह बताया कि कैसे सुंदर नगर में ईंटों के भट्टे लॉकडाउन होने के बावजूद भी चल रहे हैं, तो उन पर तीन और एफ़आईआर थोप दी गईं. वे प्रवासी मजदूर जिन्हें प्रशासन की तरफ से राशन भी नहीं मिला था, स्थानीय ठेकेदारों ने उन्हें भट्ठों पर काम करने के लिए राजी कर लिया था. इस रिपोर्ट के बाद पुलिस ने भट्ठों पर काम रुकवाया और भट्टा मालिकों के ऊपर एफ़आईआर दर्ज की.

अश्विनी सैनी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “भट्टा मालिकों ने हमारे ऊपर प्रवासी मजदूरों के साथ उत्पीड़न और बुरे बर्ताव का आरोप लगाया, और पुलिस ने बिना कुछ सोचे हमारे खिलाफ तीन एफ़आईआर दर्ज कर दी. हमारे ऊपर आईपीसी की धाराएं 451, 504, 506 और 188 में मामले दर्ज किए गए हैं.”

उनके अनुसार इस डराने के चक्र में अंतिम पड़ाव यह था कि जब उनकी कार को स्थानीय पुलिस द्वारा 14 अप्रैल को ज़ब्त कर लिया गया. “हमें बताया गया कि यह कर्फ्यू के उल्लंघन के लिए है. हालांकि ऐसा संभव नहीं है क्योंकि राज्य सरकार ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पत्रकारों को कर्फ्यू से 23 मार्च, 2020 के आदेश में मुक्त रखा था.

पर शायद इतना काफी नहीं था क्योंकि फिर उन्हें पांचवीं बार आईपीसी की धारा 188, 192 और 196 में सड़क परिवहन कानून 1988 के अंतर्गत आरोपित किया गया. वे अपनी कार पुलिस से करीब एक महीने बाद 11 मई को छुड़ा पाए.

न्यूज़लॉन्ड्री में अश्विनी सैनी के खिलाफ दर्ज विभिन्न एफ़आईआर के संदर्भ में एसडीएम राहुल चौहान से बात की. उनके शब्दों में, “अश्विनी सैनी एक पत्रकार नहीं है. मैंने इस मामले में पूछताछ की है. उसे सरकार से मान्यता नहीं मिली हुई है.” जब हमने उनसे पूछा कि, क्या सरकार निश्चित करेगी के कौन पत्रकार है और कौन नहीं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि वह इस विषय पर और कोई टिप्पणी नहीं देना चाहते और उन्होंने हमें जिले के जनसंपर्क अधिकारी सचिन सेंगर से संपर्क करने के लिए कहा.

सेंगर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि सैनी जी की 7 अप्रैल की रिपोर्ट, जो उनके खिलाफ पहली एफ़आईआर का मूल कारण है- मनगढ़ंत तथ्यों से भरी हुई थी. विशेषतः वह खबर कि भरजवानू गांव में राशन नहीं पहुंचा. जब उन्हें बताया गया कि उस रिपोर्ट में बहुत से मजदूर यह स्वीकार करते दिखाई दे रहे हैं कि राशन नहीं पहुंचा है, इसके उत्तर में सचिन सेंगर ने कहा कि शायद उन्होंने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि वह टीवी पर दिखना चाहते थे.

उन्होंने हमें बताया, “ जब हमने उनसे बाद में बात की तो उन्होंने हमें बताया कि राशन तो एक हफ्ता पहले ही मिल चुका था.” क्या उन्हें लगता है कि अश्विनी सैनी की ईंट के भट्टों वाली खबर झूठी है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उसकी जांच अभी चल रही है. उन्होंने यह भी स्पष्टीकरण दिया कि अश्विनी सैनी की कार को जब्त करने का फैसला स्थानीय प्रशासन की कर्फ्यू पॉलिसी से जुड़ा हुआ है. “यह सही है कि पूरे राज्य में सभी प्रकार के वीडियो को कर्फ्यू से छूट मिली हुई थी परंतु, इस विषय में जिलों को अपनी नीति निर्धारण करने की छूट दी गई थी.”

हिमाचल प्रदेश में राशन का सुनियोजित वितरण ना होने पर रिपोर्ट करने से पत्रकारों के खिलाफ होने वाली सभी एफ़आईआर में एक सुनियोजित कुटिलता प्रतीत होती है. ओम शर्मा, जगत बेंस और अश्विनी सैनी ने इस दुष्चक्र को अपने ऊपर झेला है. मैंने सचिन सेंगर से पूछा कि, क्या यह राज्य में आलोचनात्मक पत्रकारिता को बंद करने के लिए प्रेस की स्वतंत्रता पर सुनियोजित हमला है? उन्होंने उत्तर दिया, “यह आपका दृष्टिकोण हो सकता है. एक आपदा के दौरान, सभी चीजों के लिए थोड़ा संयम बरतना पड़ता है. हो सकता है प्रशासन ने उनको (अश्विनी सैनी की रिपोर्टों को), असंतोष फैलाने वाली सामग्री माना हो.”

अप्रैल माह के मध्य में, 49 वर्षीय पत्रकार विशाल आनंद को डलहौजी के स्थानीय प्रशासन ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने के लिए आरोपित किया. दावा यह था कि उन्होंने शहर के गांधी चौक के छाया चित्रों को चंबा जिले में कोविड-19 की एक ख़बर के लिए इस्तेमाल किया. आनंद ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि, यह दावे केवल खोखले ही नहीं बल्कि बुरी नीयत से प्रेरित लगते हैं क्योंकि डलहौजी चंबा जिले में ही आता है.

अपने ऊपर पहली एफ़आईआर दर्ज होने के बाद उन्होंने एक समाचार संस्था को बताया था कि ऐसा करना केवल एक चीज का लक्षण है की, “कुछ अधिकारी अपनी सत्ता का इस्तेमाल पत्रकारों को धमकाने के लिए कर रहे हैं.” इससे आगे वे कहते हैं कि वह सही तथ्यों को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे. वह इशारा करते हैं, “यह मेरे 18 साल की पत्रकारिता में पहली बार है कि, मेरे खिलाफ एक एफ़आईआर दर्ज़ की गई है.”

पर हिमाचल प्रदेश की परिस्थितियों की विडंबना यह है कि आनंद के ऊपर इस कथन के लिए भी एक एफ़आईआर दर्ज हो गई.

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