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मेरठ के दौराला में मुस्लिमों ने लगाए ‘ये घर बिकाऊ है' के पोस्टर
“ये लोग हम पर लगातार अत्याचार करते रहते हैं, हम इनके एक-दो बड़े आदमियों से मिलकर-मशविरा कर अपने काम को निबटाते रहते हैं. अब जब ये हम पर लगातार अत्याचार करते रहेंगे तो हम क्या करेंगे यहां रह कर! इस कारण अब हम इस गांव को छोड़कर जा रहे हैं. हमारी कोई नहीं सुनता, ना ही हमारी कोई मानता है. पलिस वाले इस केस में भी लगातार फैसला करने का दबाव बना रहे हैं कि फैसला कर लो. तो बताओ क्या फायदा है यहां रह कर. अब हमारा यहां से कोई मतलब नहीं.”
मेरठ के दौराला थाना क्षेत्र के मावी-मीरा गांव निवासी शकील अहमद ने अपनी व्यथा हमें सुनाते हुए ये बातें कहीं. शकील अहमद गांव के उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने दूसरे समुदाय पर उत्पीड़न का आरोप लगा कर गांव छोड़ देने का मन बनाया है. उन्होंने अपने घर पर “यह मकान बिकाऊ है, हम इस गांव से पलायन कर रह हैं” का पोस्टर चिपका दिया है.
दरअसल पिछले दिनों इस गांव के लगभग 20 परिवारों ने गांव के गुर्जर समाज के कुछ लोगों पर उत्पीड़न का आरोप लगाकर अपने घरों पर ये पर्चे चिपका दिए थे. इनका आरोप है कि गांव के ही सुंदर पुत्र वीरसिंह ने उनके यहां से उधार सिगरेट खरीदी थी, जिसका तगादा करने पर मारपीट की. जिसका आस-पड़ोस के लोगों ने बीच-बचाव करा दिया. लेकिन इसके बाद आरोपी सुंदर शराब के नशे में अपने मोहल्ले के प्रवेश पुत्र नरेंद्र, मीनू पुत्र कैलाश और सचिन पुत्र हरपाल सहित लगभग 20 लोगों के साथ हमला कर दिया. उनके घरों पर फायरिंग और तोड़फोड़ की. इस घटना का सीसीटीवी फुटेज भी मौजूद है. थाने में तहरीर के बावजूद पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही है. इस केस में लगातार पुलिस समझौता करने का दबाव बना रही है. अभी तक रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की है. साथ ही ग्राम प्रधान भी उन्हीं लोगों का पक्ष ले रहे हैं.
गांव वालों का कहना है कि आरोपी दबंग प्रवृति के हैं और बार-बार उनके साथ साथ मार-पीट और उत्पीड़न करते रहते हैं. इनकी इन हरकतों से बाकि हिंदू समाज के लोग भी परेशान हैं. इनका कहना है कि ये पहली बार नहीं है, इससे पहले मई महीने में कब्रिस्तान को लेकर भी गांव में झगड़ा कर चुके हैं. तब भी गांव के लोगों ने फैसला कर बात को रफा-दफा करा दिया था. यह गांव मेरठ से लगभग 15 किलोमीटर आगे मुजफ्फरनगर हाईवे पर दौराला थाने से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर है. लगभग 3000 की जनसंख्या वाले इस गांव में 60 प्रतिशत हिंदू और 40 प्रतिशत मुस्लिमों की आबादी है.
बुधवार दोपहर लगभग तीन बजे हम इस गांव में पहुंचे तो गांव के रास्ते में घुसते ही बुग्गी में किसान गन्ने डालकर आते नजर आए. पहली नजर में गांव काफी संपन्न नजर आता है. यहां पक्की सड़कें, बिजली सहित लम्बे-चौड़े घर और कुछ लोगों के घरों में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए थे. सड़क के दोनों तरफ गांव के बिल्कुल शुरू में ही मंदिर है. इसके बाद थोड़े से अनुसूचित जाति के लोगों के घर थे. जिनसे लगे हुए मुस्लिमों के घर शुरू हो जाते हैं जिन पर 'ये मकान बिकाऊ है' का पोस्टर चिपका हुआ था. हमारे आने की खबर लगते ही काफी लोग वहां इकट्ठा हो गए थे.
हम वहीं एक घर में बैठ गए जहां लोगों ने इस घटना के बारे में हमें विस्तार से बताया.
