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कौन हैं वे किसान संगठन जो कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार को दे रहे हैं समर्थन?
30 दिसंबर को केंद्र सरकार के मंत्रियों और किसान नेताओं के बीच बात होनी थी. ठीक उसके दो दिन पहले 28 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ‘फार्मर्स विथ मोदी’ हैशटैग के साथ ट्वीट करते हुए लिखा, ‘लखनऊ उत्तर प्रदेश के ‘‘राष्ट्रीय युवा वाहिनी’’ से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र.’
यह पत्र 'राष्ट्रीय युवा वाहिनी' के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष हरीश गौतम द्वारा लिखा गया था. क्या इस संगठन का कृषि से कुछ लेना देना है? इस सवाल का जवाब कृषि मंत्री द्वारा साझा पत्र पर ही मिल जाता है, जहां संस्थान के प्रमुख उद्देश्य के रूप में ‘गौशालाओं और अनाथ आश्रमों का निर्माण, गोरक्षा, भ्रष्टाचार उन्मूलन में सहभागिता’ लिखा हुआ है.
जिस संस्थान के प्रमुख उद्देश्य में कृषि शब्द का जिक्र तक नहीं है उनका कृषि कानूनों पर समर्थन लेना आखिर कृषि मंत्री को क्यों ज़रूरी लगा?
कड़ाके की ठंड के बावजूद लाखों की संख्या में देश के अलग-अलग राज्यों से आए किसान दिल्ली की सरहद पर एक महीने से ज्यादा से बैठे हुए हैं. आंदोलन से आए दिन ठंड से मौत की खबरें भी आ रही हैं. ऐसे में प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत करने की कोशिश के साथ-साथ सरकार देश के दूसरे किसान संगठनों से समर्थन लेती नजर आ रही है.
इसी सिलसिले में 28 दिसंबर को नरेंद्र सिंह तोमर एक के बाद एक 12 ट्वीट करते हुए अलग-अलग ‘किसान संगठनों’ से कृषि कानूनों के समर्थन में मिला पत्र साझा करते हैं. यह समर्थन पत्र दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में किसान संगठनों के प्रमुखों ने उन्हें सौंपा था.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि इन 12 में से पांच संगठनों के प्रमुख भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं. एक संगठन खुद को बीजेपी का सहयोगी संगठन होने दावा करता है. इसके इतर हमने इन संगठनों की जमीन पर किसानों के बीच पकड़ जानने की कोशिश की.
राष्ट्रीय युवा वाहिनी
नरेंद्र सिंह तोमर को लिखे पत्र की शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय युवा वाहिनी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित हरीश गौतम लिखते हैं, ‘‘राष्ट्रीय युवा वाहिनी (भारतीय जनता परिषद) सदैव ही भारतीय जनता पार्टी के सहयोग में रही है. आज राष्ट्रीय युवा वाहिनी किसान बिलों के समर्थन में सम्पूर्ण रूप से सरकार के साथ है.’’
हरीश गौतम साफ-साफ लिखते हैं कि उनका संगठन बीजेपी का सहयोगी संगठन है. यह बात उनके लेटर हेड पर भी लिखी हुई है. यानी केंद्रीय कृषि मंत्री जिस संगठन से कृषि बिलों पर समर्थन मिलने का दावा करते नजर आते हैं वो तो उनकी ही पार्टी से जुड़ा हुआ है.
बीजेपी के सहयोगी संगठन होने के दावे से अलग क्या राष्ट्रीय युवा वाहिनी का किसानों से कुछ लेना देना है? इसका जिक्र इस रिपोर्ट के पहले हिस्से में ही किया गया है. सगंठन अपना मुख्य उद्देश्य गौशालाओं और अनाथ आश्रमों का निर्माण, गोरक्षा, भ्रष्टाचार उन्मूलन में सहभागिता’ बताता है. हाल ही में लखनऊ के डूडा कॉलोनी में हिन्दू लड़की और मुस्लिम युवक के बीच परिवारों की रजामंदी के बावजूद शादी वाले दिन पुलिस को पत्र लिखकर शादी रुकवाने की मांग हिन्दू महासभा के अलावा इस संगठन यानी राष्ट्रीय युवा वाहिनी द्वारा भी किया गया था.
संगठन ने इस मामले को लव जिहाद और धर्मांतरण बताया था, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी रिपोर्ट में पाया की इस मामले में लव जिहाद और धर्मांतरण था ही नहीं. लड़की और लड़के का घर एक गली में दो घरों के अंतराल पर है. लड़के को लड़की का परिवार अच्छे से जानता है. इनकी शिकायत के बाद पुलिस तत्काल इस शादी को रुकवा भी देती
राष्ट्रीय युवा वाहिनी की शुरुआत साल 2016 में हुई थी. इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष केडी शर्मा संगठन के खेती-किसानी से जुड़ाव के संबंध में पूछे गए सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमारे संगठन में किसान प्रकोष्ट भी है.’’
किसान प्रकोष्ट के प्रमुख के बारे में जानकारी मांगने पर शर्मा बताते हैं, ‘‘अभी तक इस पद पर कोई नहीं है. अलग से हमने किसी को भागीदारी नहीं दी है. सब ऐसा ही है.’’
क्या आपके संगठन ने कभी किसानों की मांग के लिए आंदोलन किया है. इस सवाल के जवाब में शर्मा कहते हैं, ‘‘किसानों के लिए आंदोलन तब करेंगे जब सरकार उनका अहित करेगी. ये सरकार तो किसानों हित में काम कर रही है. किसानों के लिए तरह-तरह की योजनाएं निकाल रही है. तो उसमें विरोध करने की ज़रूरत ही नहीं है. हमारा जो संगठन है वो बीजेपी का सहयोगी संगठन ही है. तो हम पहले अपनी बात कहेंगे. हक़ की लड़ाई लड़ने की ज़रूरत आएगी तो लड़ी भी जाएगी. इसमें कोई दिक्कत वाली बात नहीं है.’’
जब हम केडी शर्मा से बात कर रहे थे तो वो राकेश टिकैत के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने जा रहे थे. शर्मा का दावा है कि टिकैत ने ब्रह्मण समुदाय को लेकर गलत बयानी की है. शर्मा कहते हैं, ‘‘दिल्ली में जो प्रदर्शन हो रहा है उसमें किसान तो हैं ही नहीं. किसानों को विपक्ष बरगला रहा है.’’
अगर आप कृषि बिल के समर्थन में प्रदर्शन करें तो कितने किसान आपके साथ आ सकते हैं. इस सवाल के जवाब में शर्मा बताते हैं, ‘‘24 घंटे हमारे साथ एक हज़ार लोग ऐसे हैं जो कहीं भी प्रदर्शन करने आ सकते हैं. इसमें 250 किसान होंगे. 250 किसान हमारे साथ कभी भी आ सकते हैं.’’
राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन
नरेंद्र सिंह तोमर ने एक और पत्र साझा किया जो राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन द्वारा कृषि बिलों के समर्थन में लिखा गया है. पत्र को साझा करते हुए तोमर लिखते हैं, ‘‘लखनऊ उत्तर प्रदेश के ‘राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन’ से नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र. जिसमें कहा गया कि हम पूर्ण रूप से सरकार के साथ हैं.’’