इस घटना की शुरुआत मोहम्मद यूनुस के भतीजे तैयब के साथ दूसरे पक्ष के लोगों की मारपीट से हुई थी. जो बाद में यहां तक बढ़ गई. 60 साल के यूनुस हमें अपने साथ ले गए और अपने घर में गोलियों के निशान, टूटे शीशे दिखाकर उस दिन की घटना के बारे में बताया. यूनुस बताते हैं, “मेरा भतीजा तैयब पास ही दुकान पर बैठा हुआ था, एक गुर्जर का लड़का सुंदर पुत्र वीरसिंह ने दुकानदार से आकर (उधार) सिगरेट मांगी, तो उसने मना कर दिया. तो सुंदर ने तैयब से कहा कि आप सिगरेट दिला दो, मैं दो-चार दिन में पैसे दे दूंगा. तो तैयब ने सिगरेट दिला दी. उसके बाद कई बार पैसे देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने नहीं दिए. 23 दिसम्बर को उसने जब फिर कहा कि उस दुकानदार को पैसे दो वह मांग रहा है तो उन्होंने मारपीट शुरू कर दी. बच्चे के शोर मचाने पर मुहल्ले के कुछ लोग इकट्ठा हो गए. हमने इसे भी धमकाया और उनसे भी कहा कि अब छोड़ो, जो हो गया सो हो गया.”
मोहम्मद यूनुस आगे बताते हैं, “हम सुलह करा कर वापस घर पहुंचे ही थे कि लगभग 20 लोगों ने हम पर तमंचे, लाठी-डंडो से हमला कर दिया. घरों में तोड़-फोड़ की और दरवाजे पर गोली चलाई, जिसके निशान भी हैं (वो हमें निशान दिखाते हैं). इसके बाद जब हम तहरीर लेकर थाने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि दूसरा पक्ष भी अभी तहरीर देकर गया है, आप भी दे जाओ. बाकि सुबह अगर हम फोन करें तो थाने आना वरना वहीं बैठ कर अपना फैसला कर लेना. हम अपना सा मुंह लेकर चले आए.”
यूनुस आगे बताते हैं, “सुबह हमें धमकी भी मिली कि ‘हम देख लेंगे’. इस कारण अब हम यहां से जाने का प्लान कर रहे हैं. क्योंकि ये पहली वारदात नहीं है. मेरे साथ इससे पहले दो बार यही वारदात हो चुकी है. इनके अलावा और हिंदू भाई, यहां तक कि गुर्जर भी हैं, जो काफी प्यार मोहब्बत, भाईचारे से रहते रहे हैं. हिंदू-मुस्लिम की कोई बात ही नहीं है. बस यही कुछ लोग परेशान करते हैं,” यूनुस ने कहा.
यूनुस अंत में कहते हैं, “या तो इस केस में कोई कानूनी कार्रवाई हो, वरना हम गांव छोड़कर जा रहे हैं. जन्म से यहीं रहते हैं, गांव की मुहब्बत हमें नहीं जाने दे रही थी, लेकिन अब हम बहुत दुखी हो चुके हैं.”
इसी मोहल्ले के शकील अहमद पेशे से दर्जी का काम करते हैं. जो मेरठ से कपड़े लाकर घर पर ही रहकर सिलाई का काम करते हैं. और साथ ही गांव के कब्रिस्तान के मुतवल्ली (जिम्मेवार) भी हैं.
वे बताते हैं, “2013 में मुझे कब्रिस्तान का मुतवल्ली बनाया गया था. तब एक दीवार को लेकर झगड़ा हुआ था. तब से तनाव रहता है. गुर्जरों का एक ग्रुप बना हुआ है जो हम पर हर तरीके से प्रेशर देता है, मारपीट करते हैं. अगर पुलिस के पास फरियाद लेकर जाओ तो वह भी हमें ही अंदर कर देती है. मई में कब्रिस्तान की एक दीवार गिर गई थी, जिसकी एप्लीकेशन हमने थाने में दी. तो इंस्पेक्टर ने हमें फोन कर एक-दो लोगों के साथ मशविरा के लिए आने को कहा. जब हम वहां पहुंचे तो हमारे फोन जब्त कर लिए और पूरी रात बारी-बारी से हमें मारा. धारा-151 लगाकर अंदर कर दिया.”
यही बात 50 वर्षीय मेहराज ने भी बताई जो देहरादून में काम करते हैं. उन्होंने बताया कि पहले भी इन शरारती तत्वों ने कब्रिस्तान की दीवार गिरा दी थी. और पुलिस ने हमें ही मार लगाई.
शरीफ पुत्र सिद्दीक इसी गांव के निवासी हैं और चक्की चलाते हैं. शरीफ कहते हैं, “देखिए कि 100-200 रुपए की शराब तो पीकर आ गए, लेकिन दुकानदार से 20 रुपए की सिगरेट उधार मांग रहे हैं. अब एक तो पड़ोसी के नाते उसने सिगरेट दिलाई. पैसे देने को बोला तो उसी के ऊपर इतना बवाल कर दिया कि गोली और पथराव सब तक किया. इसके लिए दोनों तरफ से 5-5 आदमियों की कमेटी भी बनाई हुई है. जब उनसे कहा तो वे भी यही बोले कि हम क्या करें. पहले भी ये लोग गोली चला चुके हैं, जो एक औरत को लगी थी तब भी दबाव बना कर फैसला करा लिया था."
वो आगे कहते हैं, "वे गोली चलाते हैं, हम रिपोर्ट भी करते हैं लेकिन पुलिस फिर भी फैसले का दबाव बनाती है. फैसला तो हमने पहले भी किया था. अब तो हमने उनकी बजाए, अपने दिल से फैसला कर लिया है कि हम मकान बेच कर गांव छोड़ रहे हैं. मकान बिके या ना बिके, इसकी भी परवाह नहीं है. कहीं जगह न मिले तो हिंदुस्तान की नहर, नदी, नालों में डूब कर मर जाएंगे. अब ऐसी नौबत आ गई कि गांव में रहने को दिल नहीं करता.”
दुकानदार
हम यहां उस दुकानदार से भी मिले जिसकी दुकान पर ये झगड़ा हुआ था. दुकानदार नौशीन ने बताया, "वह लड़का सिगरेट लेने आया था, लेकिन मैं जानता नहीं था तो मना कर दिया. फिर उसी लड़के ने मुझसे कहा तो उसके कहने से मैंने सिगरेट दे दी. उसके बाद जब उसने पैसे मांगे तो पैसे तो दे दिए. लेकिन उसमें थप्पड़ भी मार दिया, जिसके बाद झगड़ा हुआ. बाद में वे लोग इकट्ठा होकर आए और फायरिंग भी. हालांकि मुझसे कुछ नहीं कहा."
दूसरा पक्ष
जिन लोगों पर मारपीट और फायरिंग करने का आरोप है वह गांव के दूसरे मोहल्ले में रहते हैं. उनसे मिलने के लिए हम वहां पहुंचे तो ज्यादातर लोग गांव में मौजूद नहीं थे. एक-दो लोग जो वहां मौजूद थे उनसे बातचीत हुई तो उन्होंने पलायन करने की बात को नाटक बताया. कुछ देर बाद जब हम वहां से निकलने लगे तभी जिस लड़के सुंदर से ये विवाद हुआ था उसके पिता वीरसिंह वहां आ गए. उन्होंने इस घटना में आरोप-प्रत्यारोप के बारे में बातचीत की.
वीरसिंह बताते हैं, “3-4 लड़के मोदीपुरम में मकान से आ रहे थे, कुछ खाए-पिए भी थे. नौशीन की दुकान पर आकर इन्होंने सिगरेट मांगी और पैसे दिए. तो उसने कहा कि एक दिन के 20 रुपए और हैं. इस बात पर इनमें कुछ गाली-गलौज हो गई. और इसने उसमें थप्पड़ मार दिया. इसके बाद उन्होंने पथराव कर दिया. अब यहां से कुछ लोग गए, मैं तो था नहीं, अगर मैं होता तो कुछ होने न देता. रात को बात भी हो गई कि बच्चों का झगड़ा है दोनों की कुछ क्षति हो गई, हमारी भी गाड़ी टूटी है, लड़का भी पिटा है लेकिन कोई रिपोर्ट वगैरह नहीं होगी. उसी बात को बढ़ा दिया है. कोई मकान पर पलायन के पोस्टर चिपका रहा है. कुछ नहीं, बस राजनीति दिखा रहे हैं.”
पहले झगड़े के सवाल पर वीर सिंह कहते हैं, “झगड़ा हुआ था पहले भी, लेकिन इनमें से किसी का नाम नहीं था उस झगड़े में. हम तो अब भी हाथ जोड़ रहे हैं कि इससे गांव का माहौल खराब होता है. इन बैनरों को उतरवाओ. मैंने तो कहा है कि अगर हमारी गलती है तो हम तो अपनी गलती पंचों में खड़े होकर मान रहे हैं. वैसे भी ये दिखावटी ही है, ये तो है नहीं कि वे सच में जा ही रहे हैं.”