एक तरफ जहां सरकार आंदोलन कर रहे किसानों नेताओं से बातचीत के बाद कानून में बदलाव के लिए तैयार है. उन किसान नेताओं को फर्जी बताते हुए पत्र में लिखा गया है कि हम कानून में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध करते हैं. यह कानून किसानों के हित में हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने वाला है.’’
राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन के अध्यक्ष का नाम राम निवास यादव है. पत्र पर उनके भी हस्ताक्षर हैं. राम निवास यादव बीजेपी के समान्य सदस्य नहीं हैं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बीजेपी के सात साल तक जिला अध्यक्ष रह चुके हैं. वह साल 2019 में 22 दिसंबर तक इस पद पर थे, जिसके बाद उन्हें कोई बड़ा दायित्व तो नहीं दिया गया लेकिन वे पार्टी के वरिष्ठ सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं.
अपने संगठन के बारे में बताते हुए राम नरेश यादव कहते हैं, ‘‘यह एक गैर राजनीतिक संगठन है जिसका निर्माण सात-आठ साल पहले हुआ था. यह उत्तर प्रदेश के 210 विधानसभाओं में सक्रिय हैं. हमारे साथ करीब दसियों हज़ार लोग हैं. हमारे संगठन का काम किसानों की समस्याएं देखना, उसे उठाना. किसानों के हित में काम करना है.’’
कृषि कानूनों को समर्थन देने और प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए अभद्र भाषा इस्तेमाल करने के सवाल पर यादव कहते हैं, ‘‘सरकार ने जो कानून लागू किया है उसकी मांग तो बहुत पुरानी है. हम लोग बाबा टिकैत के साथ काम करते थे. वे हमारे आदर्श थे. साल 2003 में लखनऊ में उनकी सभा हुई थी. जिसमें उन्होंने बिचौलियों से आज़ादी की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि किसानों को मुक्ति मिलेगी जब उन्हें अपनी उपज बेचने की आज़ादी दी जाएगी. आज वो हमारे बीच नहीं है. ऐसे में अगर सरकार उनकी पुरानी मांग को मान रही है तो इसका तो सम्मान करना चाहिए. और जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनसे पूछिए कि इसमें कमी क्या है, वह बस आशंका जाहिर करते है कि कल को ऐसा होगा. आशंका से काम थोड़ी चलता है. नुकसान बताये.’’
क्या आपने कभी किसानों के पक्ष में आंदोलन किया है. इस सवाल के जवाब में राम नरेश यादव कहते हैं, ‘‘प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी तब हम किसानों के लिए ना सिर्फ मार खाए बल्कि हिरासत में भी लिए गए थे. हमारे संगठन के कई कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटें आई थीं. उसके बाद की बात करे तो साल 2017 में हमने लखनऊ में गेहूं खरीद को लेकर जमकर प्रदर्शन किया था. तब हमारी ही सरकार थी. मुख्यमंत्री योगी जी ने हमारी बात सुनते हुए 12 अधिकारियों पर कार्रवाई की थी.’’
उन्नतिशील किसान क्लब और प्रगतिशील किसान क्लब
सरकार को समर्थन देने वाले संगठनों में हरियाणा के पलवल जिले के प्रगतिशील किसान क्लब और गुरुग्राम का उन्नतशील किसान क्लब भी शामिल है. प्रगतिशील किसान क्लब के लेटर हेड पर लिखे गए पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा ‘हरियाणा के "प्रगतिशील किसान क्लब" से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र.’
भले ही केंद्रीय मंत्री ने लिखा कि हरियाणा के प्रगतिशील किसान क्लब से उन्हें समर्थन मिला है लेकिन ऐसा नहीं है. यह समर्थन सिर्फ एक जिले के क्लब प्रमुख द्वारा दिया गया है. न्यूज़लॉन्ड्री ने हिसार के क्लब प्रमुख राजेंद्र लम्बा और फतेहाबाद के बलबीर सिंह घरवाल से बात की. दोनों ने बताया कि हम लोग इसके खिलाफ हैं. बलबीर सिंह घरवाल बताते हैं कि हमारे लोग तो दिल्ली के टिकरी बॉर्डर भी गए हैं. हम इसके खिलाफ हैं.
सरकार के लिखे अपने पत्र में इन दोनों संगठनों ने महज एक वाक्य में अपना समर्थन देते हुए लिखा है, ‘‘हम सरकार द्वारा किसानों के हित में लागू हुए कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं.’’
पलवल के प्रगतिशील किसान क्लब के प्रमुख बिजेंद्र सिंह दलाल भारतीय जनता पार्टी से जुड़े तो नहीं हैं लेकिन उनके सोशल मीडिया पर नजर दौड़ाने पर बीजेपी नेताओं के साथ कई तस्वीरें नजर आती हैं. कहीं तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठे हैं तो कहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ. वहीं दूसरी तरह उन्नतिशील किसान क्लब के गुरुग्राम प्रमुख मानसिंह यादव साल 2019 में इनेलो छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. हिंदुस्तान की खबर के मुताबिक मानसिंह यादव की राजनीति की शुरुआत बीजेपी और आरएसएस से शुरू हुई लेकिन वो ज़्यादा दिन तक वहां नहीं रह पाए और इनेलों में चले गए. फिर अब वापस बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
अपने संगठन के बारे में बताते हुए दलाल कहते हैं, ‘‘हम कोई किसान यूनियन नहीं हैं. हम प्रगतिशील किसान हैं. सरकार की तरफ से जो अच्छे काम होते हैं हम किसानों तक पहुंचाते हैं. हमारे संगठन से लगभग 500 किसान जुड़े हुए हैं.’’
एक तरह हरियाणा के लिए लाखों किसान सड़कों पर हैं. आपको इस कानून में क्या फायदा नज़र आता है जिसका आप समर्थन कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में दलाल कहते हैं, ‘‘मुझे उन बातों से क्या मतलब. मुझे अच्छा लगा तो मैंने समर्थन दे दिया. किसी से क्यों जद्दोजहद करना. हम लोगों से क्यों बुराई मोल लें.’’
दलाल का सोशल मीडिया बीजेपी नेताओं के साथ की तस्वीरों से भरा हुआ है वहीं दूसरी तरफ वे कहते हैं, ‘‘मेरा राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं है. हम किसानों के हित में काम करते हैं.’’
मानसिंह यादव ने कृषिमंत्री से मुलाकात के बाद मीडिया को बयान दिया था. उस वीडियो को भारतीय जनता पार्टी ने अपने फेसबुक से साझा भी किया है. उसमें यादव कहते नज़र आते हैं, ‘‘किसान एक ऐसी बिरादरी है जिसको कोई भी बहका सकता है. यदि इस अध्यादेश को पढ़ लें तो सारा रोग खत्म हो जाएगा. लोग बहकावे में आ ही सकते हैं. बाकी जो 70 साल से एक मामला चलता आ रहा है. हमारे अनाज की जो बोली लगती है वो खत्म होगी. कुछ ना कुछ बदलाव तो चाहिए. 70 साल से बदलाव नहीं हुआ तो हम गरीब के गरीब हैं. एकबार इसे देख लो.’’