गोली चलने के सवाल पर वीर सिंह कहते हैं, “ये तो गोली नहीं चला रहे थे, लेकिन इनका नाम लगा दिया. हालांकि फायर तो हुए हैं. उन्होंने ईंट भी बरसाई. बाकि आज भी हम वहां कह कर आए हैं कि बड़े बूढ़े रहते आए हैं, आगे कोई गलती नहीं करेंगे, आगे हम कुछ नहीं होने देंगे. अगर उस दिन भी मैं होता तो कुछ होने नहीं देता. बाकि उम्मीद है कि मामला निबट जाएगा. वो भी आदमी भले हैं, ये तो और लोग बलवा करा रहे हैं.”
ग्राम प्रधान
मामले में मुस्लिम समुदाय के लोग गांव के प्रधान की भूमिका पर भी सवाल उठा रहे हैं. हम प्रधान सुशील कुमार से भी मिले और इस घटना के बारे में बात की. उन्होंने हमसे कैमरे पर बोलने से तो इंकार कर दिया. लेकिन वैसे हमसे बात की.
घटना के बारे में प्रधान सुशील ने कहा कि सिर्फ 20 रुपए की बात थी. जिस पर ये विवाद हुआ. क्योंकि इस लड़के ने औकात जैसे शब्द का प्रयोग कर दिया था, तो उसने थप्पड़ मार दिया. हालांकि फिर कुछ लड़ाई हुई पर बाद में मामला समझा-बुझा कर शांत कर दिया था. लेकिन अब कुछ लोग हैं जो इन्हें उकसा कर अपनी राजनीति कर रहे हैं. ये कहीं जा थोड़ी रहे हैं. बाकि पूरे गांव में भाईचारा है और ये मामला भी एक-दो दिन में शांत हो जाएगा.
पुलिस पर मामले को दबाने का आरोप
इस मामले में गांव वालों ने पुलिस पर कार्यवाही न करने और मामले को रफा-दफा करने का आरोप लगाया है. गांव वालों के पलायन की वजह पुलिस द्वारा मौके दर मौके एकतरफा रवैया अपनाने को माना जा रहा है.
लोगों से बातचीत के दौरान हमें पता चला कि स्थानीय थाना दौराला से दरोगा राजकुमार गांव में ही आए हुए हैं और दोनों पक्षों के लोगों से बात कर रहे हैं. हम उनसे मिलने पहुंचे और परिचय देकर कई बार उनसे बात करने की कोशिश की तो पहले तो वे फोन पर बिजी हो गए. फिर वे तेजी से गाड़ी में बैठकर वहां से चले गए. बैठक में शामिल एक आदमी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि ये इस मामले में फैसला करने और इन पोस्टरों को उतरवाने के लिए कह रहे थे.
इसके बाद हम दौराला थाने पहुंचे तो पता चला कि एसएचओ किरनपाल सिंह ग्राउंड पर गए हुए हैं. फोन पर हुई बातचीत उन्होंने कहा कि इस मामले में कार्यवाही चल रही है. फैसले के दबाव पर वे सवालिया अंदाज में बोले, “हम क्यूं फैसला कराएंगे, हमारा क्या मतलब है! बाकि वे (घरों पर) झूठे पोस्टर लगाकर गांव का माहौल बिगाड़ रहे हैं. इससे ये पूरे शासन प्रशासन को बुरा बनवा रहे हैं, क्या ये करना उचित है! या आज तक किसी ने पलायन किया है तो बताओ!”
कुछ लोगों के जाने की बात हमने उन्हें बताई तो एसएचओ थोड़ी नाराजगी में बोले, “आप उनकी बात मान लो. मैं थाने का इंचार्ज हूं, मुझे सब जानकारी है, कोई कहीं नहीं गया. ये खुद ही झगड़ा कराएंगे, रोज अखबार में निकाल रहे हैं, फेसबुक पर डाल रहे हैं. जो इन्हें करना है करने दीजिए.”
एफआईआर के सवाल पर एसएचओ किरनपाल कहते हैं, “कोई एफआईआर तो नहीं हुई है. बताओ क्या किसी के चोट लगी है, हाथ-पैर टूटा है! किसी के भी चोट नहीं लगी है, केवल माहौल खराब करने वाली बात है और कुछ नहीं है.”
फायर और शीशे टूटने की बात पर वे बोले, “जब पत्थरबाजी करेंगे तो शीशे टूटेंगे ही. बाकि हमारी पुलिस चारों तरफ घूम रही है. शांति व्यवस्था बनी हुई है, जो शांति व्यवस्था भंग करेगा उसके खिलाफ मैं कार्रवाई करूंगा. दोनों पक्षों को समझा दिया है कि जो बात हो गई वो हो गई, अब अगर आगे कोई बात होती है तो सख्त कार्रवाई होगी.”