क्या आपने इन तीनों कानूनों को पढ़ा है इस सवाल के जवाब में मानसिंह यादव न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते है, ‘‘हम तो अनपढ़ आदमी हैं. हमने कानून की पेचीदिगियों की समझ भी नहीं है. हमारे क्लब के अधिकांश सदस्यों का मानना है कि 70 साल से हम एक ढर्रे पर चल रहे थे. कोई बदलाव हुआ है तो उसे देखना चाहिए. क्या पता हमें यहां ग्राहक ज़्यादा मिल जाएं. एक बार इसका परिणाम तो देख लेते फिर तय करते.’’
उन्नतिशील किसान संगठन के बारे में बताते हुए यादव कहते हैं, ‘‘यह एक गैर राजनीतिक संगठन है जो सरकार और किसानों के बीच पुल का काम करता है. किसानों की मांग को सरकार तक और सरकार की योजनाओं को किसानों तक पहुंचना हमारा काम होता है. इसके करीब दो से तीन सौ सदस्य हैं. इसको बने लगभग बीस साल हो गए जिसमें तीन साल छोड़कर बाकी समय मुझे ही लोगों ने प्रमुख चुना है.’’
प्रदर्शनकारी किसानों को लेकर कहे जा रहे अप-शब्दों पर यादव नाराज़गी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं उनके बारे में कुछ नहीं कहूंगा. वे किसान हैं. हो सकता है उनकी समझ मुझसे बेहतर हो.’’
मान सिंह यादव कहते हैं, ‘‘चौटाला साहब के कुनबे में खटपट हो गई तो हमें अलग होना पड़ा. मैं बीजेपी में किसी पद पर नहीं हूं. उनका समर्थक ज़रूर हूं.’’
अखिल भारतीय बंग परिषद
‘अखिल भारतीय बंग परिषद’ नाम के एक संस्थान ने भी कृषि कानूनों के समर्थन में सरकार को पत्र लिखा है. इस पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा है कि नई दिल्ली के ‘‘अखिल भारतीय बंग परिषद’ से नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र. उन्होंने कहा कि ये कृषि कानून, किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने में सहायक बनेंगे.’’
इस संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण मुखर्जी है. दिल्ली में रहने वाले अरुण मुखर्जी भारतीय जनता पार्टी के नेता के साथ-साथ आरएसएस के व्यापारिक संगठन स्वदेश जागरण मंच के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी हैं. दिल्ली सरकार और बीजेपी के बीच एमसीडी के कथित 13000 करोड़ की मांग को लेकर बीजेपी द्वारा किए गए प्रदर्शन में मुखर्जी शामिल भी हुए हैं.
डेढ़ साल बने 'अखिल भारतीय बंग परिषद' के मुख्य उद्देश्यों में खेती-किसानी शामिल नहीं है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बनर्जी कहते हैं, ‘‘करीब डेढ़ साल पहले इस संगठन की शुरुआत हुई है. देश के जिस भी हिस्से में बंगाली रहते हैं हम वहां अपना काम करते हैं. बंगाली शब्द को गाली बना दिया गया है. इसलिए हम अपने प्रदेश की अस्मिता के लिए काम करते हैं. बंगाल के पश्चिमी इलाके में जब एक खास समुदाय के लोग बंग्लादेश से आए तो वहां के हिन्दू अपना घर, खेत-बाड़ी छोड़कर देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बस गए. ऐसे करीब एक लाख परिवार अपना घर छोड़कर भागे थे. वे वापस जाने से डरते हैं. ऐसे लोगों को हम सुरक्षित वापस भेजने का काम कर रहे हैं.’’
कृषि के लिए आपका संगठन क्या कोई काम करता है. इस सवाल के जवाब में बनर्जी कहते हैं, ‘‘हम खेती के लिए भी काम करते हैं. बंगाल के किसानों की बेहतरी के लिए हम लगातार कोशिश कर रहे हैं. वहां की सरकारों की वजह से किसानों का फायदा नहीं हुआ. वे गरीब ही रहे. उनके लिए किसी ने आवाज़ नहीं उठाई. हर प्रदेश के किसान संगठन हैं लेकिन बंगाल का नहीं है. इसी के लिए हमने ये संगठन बनाया है.’’
कृषि में उनके संगठन के योगदान के लिए कई बार हम सवाल दोहराते हैं लेकिन बनर्जी कोई ठीक जवाब नहीं देते हैं. वे बताते हैं, ‘‘दिल्ली में हमसे पांच हज़ार लोग जुड़े हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों के साथ-साथ देश के अलग-अलग प्रदेशों में लोग हमारे संगठन से लोग जुड़े हुए हैं.’’
इंडियन किसान यूनियन
कृषि बिलों पर समर्थन देने वाला एक संगठन इंडियन किसान यूनियन भी है. इस संगठन से मिले समर्थन पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा, ‘‘नई दिल्ली के "इंडियन किसान यूनियन" से प्राप्त नए कृषि सुधार क़ानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र. उन्होंने इन क़ानूनों को किसान हितैषी व किसानों को आत्मनिर्भर बनाने वाला बताया.’’
इंडियन किसान यूनियन के सदस्यों ने अपने पत्र में तीनों कृषि बिलों को समर्थन देते हुए लिखा है कि किसी के दबाव में आकर सरकार इन कानूनों को वापस न ले.
इंडियन किसान यूनियन का मुख्यालय दिल्ली के सफदरजंग इलाके में है. इसके प्रमुख 55 वर्षीय चौधरी राम कुमार वालिया हैं. उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फरनगर के रहने वाले वालिया उत्तराखंड के मान्यता प्राप्त राज्यमंत्री रह चुके हैं. लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे वालिया अब भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए हैं. बीजेपी से अपने जुड़ाव को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वालिया कहते हैं, ‘‘मैंने सारी ज़िंदगी किसानों की राजनीति की है. मैं अभी बीजेपी का सदस्य हूं हालांकि किसी पद पर नहीं हूं. इससे पहले किसान कांग्रेस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था.’’
संगठन के बारे में बताते हुए वालिया कहते हैं, ‘‘यह चार-पांच साल पुराना संगठन है. देश के अलग-अलग जगहों से थोड़ी-थोड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं. हमने गिनती तो की नहीं लेकिन हज़ारों लोग तो जुड़े ही होंगे.’’
जिस कानून के विरोध में अब तक 40 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी है. उस कानून में आपको क्या अच्छा लगता है. इस सवाल के जवाब में वालिया कहते हैं, ‘‘ये कानून पूरी तरह किसानों के हित में बना हुआ है. हमने इसे पढ़ा, विश्लेषण किया फिर अपने लोगों से इसकी जांच कराई और उसके बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे की यह कानून देश के किसानों की दशा और दिशा सुधारने वाला कानून है. आज आज़ादी के इतने सालों बाद भी किसानों की स्थिति खराब ही नहीं है बल्कि और बदतर होती जा रही है. ऐसे में सरकार एक कानून लेकर आई है, जिससे किसान के घर संम्पनता आने की उम्मीद है.’’