“ये लोग हम पर लगातार अत्याचार करते रहते हैं, हम इनके एक-दो बड़े आदमियों से मिलकर-मशविरा कर अपने काम को निबटाते रहते हैं. अब जब ये हम पर लगातार अत्याचार करते रहेंगे तो हम क्या करेंगे यहां रह कर! इस कारण अब हम इस गांव को छोड़कर जा रहे हैं. हमारी कोई नहीं सुनता, ना ही हमारी कोई मानता है. पलिस वाले इस केस में भी लगातार फैसला करने का दबाव बना रहे हैं कि फैसला कर लो. तो बताओ क्या फायदा है यहां रह कर. अब हमारा यहां से कोई मतलब नहीं.”
मेरठ के दौराला थाना क्षेत्र के मावी-मीरा गांव निवासी शकील अहमद ने अपनी व्यथा हमें सुनाते हुए ये बातें कहीं. शकील अहमद गांव के उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने दूसरे समुदाय पर उत्पीड़न का आरोप लगा कर गांव छोड़ देने का मन बनाया है. उन्होंने अपने घर पर “यह मकान बिकाऊ है, हम इस गांव से पलायन कर रह हैं” का पोस्टर चिपका दिया है.
दरअसल पिछले दिनों इस गांव के लगभग 20 परिवारों ने गांव के गुर्जर समाज के कुछ लोगों पर उत्पीड़न का आरोप लगाकर अपने घरों पर ये पर्चे चिपका दिए थे. इनका आरोप है कि गांव के ही सुंदर पुत्र वीरसिंह ने उनके यहां से उधार सिगरेट खरीदी थी, जिसका तगादा करने पर मारपीट की. जिसका आस-पड़ोस के लोगों ने बीच-बचाव करा दिया. लेकिन इसके बाद आरोपी सुंदर शराब के नशे में अपने मोहल्ले के प्रवेश पुत्र नरेंद्र, मीनू पुत्र कैलाश और सचिन पुत्र हरपाल सहित लगभग 20 लोगों के साथ हमला कर दिया. उनके घरों पर फायरिंग और तोड़फोड़ की. इस घटना का सीसीटीवी फुटेज भी मौजूद है. थाने में तहरीर के बावजूद पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही है. इस केस में लगातार पुलिस समझौता करने का दबाव बना रही है. अभी तक रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की है. साथ ही ग्राम प्रधान भी उन्हीं लोगों का पक्ष ले रहे हैं.
गांव वालों का कहना है कि आरोपी दबंग प्रवृति के हैं और बार-बार उनके साथ साथ मार-पीट और उत्पीड़न करते रहते हैं. इनकी इन हरकतों से बाकि हिंदू समाज के लोग भी परेशान हैं. इनका कहना है कि ये पहली बार नहीं है, इससे पहले मई महीने में कब्रिस्तान को लेकर भी गांव में झगड़ा कर चुके हैं. तब भी गांव के लोगों ने फैसला कर बात को रफा-दफा करा दिया था. यह गांव मेरठ से लगभग 15 किलोमीटर आगे मुजफ्फरनगर हाईवे पर दौराला थाने से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर है. लगभग 3000 की जनसंख्या वाले इस गांव में 60 प्रतिशत हिंदू और 40 प्रतिशत मुस्लिमों की आबादी है.
बुधवार दोपहर लगभग तीन बजे हम इस गांव में पहुंचे तो गांव के रास्ते में घुसते ही बुग्गी में किसान गन्ने डालकर आते नजर आए. पहली नजर में गांव काफी संपन्न नजर आता है. यहां पक्की सड़कें, बिजली सहित लम्बे-चौड़े घर और कुछ लोगों के घरों में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए थे. सड़क के दोनों तरफ गांव के बिल्कुल शुरू में ही मंदिर है. इसके बाद थोड़े से अनुसूचित जाति के लोगों के घर थे. जिनसे लगे हुए मुस्लिमों के घर शुरू हो जाते हैं जिन पर 'ये मकान बिकाऊ है' का पोस्टर चिपका हुआ था. हमारे आने की खबर लगते ही काफी लोग वहां इकट्ठा हो गए थे.
हम वहीं एक घर में बैठ गए जहां लोगों ने इस घटना के बारे में हमें विस्तार से बताया.
इस घटना की शुरुआत मोहम्मद यूनुस के भतीजे तैयब के साथ दूसरे पक्ष के लोगों की मारपीट से हुई थी. जो बाद में यहां तक बढ़ गई. 60 साल के यूनुस हमें अपने साथ ले गए और अपने घर में गोलियों के निशान, टूटे शीशे दिखाकर उस दिन की घटना के बारे में बताया. यूनुस बताते हैं, “मेरा भतीजा तैयब पास ही दुकान पर बैठा हुआ था, एक गुर्जर का लड़का सुंदर पुत्र वीरसिंह ने दुकानदार से आकर (उधार) सिगरेट मांगी, तो उसने मना कर दिया. तो सुंदर ने तैयब से कहा कि आप सिगरेट दिला दो, मैं दो-चार दिन में पैसे दे दूंगा. तो तैयब ने सिगरेट दिला दी. उसके बाद कई बार पैसे देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने नहीं दिए. 23 दिसम्बर को उसने जब फिर कहा कि उस दुकानदार को पैसे दो वह मांग रहा है तो उन्होंने मारपीट शुरू कर दी. बच्चे के शोर मचाने पर मुहल्ले के कुछ लोग इकट्ठा हो गए. हमने इसे भी धमकाया और उनसे भी कहा कि अब छोड़ो, जो हो गया सो हो गया.”
मोहम्मद यूनुस आगे बताते हैं, “हम सुलह करा कर वापस घर पहुंचे ही थे कि लगभग 20 लोगों ने हम पर तमंचे, लाठी-डंडो से हमला कर दिया. घरों में तोड़-फोड़ की और दरवाजे पर गोली चलाई, जिसके निशान भी हैं (वो हमें निशान दिखाते हैं). इसके बाद जब हम तहरीर लेकर थाने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि दूसरा पक्ष भी अभी तहरीर देकर गया है, आप भी दे जाओ. बाकि सुबह अगर हम फोन करें तो थाने आना वरना वहीं बैठ कर अपना फैसला कर लेना. हम अपना सा मुंह लेकर चले आए.”
यूनुस आगे बताते हैं, “सुबह हमें धमकी भी मिली कि ‘हम देख लेंगे’. इस कारण अब हम यहां से जाने का प्लान कर रहे हैं. क्योंकि ये पहली वारदात नहीं है. मेरे साथ इससे पहले दो बार यही वारदात हो चुकी है. इनके अलावा और हिंदू भाई, यहां तक कि गुर्जर भी हैं, जो काफी प्यार मोहब्बत, भाईचारे से रहते रहे हैं. हिंदू-मुस्लिम की कोई बात ही नहीं है. बस यही कुछ लोग परेशान करते हैं,” यूनुस ने कहा.
यूनुस अंत में कहते हैं, “या तो इस केस में कोई कानूनी कार्रवाई हो, वरना हम गांव छोड़कर जा रहे हैं. जन्म से यहीं रहते हैं, गांव की मुहब्बत हमें नहीं जाने दे रही थी, लेकिन अब हम बहुत दुखी हो चुके हैं.”
इसी मोहल्ले के शकील अहमद पेशे से दर्जी का काम करते हैं. जो मेरठ से कपड़े लाकर घर पर ही रहकर सिलाई का काम करते हैं. और साथ ही गांव के कब्रिस्तान के मुतवल्ली (जिम्मेवार) भी हैं.
वे बताते हैं, “2013 में मुझे कब्रिस्तान का मुतवल्ली बनाया गया था. तब एक दीवार को लेकर झगड़ा हुआ था. तब से तनाव रहता है. गुर्जरों का एक ग्रुप बना हुआ है जो हम पर हर तरीके से प्रेशर देता है, मारपीट करते हैं. अगर पुलिस के पास फरियाद लेकर जाओ तो वह भी हमें ही अंदर कर देती है. मई में कब्रिस्तान की एक दीवार गिर गई थी, जिसकी एप्लीकेशन हमने थाने में दी. तो इंस्पेक्टर ने हमें फोन कर एक-दो लोगों के साथ मशविरा के लिए आने को कहा. जब हम वहां पहुंचे तो हमारे फोन जब्त कर लिए और पूरी रात बारी-बारी से हमें मारा. धारा-151 लगाकर अंदर कर दिया.”
यही बात 50 वर्षीय मेहराज ने भी बताई जो देहरादून में काम करते हैं. उन्होंने बताया कि पहले भी इन शरारती तत्वों ने कब्रिस्तान की दीवार गिरा दी थी. और पुलिस ने हमें ही मार लगाई.