जो किसान इस ठंड में आंदोलन कर रहे क्या वे गलत कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में वालिया विपक्षी दलों पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘देश के कुछ राजनीतिक दल मोदी जी की लोकप्रियता के कारण समाप्त हो रहे हैं. आज हिंदुस्तान में किसी का डंका बज रहा है तो मोदी जी का बज रहा है. कोरोनाकाल में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है. ऐसे में सारे राजनीतिक दल बौखला गए हैं. और वो नए-नए मुद्दे तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं. किसान एक शरीफ कौम मानी जाती है. सीधे लोग हैं. उनको बरगलाया गया है. भय दिखाया जा रहा है कि इस कानून के लागू होने से किसानों की जमीन छीन जाएगी. मंडियां समाप्त हो जाएंगी, आपकी फसल एमएसपी पर नहीं बिकेगी, इसीलिए वे बेचारे बैठे हुए हैं. हम उन्हें समझा रहे हैं. सरकार भी अपने स्तर पर समझाने के कोशिश कर रही है.’’
किसानों की मांग को लेकर क्या आपका संगठन कभी सड़कों पर उतरा है. इस सवाल के जवाब में वालिया कहते हैं, ‘‘जब-जब किसानों के हित में लड़ने की ज़रूरत पड़ी हम सड़कों पर उतरे हैं. किसी एक घटना का जिक्र करना मुश्किल है क्योंकि सारा जीवन हमने किसानों की लड़ाई लड़ी है. आप कभी हमारे कार्यालय आएं मैं आपको प्रमाण ज़रूर दूंगा.’’
भारतीय कृषक समाज
भारतीय कृषक समाज से मिले समर्थन पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा, ‘‘गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश के ‘‘भारतीय कृषक समाज’’ से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में पत्र. उन्होंने इस पत्र में कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए इसे किसान हित में एक बड़ा साहसिक व ऐतिहासिक कदम बताया है.’
कृष्णवीर चौधरी भी बीजेपी के सदस्य हैं. वे खुद को समान्य कार्यकर्ता बताते हुए कहते हैं कि करोड़ो लोगों की तरह मैं भी बीजेपी का एक सदस्य हूं. हालांकि तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की उपस्थिति में चौधरी साल 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे.|
सरकार को दिए समर्थन पत्र में इन कानूनों की किसानों द्वारा लम्बी मांग बताते हुए कृष्णवीर चौधरी लिखते हैं, ''आज सरकार ने बाजार खोलकर किसानों के हित में एक बड़ा साहसिक और ऐतिहासिक फैसला लिया है. यह कानून देश में किसानों की प्रगति के साथ, कृषि उत्पादकता में सुधार और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने में मदद करेगा.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कृष्णवीर चौधरी अपने संगठन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘यह सिर्फ किसानों का और किसान के लिए बना संगठन है. हमारा प्राथमिक काम किसानों की समस्यायों को सरकार के सामने उठाना है. मेरी विचारधारा किसानों के हित में काम करना है.’’
कृष्णवीर चौधरी लम्बे समय तक कांग्रेस में रह चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘कांग्रेस में रहते हुए यूपीए 1 और 2 के समय हम लगातार किसानों के लिए बोलते रहे. हम वहां बराबर लड़ते रहे कि बिचौलियों के द्वारा किसानो का शोषण किया जा रहा है. वे किसानों को लूटते हैं. तब इसको लेकर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी बोलते रहे. शरद पवार ने भी बोला था. तब तो वे हमारी बात मानते थे. देश के पहले कृषि मंत्री थे पंजाब राव देशमुख, हम उनके आदर्शों पर चलने वाले हैं. उन्होंने तब कहा था कि जब तक किसान को बाजार में नहीं खड़ा करेंगे उसका शोषण होता रहेगा. चौधरी चरण ने भी ऐसा ही कहा था. तो क्या वे गलत कह रहे थे? हमारी लड़ाई सिर्फ बिचौलियों के खिलाफ है.’’
भारत सरकार को कृषि बिलों पर समर्थन देने के साथ-साथ भारतीय कृषक समाज के प्रमुख कृष्ण वीर चौधरी की भूमिका अन्य कई संगठनों से समर्थन दिलाने में भी नजर आती है. चाहे वो महाराष्ट्र राज्य कृषक समाज के प्रकाश मानकर द्वारा दिया गया समर्थन हो या पलवल के प्रगतिशील किसान क्लब के विजेंद्र सिंह दलाल द्वारा दिया गया समर्थन. प्रकाश मानकर ने सरकार को समर्थन देते हुए एक पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री को लिखा है और दूसरा पत्र कृष्ण वीर चौधरी को लिखा है. वहीं अगर विजेंद्र की बात करें तो दोनों को जानने वाले बताते हैं कि ये आपस में काफी घनिष्ट हैं.
इन संगठनों के अलावा 28 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के ‘जे एंड के किसान काउंसिल’ और ‘जे एंड के डेयरी प्रोड्यूसर्स, प्रोसेसर्स एंड मार्केटिंग को.आप. यूनियन लि. कोलकाता पश्चिम बंगाल के ‘कृषि जागरण मंच’, भारतीय किसान संगठन" दिल्ली प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के रहने वाले "पीजेंट वेल्फेयर एसोसिएशन" से सरकार को अपना समर्थन दिया है.
विरोध करने वाले विपक्षी तो समर्थन करने वाले कौन?
एक तरफ सरकार बिना किसी किसान संगठन की मांग और मशविरा के विपक्ष के विरोध के बावजूद कोरोना काल में तीनों कृषि कानूनों को पास करा लेती है. जब पंजाब और हरियाणा के किसान इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू करते हैं तो सरकार अनदेखा करती है.
25-26 नवंबर को किसान दिल्ली चलो के नारे के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ते है. उन्हें रोकने की कोशिश होती है. जब वे नहीं रुकते और बैरिकेटिंग तोड़ते हुए दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच जाते हैं तो गृहमंत्री निरंकारी ग्राउंड पहुंचने पर ही बातचीत शुरू करने की बात कहते है. लेकिन किसान नहीं मानते इसके बाद सरकार और किसानों की बात शुरू होती है.
एक तरफ सरकार किसानों से बातचीत कर रही है. दूसरी तरफ इन्हें विपक्ष द्वारा बरगलाया हुआ बताया जाता है. ऐसा करने वाले सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी हैं. वे एक बार नहीं कई बार किसानों को विपक्ष द्वारा भ्रमित किया हुआ बता चुके हैं. पीएम मोदी ने बीते दिनों विपक्ष से कहा था, ''आप भले ही सारा क्रेडिट ले लें लेकिन किसानों को बरगलाना बंद करें.'’
विरोध कर रहे किसान नेताओं के अलग-अलग संगठन से जुड़े होने को मुद्दा बनाकर इस आंदोलन को किसानों का नहीं बल्कि विपक्ष का आंदोलन बताने की कोशिश सरकार के मंत्रियों, आईटी सेल और सरकार समर्थक मीडिया संस्थानों द्वारा भी किया जाता है. जबकि किसान नेताओं ने अपनी पहचान छुपाई भी नहीं है.
नाराज़ किसानों से बातचीत के बीचोंबीच केंद्रीय कृषि मंत्री अलग-अलग किसान संगठनों से मुलाकात कर उनसे इन बिलों को बेहतर बताते हुए समर्थन मिलने का दावा करते हैं. कृषि मंत्री इस समर्थन पत्र के जरिए यह दिखाने की कोशिश करते है कि काफी संख्या में किसान इस बिल से खुश हैं, हालांकि वे ये नहीं बताते कि इस संगठन के लोग उनके ही दल से जुड़े हैं. यह हैरान करने वाली बात है.
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30 दिसंबर को केंद्र सरकार के मंत्रियों और किसान नेताओं के बीच बात होनी थी. ठीक उसके दो दिन पहले 28 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ‘फार्मर्स विथ मोदी’ हैशटैग के साथ ट्वीट करते हुए लिखा, ‘लखनऊ उत्तर प्रदेश के ‘‘राष्ट्रीय युवा वाहिनी’’ से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र.’
यह पत्र 'राष्ट्रीय युवा वाहिनी' के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष हरीश गौतम द्वारा लिखा गया था. क्या इस संगठन का कृषि से कुछ लेना देना है? इस सवाल का जवाब कृषि मंत्री द्वारा साझा पत्र पर ही मिल जाता है, जहां संस्थान के प्रमुख उद्देश्य के रूप में ‘गौशालाओं और अनाथ आश्रमों का निर्माण, गोरक्षा, भ्रष्टाचार उन्मूलन में सहभागिता’ लिखा हुआ है.
जिस संस्थान के प्रमुख उद्देश्य में कृषि शब्द का जिक्र तक नहीं है उनका कृषि कानूनों पर समर्थन लेना आखिर कृषि मंत्री को क्यों ज़रूरी लगा?
कड़ाके की ठंड के बावजूद लाखों की संख्या में देश के अलग-अलग राज्यों से आए किसान दिल्ली की सरहद पर एक महीने से ज्यादा से बैठे हुए हैं. आंदोलन से आए दिन ठंड से मौत की खबरें भी आ रही हैं. ऐसे में प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत करने की कोशिश के साथ-साथ सरकार देश के दूसरे किसान संगठनों से समर्थन लेती नजर आ रही है.
इसी सिलसिले में 28 दिसंबर को नरेंद्र सिंह तोमर एक के बाद एक 12 ट्वीट करते हुए अलग-अलग ‘किसान संगठनों’ से कृषि कानूनों के समर्थन में मिला पत्र साझा करते हैं. यह समर्थन पत्र दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में किसान संगठनों के प्रमुखों ने उन्हें सौंपा था.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि इन 12 में से पांच संगठनों के प्रमुख भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं. एक संगठन खुद को बीजेपी का सहयोगी संगठन होने दावा करता है. इसके इतर हमने इन संगठनों की जमीन पर किसानों के बीच पकड़ जानने की कोशिश की.
राष्ट्रीय युवा वाहिनी
नरेंद्र सिंह तोमर को लिखे पत्र की शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय युवा वाहिनी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित हरीश गौतम लिखते हैं, ‘‘राष्ट्रीय युवा वाहिनी (भारतीय जनता परिषद) सदैव ही भारतीय जनता पार्टी के सहयोग में रही है. आज राष्ट्रीय युवा वाहिनी किसान बिलों के समर्थन में सम्पूर्ण रूप से सरकार के साथ है.’’
हरीश गौतम साफ-साफ लिखते हैं कि उनका संगठन बीजेपी का सहयोगी संगठन है. यह बात उनके लेटर हेड पर भी लिखी हुई है. यानी केंद्रीय कृषि मंत्री जिस संगठन से कृषि बिलों पर समर्थन मिलने का दावा करते नजर आते हैं वो तो उनकी ही पार्टी से जुड़ा हुआ है.
बीजेपी के सहयोगी संगठन होने के दावे से अलग क्या राष्ट्रीय युवा वाहिनी का किसानों से कुछ लेना देना है? इसका जिक्र इस रिपोर्ट के पहले हिस्से में ही किया गया है. सगंठन अपना मुख्य उद्देश्य गौशालाओं और अनाथ आश्रमों का निर्माण, गोरक्षा, भ्रष्टाचार उन्मूलन में सहभागिता’ बताता है. हाल ही में लखनऊ के डूडा कॉलोनी में हिन्दू लड़की और मुस्लिम युवक के बीच परिवारों की रजामंदी के बावजूद शादी वाले दिन पुलिस को पत्र लिखकर शादी रुकवाने की मांग हिन्दू महासभा के अलावा इस संगठन यानी राष्ट्रीय युवा वाहिनी द्वारा भी किया गया था.
संगठन ने इस मामले को लव जिहाद और धर्मांतरण बताया था, लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी रिपोर्ट में पाया की इस मामले में लव जिहाद और धर्मांतरण था ही नहीं. लड़की और लड़के का घर एक गली में दो घरों के अंतराल पर है. लड़के को लड़की का परिवार अच्छे से जानता है. इनकी शिकायत के बाद पुलिस तत्काल इस शादी को रुकवा भी देती
राष्ट्रीय युवा वाहिनी की शुरुआत साल 2016 में हुई थी. इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष केडी शर्मा संगठन के खेती-किसानी से जुड़ाव के संबंध में पूछे गए सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमारे संगठन में किसान प्रकोष्ट भी है.’’
किसान प्रकोष्ट के प्रमुख के बारे में जानकारी मांगने पर शर्मा बताते हैं, ‘‘अभी तक इस पद पर कोई नहीं है. अलग से हमने किसी को भागीदारी नहीं दी है. सब ऐसा ही है.’’
क्या आपके संगठन ने कभी किसानों की मांग के लिए आंदोलन किया है. इस सवाल के जवाब में शर्मा कहते हैं, ‘‘किसानों के लिए आंदोलन तब करेंगे जब सरकार उनका अहित करेगी. ये सरकार तो किसानों हित में काम कर रही है. किसानों के लिए तरह-तरह की योजनाएं निकाल रही है. तो उसमें विरोध करने की ज़रूरत ही नहीं है. हमारा जो संगठन है वो बीजेपी का सहयोगी संगठन ही है. तो हम पहले अपनी बात कहेंगे. हक़ की लड़ाई लड़ने की ज़रूरत आएगी तो लड़ी भी जाएगी. इसमें कोई दिक्कत वाली बात नहीं है.’’
जब हम केडी शर्मा से बात कर रहे थे तो वो राकेश टिकैत के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने जा रहे थे. शर्मा का दावा है कि टिकैत ने ब्रह्मण समुदाय को लेकर गलत बयानी की है. शर्मा कहते हैं, ‘‘दिल्ली में जो प्रदर्शन हो रहा है उसमें किसान तो हैं ही नहीं. किसानों को विपक्ष बरगला रहा है.’’
अगर आप कृषि बिल के समर्थन में प्रदर्शन करें तो कितने किसान आपके साथ आ सकते हैं. इस सवाल के जवाब में शर्मा बताते हैं, ‘‘24 घंटे हमारे साथ एक हज़ार लोग ऐसे हैं जो कहीं भी प्रदर्शन करने आ सकते हैं. इसमें 250 किसान होंगे. 250 किसान हमारे साथ कभी भी आ सकते हैं.’’
राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन
नरेंद्र सिंह तोमर ने एक और पत्र साझा किया जो राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन द्वारा कृषि बिलों के समर्थन में लिखा गया है. पत्र को साझा करते हुए तोमर लिखते हैं, ‘‘लखनऊ उत्तर प्रदेश के ‘राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन’ से नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र. जिसमें कहा गया कि हम पूर्ण रूप से सरकार के साथ हैं.’’