शरीफ पुत्र सिद्दीक इसी गांव के निवासी हैं और चक्की चलाते हैं. शरीफ कहते हैं, “देखिए कि 100-200 रुपए की शराब तो पीकर आ गए, लेकिन दुकानदार से 20 रुपए की सिगरेट उधार मांग रहे हैं. अब एक तो पड़ोसी के नाते उसने सिगरेट दिलाई. पैसे देने को बोला तो उसी के ऊपर इतना बवाल कर दिया कि गोली और पथराव सब तक किया. इसके लिए दोनों तरफ से 5-5 आदमियों की कमेटी भी बनाई हुई है. जब उनसे कहा तो वे भी यही बोले कि हम क्या करें. पहले भी ये लोग गोली चला चुके हैं, जो एक औरत को लगी थी तब भी दबाव बना कर फैसला करा लिया था."
वो आगे कहते हैं, "वे गोली चलाते हैं, हम रिपोर्ट भी करते हैं लेकिन पुलिस फिर भी फैसले का दबाव बनाती है. फैसला तो हमने पहले भी किया था. अब तो हमने उनकी बजाए, अपने दिल से फैसला कर लिया है कि हम मकान बेच कर गांव छोड़ रहे हैं. मकान बिके या ना बिके, इसकी भी परवाह नहीं है. कहीं जगह न मिले तो हिंदुस्तान की नहर, नदी, नालों में डूब कर मर जाएंगे. अब ऐसी नौबत आ गई कि गांव में रहने को दिल नहीं करता.”
दुकानदार
हम यहां उस दुकानदार से भी मिले जिसकी दुकान पर ये झगड़ा हुआ था. दुकानदार नौशीन ने बताया, "वह लड़का सिगरेट लेने आया था, लेकिन मैं जानता नहीं था तो मना कर दिया. फिर उसी लड़के ने मुझसे कहा तो उसके कहने से मैंने सिगरेट दे दी. उसके बाद जब उसने पैसे मांगे तो पैसे तो दे दिए. लेकिन उसमें थप्पड़ भी मार दिया, जिसके बाद झगड़ा हुआ. बाद में वे लोग इकट्ठा होकर आए और फायरिंग भी. हालांकि मुझसे कुछ नहीं कहा."
दूसरा पक्ष
जिन लोगों पर मारपीट और फायरिंग करने का आरोप है वह गांव के दूसरे मोहल्ले में रहते हैं. उनसे मिलने के लिए हम वहां पहुंचे तो ज्यादातर लोग गांव में मौजूद नहीं थे. एक-दो लोग जो वहां मौजूद थे उनसे बातचीत हुई तो उन्होंने पलायन करने की बात को नाटक बताया. कुछ देर बाद जब हम वहां से निकलने लगे तभी जिस लड़के सुंदर से ये विवाद हुआ था उसके पिता वीरसिंह वहां आ गए. उन्होंने इस घटना में आरोप-प्रत्यारोप के बारे में बातचीत की.
वीरसिंह बताते हैं, “3-4 लड़के मोदीपुरम में मकान से आ रहे थे, कुछ खाए-पिए भी थे. नौशीन की दुकान पर आकर इन्होंने सिगरेट मांगी और पैसे दिए. तो उसने कहा कि एक दिन के 20 रुपए और हैं. इस बात पर इनमें कुछ गाली-गलौज हो गई. और इसने उसमें थप्पड़ मार दिया. इसके बाद उन्होंने पथराव कर दिया. अब यहां से कुछ लोग गए, मैं तो था नहीं, अगर मैं होता तो कुछ होने न देता. रात को बात भी हो गई कि बच्चों का झगड़ा है दोनों की कुछ क्षति हो गई, हमारी भी गाड़ी टूटी है, लड़का भी पिटा है लेकिन कोई रिपोर्ट वगैरह नहीं होगी. उसी बात को बढ़ा दिया है. कोई मकान पर पलायन के पोस्टर चिपका रहा है. कुछ नहीं, बस राजनीति दिखा रहे हैं.”
पहले झगड़े के सवाल पर वीर सिंह कहते हैं, “झगड़ा हुआ था पहले भी, लेकिन इनमें से किसी का नाम नहीं था उस झगड़े में. हम तो अब भी हाथ जोड़ रहे हैं कि इससे गांव का माहौल खराब होता है. इन बैनरों को उतरवाओ. मैंने तो कहा है कि अगर हमारी गलती है तो हम तो अपनी गलती पंचों में खड़े होकर मान रहे हैं. वैसे भी ये दिखावटी ही है, ये तो है नहीं कि वे सच में जा ही रहे हैं.”