एक तरफ जहां सरकार आंदोलन कर रहे किसानों नेताओं से बातचीत के बाद कानून में बदलाव के लिए तैयार है. उन किसान नेताओं को फर्जी बताते हुए पत्र में लिखा गया है कि हम कानून में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध करते हैं. यह कानून किसानों के हित में हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने वाला है.’’
राष्ट्रीय अन्नदाता यूनियन के अध्यक्ष का नाम राम निवास यादव है. पत्र पर उनके भी हस्ताक्षर हैं. राम निवास यादव बीजेपी के समान्य सदस्य नहीं हैं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बीजेपी के सात साल तक जिला अध्यक्ष रह चुके हैं. वह साल 2019 में 22 दिसंबर तक इस पद पर थे, जिसके बाद उन्हें कोई बड़ा दायित्व तो नहीं दिया गया लेकिन वे पार्टी के वरिष्ठ सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं.
अपने संगठन के बारे में बताते हुए राम नरेश यादव कहते हैं, ‘‘यह एक गैर राजनीतिक संगठन है जिसका निर्माण सात-आठ साल पहले हुआ था. यह उत्तर प्रदेश के 210 विधानसभाओं में सक्रिय हैं. हमारे साथ करीब दसियों हज़ार लोग हैं. हमारे संगठन का काम किसानों की समस्याएं देखना, उसे उठाना. किसानों के हित में काम करना है.’’
कृषि कानूनों को समर्थन देने और प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए अभद्र भाषा इस्तेमाल करने के सवाल पर यादव कहते हैं, ‘‘सरकार ने जो कानून लागू किया है उसकी मांग तो बहुत पुरानी है. हम लोग बाबा टिकैत के साथ काम करते थे. वे हमारे आदर्श थे. साल 2003 में लखनऊ में उनकी सभा हुई थी. जिसमें उन्होंने बिचौलियों से आज़ादी की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि किसानों को मुक्ति मिलेगी जब उन्हें अपनी उपज बेचने की आज़ादी दी जाएगी. आज वो हमारे बीच नहीं है. ऐसे में अगर सरकार उनकी पुरानी मांग को मान रही है तो इसका तो सम्मान करना चाहिए. और जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनसे पूछिए कि इसमें कमी क्या है, वह बस आशंका जाहिर करते है कि कल को ऐसा होगा. आशंका से काम थोड़ी चलता है. नुकसान बताये.’’
क्या आपने कभी किसानों के पक्ष में आंदोलन किया है. इस सवाल के जवाब में राम नरेश यादव कहते हैं, ‘‘प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी तब हम किसानों के लिए ना सिर्फ मार खाए बल्कि हिरासत में भी लिए गए थे. हमारे संगठन के कई कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटें आई थीं. उसके बाद की बात करे तो साल 2017 में हमने लखनऊ में गेहूं खरीद को लेकर जमकर प्रदर्शन किया था. तब हमारी ही सरकार थी. मुख्यमंत्री योगी जी ने हमारी बात सुनते हुए 12 अधिकारियों पर कार्रवाई की थी.’’
उन्नतिशील किसान क्लब और प्रगतिशील किसान क्लब
सरकार को समर्थन देने वाले संगठनों में हरियाणा के पलवल जिले के प्रगतिशील किसान क्लब और गुरुग्राम का उन्नतशील किसान क्लब भी शामिल है. प्रगतिशील किसान क्लब के लेटर हेड पर लिखे गए पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा ‘हरियाणा के "प्रगतिशील किसान क्लब" से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र.’
भले ही केंद्रीय मंत्री ने लिखा कि हरियाणा के प्रगतिशील किसान क्लब से उन्हें समर्थन मिला है लेकिन ऐसा नहीं है. यह समर्थन सिर्फ एक जिले के क्लब प्रमुख द्वारा दिया गया है. न्यूज़लॉन्ड्री ने हिसार के क्लब प्रमुख राजेंद्र लम्बा और फतेहाबाद के बलबीर सिंह घरवाल से बात की. दोनों ने बताया कि हम लोग इसके खिलाफ हैं. बलबीर सिंह घरवाल बताते हैं कि हमारे लोग तो दिल्ली के टिकरी बॉर्डर भी गए हैं. हम इसके खिलाफ हैं.
सरकार के लिखे अपने पत्र में इन दोनों संगठनों ने महज एक वाक्य में अपना समर्थन देते हुए लिखा है, ‘‘हम सरकार द्वारा किसानों के हित में लागू हुए कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं.’’
पलवल के प्रगतिशील किसान क्लब के प्रमुख बिजेंद्र सिंह दलाल भारतीय जनता पार्टी से जुड़े तो नहीं हैं लेकिन उनके सोशल मीडिया पर नजर दौड़ाने पर बीजेपी नेताओं के साथ कई तस्वीरें नजर आती हैं. कहीं तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठे हैं तो कहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ. वहीं दूसरी तरह उन्नतिशील किसान क्लब के गुरुग्राम प्रमुख मानसिंह यादव साल 2019 में इनेलो छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. हिंदुस्तान की खबर के मुताबिक मानसिंह यादव की राजनीति की शुरुआत बीजेपी और आरएसएस से शुरू हुई लेकिन वो ज़्यादा दिन तक वहां नहीं रह पाए और इनेलों में चले गए. फिर अब वापस बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
अपने संगठन के बारे में बताते हुए दलाल कहते हैं, ‘‘हम कोई किसान यूनियन नहीं हैं. हम प्रगतिशील किसान हैं. सरकार की तरफ से जो अच्छे काम होते हैं हम किसानों तक पहुंचाते हैं. हमारे संगठन से लगभग 500 किसान जुड़े हुए हैं.’’
एक तरह हरियाणा के लिए लाखों किसान सड़कों पर हैं. आपको इस कानून में क्या फायदा नज़र आता है जिसका आप समर्थन कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में दलाल कहते हैं, ‘‘मुझे उन बातों से क्या मतलब. मुझे अच्छा लगा तो मैंने समर्थन दे दिया. किसी से क्यों जद्दोजहद करना. हम लोगों से क्यों बुराई मोल लें.’’
दलाल का सोशल मीडिया बीजेपी नेताओं के साथ की तस्वीरों से भरा हुआ है वहीं दूसरी तरफ वे कहते हैं, ‘‘मेरा राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं है. हम किसानों के हित में काम करते हैं.’’
मानसिंह यादव ने कृषिमंत्री से मुलाकात के बाद मीडिया को बयान दिया था. उस वीडियो को भारतीय जनता पार्टी ने अपने फेसबुक से साझा भी किया है. उसमें यादव कहते नज़र आते हैं, ‘‘किसान एक ऐसी बिरादरी है जिसको कोई भी बहका सकता है. यदि इस अध्यादेश को पढ़ लें तो सारा रोग खत्म हो जाएगा. लोग बहकावे में आ ही सकते हैं. बाकी जो 70 साल से एक मामला चलता आ रहा है. हमारे अनाज की जो बोली लगती है वो खत्म होगी. कुछ ना कुछ बदलाव तो चाहिए. 70 साल से बदलाव नहीं हुआ तो हम गरीब के गरीब हैं. एकबार इसे देख लो.’’
क्या आपने इन तीनों कानूनों को पढ़ा है इस सवाल के जवाब में मानसिंह यादव न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते है, ‘‘हम तो अनपढ़ आदमी हैं. हमने कानून की पेचीदिगियों की समझ भी नहीं है. हमारे क्लब के अधिकांश सदस्यों का मानना है कि 70 साल से हम एक ढर्रे पर चल रहे थे. कोई बदलाव हुआ है तो उसे देखना चाहिए. क्या पता हमें यहां ग्राहक ज़्यादा मिल जाएं. एक बार इसका परिणाम तो देख लेते फिर तय करते.’’
उन्नतिशील किसान संगठन के बारे में बताते हुए यादव कहते हैं, ‘‘यह एक गैर राजनीतिक संगठन है जो सरकार और किसानों के बीच पुल का काम करता है. किसानों की मांग को सरकार तक और सरकार की योजनाओं को किसानों तक पहुंचना हमारा काम होता है. इसके करीब दो से तीन सौ सदस्य हैं. इसको बने लगभग बीस साल हो गए जिसमें तीन साल छोड़कर बाकी समय मुझे ही लोगों ने प्रमुख चुना है.’’
प्रदर्शनकारी किसानों को लेकर कहे जा रहे अप-शब्दों पर यादव नाराज़गी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं उनके बारे में कुछ नहीं कहूंगा. वे किसान हैं. हो सकता है उनकी समझ मुझसे बेहतर हो.’’
मान सिंह यादव कहते हैं, ‘‘चौटाला साहब के कुनबे में खटपट हो गई तो हमें अलग होना पड़ा. मैं बीजेपी में किसी पद पर नहीं हूं. उनका समर्थक ज़रूर हूं.’’
अखिल भारतीय बंग परिषद
‘अखिल भारतीय बंग परिषद’ नाम के एक संस्थान ने भी कृषि कानूनों के समर्थन में सरकार को पत्र लिखा है. इस पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा है कि नई दिल्ली के ‘‘अखिल भारतीय बंग परिषद’ से नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र. उन्होंने कहा कि ये कृषि कानून, किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने में सहायक बनेंगे.’’
इस संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण मुखर्जी है. दिल्ली में रहने वाले अरुण मुखर्जी भारतीय जनता पार्टी के नेता के साथ-साथ आरएसएस के व्यापारिक संगठन स्वदेश जागरण मंच के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी हैं. दिल्ली सरकार और बीजेपी के बीच एमसीडी के कथित 13000 करोड़ की मांग को लेकर बीजेपी द्वारा किए गए प्रदर्शन में मुखर्जी शामिल भी हुए हैं.
डेढ़ साल बने 'अखिल भारतीय बंग परिषद' के मुख्य उद्देश्यों में खेती-किसानी शामिल नहीं है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बनर्जी कहते हैं, ‘‘करीब डेढ़ साल पहले इस संगठन की शुरुआत हुई है. देश के जिस भी हिस्से में बंगाली रहते हैं हम वहां अपना काम करते हैं. बंगाली शब्द को गाली बना दिया गया है. इसलिए हम अपने प्रदेश की अस्मिता के लिए काम करते हैं. बंगाल के पश्चिमी इलाके में जब एक खास समुदाय के लोग बंग्लादेश से आए तो वहां के हिन्दू अपना घर, खेत-बाड़ी छोड़कर देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बस गए. ऐसे करीब एक लाख परिवार अपना घर छोड़कर भागे थे. वे वापस जाने से डरते हैं. ऐसे लोगों को हम सुरक्षित वापस भेजने का काम कर रहे हैं.’’
कृषि के लिए आपका संगठन क्या कोई काम करता है. इस सवाल के जवाब में बनर्जी कहते हैं, ‘‘हम खेती के लिए भी काम करते हैं. बंगाल के किसानों की बेहतरी के लिए हम लगातार कोशिश कर रहे हैं. वहां की सरकारों की वजह से किसानों का फायदा नहीं हुआ. वे गरीब ही रहे. उनके लिए किसी ने आवाज़ नहीं उठाई. हर प्रदेश के किसान संगठन हैं लेकिन बंगाल का नहीं है. इसी के लिए हमने ये संगठन बनाया है.’’
कृषि में उनके संगठन के योगदान के लिए कई बार हम सवाल दोहराते हैं लेकिन बनर्जी कोई ठीक जवाब नहीं देते हैं. वे बताते हैं, ‘‘दिल्ली में हमसे पांच हज़ार लोग जुड़े हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों के साथ-साथ देश के अलग-अलग प्रदेशों में लोग हमारे संगठन से लोग जुड़े हुए हैं.’’
इंडियन किसान यूनियन
कृषि बिलों पर समर्थन देने वाला एक संगठन इंडियन किसान यूनियन भी है. इस संगठन से मिले समर्थन पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा, ‘‘नई दिल्ली के "इंडियन किसान यूनियन" से प्राप्त नए कृषि सुधार क़ानूनों के समर्थन में प्राप्त पत्र. उन्होंने इन क़ानूनों को किसान हितैषी व किसानों को आत्मनिर्भर बनाने वाला बताया.’’
इंडियन किसान यूनियन के सदस्यों ने अपने पत्र में तीनों कृषि बिलों को समर्थन देते हुए लिखा है कि किसी के दबाव में आकर सरकार इन कानूनों को वापस न ले.
इंडियन किसान यूनियन का मुख्यालय दिल्ली के सफदरजंग इलाके में है. इसके प्रमुख 55 वर्षीय चौधरी राम कुमार वालिया हैं. उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फरनगर के रहने वाले वालिया उत्तराखंड के मान्यता प्राप्त राज्यमंत्री रह चुके हैं. लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे वालिया अब भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए हैं. बीजेपी से अपने जुड़ाव को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वालिया कहते हैं, ‘‘मैंने सारी ज़िंदगी किसानों की राजनीति की है. मैं अभी बीजेपी का सदस्य हूं हालांकि किसी पद पर नहीं हूं. इससे पहले किसान कांग्रेस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था.’’
संगठन के बारे में बताते हुए वालिया कहते हैं, ‘‘यह चार-पांच साल पुराना संगठन है. देश के अलग-अलग जगहों से थोड़ी-थोड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं. हमने गिनती तो की नहीं लेकिन हज़ारों लोग तो जुड़े ही होंगे.’’
जिस कानून के विरोध में अब तक 40 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी है. उस कानून में आपको क्या अच्छा लगता है. इस सवाल के जवाब में वालिया कहते हैं, ‘‘ये कानून पूरी तरह किसानों के हित में बना हुआ है. हमने इसे पढ़ा, विश्लेषण किया फिर अपने लोगों से इसकी जांच कराई और उसके बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे की यह कानून देश के किसानों की दशा और दिशा सुधारने वाला कानून है. आज आज़ादी के इतने सालों बाद भी किसानों की स्थिति खराब ही नहीं है बल्कि और बदतर होती जा रही है. ऐसे में सरकार एक कानून लेकर आई है, जिससे किसान के घर संम्पनता आने की उम्मीद है.’’