गोली चलने के सवाल पर वीर सिंह कहते हैं, “ये तो गोली नहीं चला रहे थे, लेकिन इनका नाम लगा दिया. हालांकि फायर तो हुए हैं. उन्होंने ईंट भी बरसाई. बाकि आज भी हम वहां कह कर आए हैं कि बड़े बूढ़े रहते आए हैं, आगे कोई गलती नहीं करेंगे, आगे हम कुछ नहीं होने देंगे. अगर उस दिन भी मैं होता तो कुछ होने नहीं देता. बाकि उम्मीद है कि मामला निबट जाएगा. वो भी आदमी भले हैं, ये तो और लोग बलवा करा रहे हैं.”
ग्राम प्रधान
मामले में मुस्लिम समुदाय के लोग गांव के प्रधान की भूमिका पर भी सवाल उठा रहे हैं. हम प्रधान सुशील कुमार से भी मिले और इस घटना के बारे में बात की. उन्होंने हमसे कैमरे पर बोलने से तो इंकार कर दिया. लेकिन वैसे हमसे बात की.
घटना के बारे में प्रधान सुशील ने कहा कि सिर्फ 20 रुपए की बात थी. जिस पर ये विवाद हुआ. क्योंकि इस लड़के ने औकात जैसे शब्द का प्रयोग कर दिया था, तो उसने थप्पड़ मार दिया. हालांकि फिर कुछ लड़ाई हुई पर बाद में मामला समझा-बुझा कर शांत कर दिया था. लेकिन अब कुछ लोग हैं जो इन्हें उकसा कर अपनी राजनीति कर रहे हैं. ये कहीं जा थोड़ी रहे हैं. बाकि पूरे गांव में भाईचारा है और ये मामला भी एक-दो दिन में शांत हो जाएगा.
पुलिस पर मामले को दबाने का आरोप
इस मामले में गांव वालों ने पुलिस पर कार्यवाही न करने और मामले को रफा-दफा करने का आरोप लगाया है. गांव वालों के पलायन की वजह पुलिस द्वारा मौके दर मौके एकतरफा रवैया अपनाने को माना जा रहा है.
लोगों से बातचीत के दौरान हमें पता चला कि स्थानीय थाना दौराला से दरोगा राजकुमार गांव में ही आए हुए हैं और दोनों पक्षों के लोगों से बात कर रहे हैं. हम उनसे मिलने पहुंचे और परिचय देकर कई बार उनसे बात करने की कोशिश की तो पहले तो वे फोन पर बिजी हो गए. फिर वे तेजी से गाड़ी में बैठकर वहां से चले गए. बैठक में शामिल एक आदमी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि ये इस मामले में फैसला करने और इन पोस्टरों को उतरवाने के लिए कह रहे थे.
इसके बाद हम दौराला थाने पहुंचे तो पता चला कि एसएचओ किरनपाल सिंह ग्राउंड पर गए हुए हैं. फोन पर हुई बातचीत उन्होंने कहा कि इस मामले में कार्यवाही चल रही है. फैसले के दबाव पर वे सवालिया अंदाज में बोले, “हम क्यूं फैसला कराएंगे, हमारा क्या मतलब है! बाकि वे (घरों पर) झूठे पोस्टर लगाकर गांव का माहौल बिगाड़ रहे हैं. इससे ये पूरे शासन प्रशासन को बुरा बनवा रहे हैं, क्या ये करना उचित है! या आज तक किसी ने पलायन किया है तो बताओ!”
कुछ लोगों के जाने की बात हमने उन्हें बताई तो एसएचओ थोड़ी नाराजगी में बोले, “आप उनकी बात मान लो. मैं थाने का इंचार्ज हूं, मुझे सब जानकारी है, कोई कहीं नहीं गया. ये खुद ही झगड़ा कराएंगे, रोज अखबार में निकाल रहे हैं, फेसबुक पर डाल रहे हैं. जो इन्हें करना है करने दीजिए.”
एफआईआर के सवाल पर एसएचओ किरनपाल कहते हैं, “कोई एफआईआर तो नहीं हुई है. बताओ क्या किसी के चोट लगी है, हाथ-पैर टूटा है! किसी के भी चोट नहीं लगी है, केवल माहौल खराब करने वाली बात है और कुछ नहीं है.”
फायर और शीशे टूटने की बात पर वे बोले, “जब पत्थरबाजी करेंगे तो शीशे टूटेंगे ही. बाकि हमारी पुलिस चारों तरफ घूम रही है. शांति व्यवस्था बनी हुई है, जो शांति व्यवस्था भंग करेगा उसके खिलाफ मैं कार्रवाई करूंगा. दोनों पक्षों को समझा दिया है कि जो बात हो गई वो हो गई, अब अगर आगे कोई बात होती है तो सख्त कार्रवाई होगी.”
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