जो किसान इस ठंड में आंदोलन कर रहे क्या वे गलत कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में वालिया विपक्षी दलों पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘देश के कुछ राजनीतिक दल मोदी जी की लोकप्रियता के कारण समाप्त हो रहे हैं. आज हिंदुस्तान में किसी का डंका बज रहा है तो मोदी जी का बज रहा है. कोरोनाकाल में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है. ऐसे में सारे राजनीतिक दल बौखला गए हैं. और वो नए-नए मुद्दे तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं. किसान एक शरीफ कौम मानी जाती है. सीधे लोग हैं. उनको बरगलाया गया है. भय दिखाया जा रहा है कि इस कानून के लागू होने से किसानों की जमीन छीन जाएगी. मंडियां समाप्त हो जाएंगी, आपकी फसल एमएसपी पर नहीं बिकेगी, इसीलिए वे बेचारे बैठे हुए हैं. हम उन्हें समझा रहे हैं. सरकार भी अपने स्तर पर समझाने के कोशिश कर रही है.’’
किसानों की मांग को लेकर क्या आपका संगठन कभी सड़कों पर उतरा है. इस सवाल के जवाब में वालिया कहते हैं, ‘‘जब-जब किसानों के हित में लड़ने की ज़रूरत पड़ी हम सड़कों पर उतरे हैं. किसी एक घटना का जिक्र करना मुश्किल है क्योंकि सारा जीवन हमने किसानों की लड़ाई लड़ी है. आप कभी हमारे कार्यालय आएं मैं आपको प्रमाण ज़रूर दूंगा.’’
भारतीय कृषक समाज
भारतीय कृषक समाज से मिले समर्थन पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा, ‘‘गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश के ‘‘भारतीय कृषक समाज’’ से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में पत्र. उन्होंने इस पत्र में कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए इसे किसान हित में एक बड़ा साहसिक व ऐतिहासिक कदम बताया है.’
कृष्णवीर चौधरी भी बीजेपी के सदस्य हैं. वे खुद को समान्य कार्यकर्ता बताते हुए कहते हैं कि करोड़ो लोगों की तरह मैं भी बीजेपी का एक सदस्य हूं. हालांकि तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की उपस्थिति में चौधरी साल 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे.|
सरकार को दिए समर्थन पत्र में इन कानूनों की किसानों द्वारा लम्बी मांग बताते हुए कृष्णवीर चौधरी लिखते हैं, ''आज सरकार ने बाजार खोलकर किसानों के हित में एक बड़ा साहसिक और ऐतिहासिक फैसला लिया है. यह कानून देश में किसानों की प्रगति के साथ, कृषि उत्पादकता में सुधार और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने में मदद करेगा.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कृष्णवीर चौधरी अपने संगठन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘यह सिर्फ किसानों का और किसान के लिए बना संगठन है. हमारा प्राथमिक काम किसानों की समस्यायों को सरकार के सामने उठाना है. मेरी विचारधारा किसानों के हित में काम करना है.’’
कृष्णवीर चौधरी लम्बे समय तक कांग्रेस में रह चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘कांग्रेस में रहते हुए यूपीए 1 और 2 के समय हम लगातार किसानों के लिए बोलते रहे. हम वहां बराबर लड़ते रहे कि बिचौलियों के द्वारा किसानो का शोषण किया जा रहा है. वे किसानों को लूटते हैं. तब इसको लेकर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी बोलते रहे. शरद पवार ने भी बोला था. तब तो वे हमारी बात मानते थे. देश के पहले कृषि मंत्री थे पंजाब राव देशमुख, हम उनके आदर्शों पर चलने वाले हैं. उन्होंने तब कहा था कि जब तक किसान को बाजार में नहीं खड़ा करेंगे उसका शोषण होता रहेगा. चौधरी चरण ने भी ऐसा ही कहा था. तो क्या वे गलत कह रहे थे? हमारी लड़ाई सिर्फ बिचौलियों के खिलाफ है.’’
भारत सरकार को कृषि बिलों पर समर्थन देने के साथ-साथ भारतीय कृषक समाज के प्रमुख कृष्ण वीर चौधरी की भूमिका अन्य कई संगठनों से समर्थन दिलाने में भी नजर आती है. चाहे वो महाराष्ट्र राज्य कृषक समाज के प्रकाश मानकर द्वारा दिया गया समर्थन हो या पलवल के प्रगतिशील किसान क्लब के विजेंद्र सिंह दलाल द्वारा दिया गया समर्थन. प्रकाश मानकर ने सरकार को समर्थन देते हुए एक पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री को लिखा है और दूसरा पत्र कृष्ण वीर चौधरी को लिखा है. वहीं अगर विजेंद्र की बात करें तो दोनों को जानने वाले बताते हैं कि ये आपस में काफी घनिष्ट हैं.
इन संगठनों के अलावा 28 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के ‘जे एंड के किसान काउंसिल’ और ‘जे एंड के डेयरी प्रोड्यूसर्स, प्रोसेसर्स एंड मार्केटिंग को.आप. यूनियन लि. कोलकाता पश्चिम बंगाल के ‘कृषि जागरण मंच’, भारतीय किसान संगठन" दिल्ली प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के रहने वाले "पीजेंट वेल्फेयर एसोसिएशन" से सरकार को अपना समर्थन दिया है.
विरोध करने वाले विपक्षी तो समर्थन करने वाले कौन?
एक तरफ सरकार बिना किसी किसान संगठन की मांग और मशविरा के विपक्ष के विरोध के बावजूद कोरोना काल में तीनों कृषि कानूनों को पास करा लेती है. जब पंजाब और हरियाणा के किसान इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू करते हैं तो सरकार अनदेखा करती है.
25-26 नवंबर को किसान दिल्ली चलो के नारे के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ते है. उन्हें रोकने की कोशिश होती है. जब वे नहीं रुकते और बैरिकेटिंग तोड़ते हुए दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच जाते हैं तो गृहमंत्री निरंकारी ग्राउंड पहुंचने पर ही बातचीत शुरू करने की बात कहते है. लेकिन किसान नहीं मानते इसके बाद सरकार और किसानों की बात शुरू होती है.
एक तरफ सरकार किसानों से बातचीत कर रही है. दूसरी तरफ इन्हें विपक्ष द्वारा बरगलाया हुआ बताया जाता है. ऐसा करने वाले सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी हैं. वे एक बार नहीं कई बार किसानों को विपक्ष द्वारा भ्रमित किया हुआ बता चुके हैं. पीएम मोदी ने बीते दिनों विपक्ष से कहा था, ''आप भले ही सारा क्रेडिट ले लें लेकिन किसानों को बरगलाना बंद करें.'’
विरोध कर रहे किसान नेताओं के अलग-अलग संगठन से जुड़े होने को मुद्दा बनाकर इस आंदोलन को किसानों का नहीं बल्कि विपक्ष का आंदोलन बताने की कोशिश सरकार के मंत्रियों, आईटी सेल और सरकार समर्थक मीडिया संस्थानों द्वारा भी किया जाता है. जबकि किसान नेताओं ने अपनी पहचान छुपाई भी नहीं है.
नाराज़ किसानों से बातचीत के बीचोंबीच केंद्रीय कृषि मंत्री अलग-अलग किसान संगठनों से मुलाकात कर उनसे इन बिलों को बेहतर बताते हुए समर्थन मिलने का दावा करते हैं. कृषि मंत्री इस समर्थन पत्र के जरिए यह दिखाने की कोशिश करते है कि काफी संख्या में किसान इस बिल से खुश हैं, हालांकि वे ये नहीं बताते कि इस संगठन के लोग उनके ही दल से जुड़े हैं. यह हैरान करने वाली बात है.
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